अमर के लिए सभी के दरवाजे बंद : अमर सिंह ने राजनीति की सीढिय़ां जिस तरह से चढ़ीं उससे उनका गिरना स्वभाविक ही था : जहां अमर सिंह के चरण पड़े वहां दूरियां बढऩी शुरू हो गई : कहते हैं समय कभी एक सा नहीं रहता। अमर सिंह से अच्छा भला यह कौन समझ सकता है। कभी अपने दम पैर दिल्ली के सिंहासन को हिलाने वाला और कभी बचाने वाला शख्स आज राजनीति के चक्रव्यूह में फंस गया है। उनकी हालात अछूत जैसी हो गई है। सब उनसे राज तो उगलवाना चाहते हैं, मगर साथ बिठाने को कोई तैयार नहीं है। जो शख्स दावा करता था कि उसके पास कई ऐसे राज है, जो वो या नेता जी ही जानते है। आज उन राजों को भी कोई नहीं पूछ रहा। हकीकत यह है की अमर सिंह अब उत्तर प्रदेश की राजनीति में अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे है। जया ने अगर राज्यसभा की सदयस्ता छोड़ी तो उसके पीछे सिर्फ अपने देवर अमर सिंह के प्रति दुलार ही नहीं था।
सच्चाई यह थी कि अमर सिंह ने ताना-बाना बुन दिया, अगर जया नेताजी के साथ रहती तो उनके पति को उत्तर प्रदेश में कई क़ानूनी पचड़ों का सामना करना पड़ता। अमर सिंह ऐसे खेलों में माहिर हैं। मगर अब यह उनका दुर्भाग्य है कि ऐसे फन को जानने के बाबजूद अब बह उसी चौखट पर माथा टेकने को मजबूर हैं, जिस चौखट को वह गरियाते थे। शायद राजनीति इसी को कहते है।दरअसल, अमर सिंह ने राजनीति की सीढिय़ां जिस तरह से चढ़ीं उससे उनका गिरना स्वभाविक ही था। कभी कोलकाता का मामूली सा कारोबारी अचानक जिस तरह राजनीति के शिखर पर पहुंच गया उससे सबका हैरान होना लाजमी ही था. जो मुख्य बात अमर सिंह ने सीखी वो सिर्फ इतनी थी कि जिसके भी साथ रहो उसका इस्तेमाल करना सीखो। अपने इस हुनर का इस्तेमाल उन्होंने खूब किया। पहले उन्होंने राजनेताओ के लिए विलासिता की चीजें जुटाईं फिर उनका इस्तेमाल सिखाया और बाद में उसी को अपना हथियार बनाया।
उनके इसी हुनर का कमाल था कि़ ठेठ गंवई राजनीति करने वाले मुलायम को भी पाशचात्य शैली भाने लगी। यही कारण रहा कि़ मुलायम लगातार अपने जनाधार से दूर होकर अमर सिंह पर निर्भर होते चले गए। अमर सिंह चाहते भी यही थे। उन्होंने कभी यह जताने कि़ कोशिश नहीं की, उनकी हैसियत मुलायम से कम है। मगर अमर सिंह जिस हुनर के मालिक थे, मुलायम के घर भी उसी हुनर का इस्तेमाल करना उन्हें भारी पड़ गया। अमिताभ-अजिताभ, मुकेश-अनिल, संजय दत्त-प्रिया दत्त... कई घराने ऐसे है, जहां अमर सिंह के चरण पड़े उनमें दूरियां बढऩी शुरू हो गई। अमर सिंह भारी पड़ते पक्ष के साथ दिखाई देते और फिर उन परिवारों में सुलह की गुंजाइश न बचती।
सपा में अपनी हैसियत का उन्होंने इसी तरह इस्तेमाल करना शुरू कर दिया था। आजम खान, सलीम शेरवानी, बेनी बाबू समेत कई बड़े नाम थे, जिन्हें हाशिए पर डालने में अमर सिंह ने कोई क़सर नहीं छोड़ी। बाद में उन्होंने अपने सबसे मनपसंद दांव को नेता जी के घर पर भी चलाना शुरू कर दिया। शिवपाल, अखिलेश, रामगोपाल और अमर सिंह के बीच तनाव की खबरें राजनीति के गलियारों में फैलने लगी। अमर सिंह के चाहने वाले तो खुलेआम कहने भी लगे की नेता जी के यहां रामगोपाल से ज्यादा शिवपाल की चलती है। रामगोपाल इस खेल को समझ गए। लिहाजा उन्होंने ही अमर सिंह को निपटाने की सोची। नतीजा सबके सामने है।
यह कहानी तो सबको पता है। मगर नेता जी का साथ छूटने के बाद अमर सिंह कि़ क्या दुर्गति बनी इसकी गाथा कम ही लोगों को पता है। अमर सिंह ने अपने आस-पास अनेक ऐसे लोगों का ताना बना बुन लिया था कि़ उसकी चकाचौंध से हर कोई सम्मोहित हो जाता था। नेताजी का साथ छूटने के बाद सभी को लगने लगा था कि़ अब अमर सिंह कोई ऐसा राज खोलेगे, जिससे नेता जी की राजनीति पर भारी असर पड़ जायेगा। मगर नेताजी ने भी राजनीति की कम चाले नहीं चली है। सूत्रों का कहना है कि़ राजनीति के धुरंधर नेताजी भी जानते थे कि़ उनका यह प्यारा मित्र कब क्या गुल खिला सकता है। लिहाजा अमर सिंह के पैसे के लेन देन के कुछ ऐसे पेपर उनके पास भी थे, जो अमर सिंह का खासा नुकसान कर सकते थे। लिहाजा जब अमर सिंह ने कहना शुरू किया कि़ उनके पास कुछ राज है तो बड़े भरोसे के आदमी से नेताजी ने उन पेपरों के बारे में कहलवा दिया और वो राज राज ही रह गया।
इसके बाद अमर सिंह के साथ वो हुआ, उसकी उन्होंने कल्पना भी नहीं की थी। जिन लोगो को उन्होंने राजनीति की एबीसीडी सिखाई थी, उन्होंने ही अमर सिंह से किनारा कर लिया। राजा भैया से लेकर यशवंत सिंह जैसे नाम, जो अमर सिंह के सबसे करीबी लोगो में थे, रातों रात नेताजी के पाले में खड़े हो गए। इसके बाद नेता जी ने जो दांव चला उसने अमर सिंह के पसीने छुड़ा दिए। जया को राज्यसभा का उम्मीदवार बनाकर उन्होंने अमर सिंह का बचा खुचा वैभव भी ख़तम कर दिया था। अमर सिंह समझ गए थे कि़ अगर जया सपा से एमपी हो गई तो उनकी फि़ल्मी सितारों की दुकान बंद हो जाएगी।
लिहाजा अमर सिंह अपनी पुरानी दुश्मन मायावती के सामने नतमस्तक हुए। उनके भरोसे के अनेक नौकरशाह को सारी कहानी बताई। साथ ही कहा कि़ अगर ऐसा हुआ तो नेताजी को अमिताभ के रूप में स्टार प्रचारक मिल जायेगा। इसके बाद यह नौकरशाह सक्रिय हुए। अमिताभ को समझाया गया कि़ अगर उन्होंने जया को नहीं समझाया तो बाराबंकी कि़ जमीन वाला मामला उन पर भारी पड़ जायेगा। अमिताभ भी उम्र के इस दौर में अब उलझना नहीं चाहते थे। उस पर अमर सिंह वैसे भी कांग्रेस में जाने को बेताब दिखाई दे रहे थे। सोनिया से अमिताभ की अनबन जगजाहिर है. लिहाजा अमिताभ ने अपने कदम वापस खींचना ही ठीक समझा। यह बात अलग है कि़ इसे अमर सिंह ने अपनी जीत समझा। अब जब अमर सिंह को मुलायम सिंह से अलग हुए लम्बा समय बीत गया, तब भी अपने को ठाकुर नेता कहने वाला यह शख्स कुछ हासिल नहीं कर सका है।
पूर्वांचल गठन की लड़ाई लडऩे का दावा करने वाले अमर सिंह की हैसियत अब पूर्वांचल में भी ख़त्म होने लगी है। राजा बुन्देला जैसे नेताओ के पीछे उन्हें चाकरी करनी पड़ रही है। पूर्वांचल के नेता उनकी हैसियत समझ गए है। लिहाजा वहां भी अब उन्हें कोई पूछ नहीं रहा। कभी अपने दम पर दिल्ली की सरकार बचाने वाला यह शख्स अब खुद राजनीति की बियावान गालियों में गुम होता जा रहा है। कभी राजनेताओं और मीडिया को अपने पैसे के दम पर मैनेज करने का दावा करने वाले उनके मैनेजर गुम हो गए है। हमेशा ताज जैसे पांच सितारा होटलों मैं प्रेस कांफ्रेंस करने वाले अमर सिंह अब गोमतीनगर की दयाल पॅराडाइज जैसे छोटे होटल मैं प्रेस कांफ्रेंस करने लगे है। यह वो रास्ते है जो अमर सिंह ने खुद बनाये थे। जाहिर है अब वो गुनगुनाते ही होंगे कि़ न जाने कहा गए बो दिन...!
पूर्वांचल गठन की लड़ाई लडऩे का दावा करने वाले अमर सिंह की हैसियत अब पूर्वांचल में भी ख़त्म होने लगी है। राजा बुन्देला जैसे नेताओ के पीछे उन्हें चाकरी करनी पड़ रही है। पूर्वांचल के नेता उनकी हैसियत समझ गए है। लिहाजा वहां भी अब उन्हें कोई पूछ नहीं रहा। कभी अपने दम पर दिल्ली की सरकार बचाने वाला यह शख्स अब खुद राजनीति की बियावान गालियों में गुम होता जा रहा है। कभी राजनेताओं और मीडिया को अपने पैसे के दम पर मैनेज करने का दावा करने वाले उनके मैनेजर गुम हो गए है। हमेशा ताज जैसे पांच सितारा होटलों मैं प्रेस कांफ्रेंस करने वाले अमर सिंह अब गोमतीनगर की दयाल पॅराडाइज जैसे छोटे होटल मैं प्रेस कांफ्रेंस करने लगे है। यह वो रास्ते है जो अमर सिंह ने खुद बनाये थे। जाहिर है अब वो गुनगुनाते ही होंगे कि़ न जाने कहा गए बो दिन...!
लेखक संजय शर्मा
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