आजाद भारत के महान घोटाले भाग -4 (आखिरी)
1995 जूता घोटाला. जूता व्यापारियों ने फर्ज़ी सोसाइटी बनाकर सरकार को चूना लगाया
जूता घोटाला. सोहिन दया नामक एक व्यापारी ने मेट्रो शूज के रफीक तेजानी और मिलानो शूज के किशोर सिगनापुरकर के साथ मिलकर कई सारी फर्जी चमड़ा कोऑपरेटिव सोसाइटियां बनाईं और सरकारी धन लूटा. 1995 में इसका खुलासा हुआ और बहुत सारे सरकारी अफसर, महाराष्ट्र स्टेट फाइनेंस कार्पोरेशन के अफसर, सिटी बैंक, बैंक ऑफ ओमान, देना बैंक आदि भी इस मामले में लिप्त पाए गए. इन सबके खिला़फ आरोपपत्र दाखिल किया गया, लेकिन कोई नतीजा सामने नहीं आ सका.
तहलका के स्टिंग ऑपरेशन
अब घोटाले कैमरे पर भी होने लगे और सीधे दुनिया ने इसे होते हुए देखा. इसका एक उदाहरण तहलका कांड है. एक मीडिया हाउस तहलका के स्टिंग ऑपरेशन ने यह खुलासा किया कि कैसे कुछ वरिष्ठ नेता रक्षा समझौते में गड़बड़ी करते हैं. भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष को रिश्वत लेते हुए लोगों ने टेलीविजन और अ़खबारों में देखा. इस घोटाले में तत्कालीन रक्षा मंत्री जॉर्ज फर्नांडीज और भारतीय नौसेना के पूर्व प्रमुख एडमिरल सुशील कुमार का नाम भी सामने आया. इस मामले में अटल बिहारी वाजपेयी ने जॉर्ज फर्नांडीज का इस्ती़फा मंजूर करने से इंकार कर दिया. हालांकि बाद में जॉर्ज ने इस्ती़फा दे दिया.
साल 2000 का मैच फिक्सिंग
साल 2000 का मैच फिक्सिंग याद कीजिए. जेंटलमैन स्पोट्र्स यानी क्रिकेट में मैच फिक्सिंग का धब्बा पहली बार भारतीय खिलाड़ियों पर लगा. इसमें प्रमुख रूप से अज़हरुद्दीन और अजय जडेजा का नाम सामने आया. अजय शर्मा और अजहर पर आजीवन प्रतिबंध लगा तो जडेजा और मनोज प्रभाकर पर पांच साल का प्रतिबंध.
बराक मिसाइल रक्षा सौदे
बराक मिसाइल रक्षा सौदे में भ्रष्टाचार का एक और नमूना बराक मिसाइल की खरीदारी में देखने को मिला. इसे इज़रायल से खरीदा जाना था, जिसकी क़ीमत लगभग 270 मिलियन डॉलर थी. इस सौदे पर डीआरडीपी के तत्कालीन अध्यक्ष ए पी जे अब्दुल कलाम ने भी आपत्ति दर्ज कराई थी. फिर भी यह सौदा हुआ. इस मामले में एफआईआर भी दर्ज हुई. एफआईआर में समता पार्टी के पूर्व कोषाध्यक्ष आर के जैन की गिरफ्तारी भी हुई. जॉर्ज फर्नांडीस, जया जेटली और नौसेना के एक पूर्व अधिकारी सुरेश नंदा के खिलाफ प्राथमिकी भी दर्ज हुई. सुरेश नंदा पूर्व नौसेना प्रमुख एस एम नंदा के बेटे हैं. जांच जारी है. अभी तक कोई नतीजा नहीं निकला है
यूटीआई घोटाला
शेयर मार्केट से निकल कर ये घोटाले बैंकिंग सेक्टर में भी घुस गए. यूटीआई घोटाला. 48 हजार करोड़ रुपये का यह घोटाला पूर्व यूटीआई चेयरमैन पी एस सुब्रमण्यम और दो निदेशकों एम एम कपूर और एस के बासु ने मिलकर किया. ये सभी गिरफ्तार हुए, लेकिन सज़ा किसी को नहीं मिली
स्टांप पेपर घोटाला
स्टांप पेपर घोटाला जब सामने आया था, तब इसे सबसे बड़े घोटाले का ताज मिला था. इसके पीछे अब्दुल करीम तेलगी को मास्टर माइंड बताया गया. इस मामले में उच्च पुलिस अधिकारी से लेकर राजनेता तक शामिल थे. तेलगी की गिरफ्तारी तो ज़रूर हुई, लेकिन इस घोटाले के कुछ और अहम खिलाड़ी साफ बच निकलने में अब तक कामयाब हैं.
तेल के बदले अनाज
तेल के बदले अनाज. वोल्कर रिपोर्ट के आधार पर यह बात सामने आई कि तत्कालीन विदेश मंत्री नटवर सिंह ने अपने बेटे को तेल का ठेका दिलाने के लिए अपने पद का दुरुपयोग किया. उन्हें इस्ती़फा देना पड़ा, हालांकि सरकार ने उन्हें बिना विभाग का मंत्री बनाए रखा. एक के बाद एक नेता घोटालों के सरताज बनते जा रहे थे. इसी कड़ी में एक और घोटाला सामने आया. ताज कॉरिडोर. 175 करोड़ रुपये के इस घोटाले में उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती पर लगातार तलवार लटकी रही और अब भी लटकी हुई है. सीबीआई के पास यह मामला है, लेकिन राजनीतिक वजहों से कभी जांच की गति तेज हो जाती है तो कभी मंद. कुल मिलाकर इस घोटाले के आरोपी अपने अंजाम तक पहुंचेंगे या नहीं, कहना मुश्किल है.
सत्यम घोटाला
अब भला कार्पोरेट जगत इस बहती गंगा में हाथ धोने से पीछे क्यों रहता. अब सामने आया सत्यम घोटाला. कार्पोरेट जगत का शायद सबसे बड़ा घोटाला. 14 हज़ार करोड़ रुपये के इस घोटाले में सत्यम कंप्यूटर सर्विसेज के मालिक राम लिंग राजू का नाम आया. राजू ने इस्ती़फा दिया और वह अभी भी जेल में हैं. मुकदमा चल रहा है.
झारखंड के मुख्यमंत्री मधु कोड़ा
मधु कोड़ा का. मुख्यमंत्री रहते हुए कोई अरबों की कमाई कर सकता है, यह साबित किया झारखंड के मुख्यमंत्री मधु कोड़ा ने. 4 हज़ार करोड़ से भी ज्यादा की काली कमाई की कोड़ा ने. बाद में इन पैसों को विदेश भेजकर जमा किया और विदेशों में निवेश किया. इस मामले में केस दर्ज हुआ. कोड़ा फिलहाल जेल में हैं. जांच चल रही है.
जैसे राष्ट्रमंडल खेल घोटाला
अब बात ऐसे घोटालों की भी, जहां महज़ सौ-दो सौ करोड़ का नहीं, बल्कि हज़ारों करोड़ का खेल होता है. जैसे राष्ट्रमंडल खेल घोटाला. हजारों करोड़ रुपये का घोटाला, जिसमें अधिकारी से लेकर नेता तक शामिल थे. सीवीसी ने अपनी जांच में कहा कि अनियमितताएं हुईं. फिलहाल सुरेश कलमाडी को राष्ट्रमंडल खेल आयोजन समिति के अध्यक्ष पद से हटा दिया गया है. सीबीआई जांच कर रही है. कुछ अधिकारियों को गिरफ्तार किया गया है.
आदर्श घोटाला.. आदर्श कोऑपरेटिव सोसाइटी (लि.)
अब बात एक ऐसे घोटाले की, जिसका नाम ही आदर्श है. यानी आदर्श घोटाला. मतलब अब घोटाले भी आदर्श होने लगे. आदर्श कोऑपरेटिव सोसाइटी (लि.) ने ग़ैर क़ानूनी तरीक़े से कोलाबा के आवासीय क्षेत्र नेवी नगर और रक्षा प्रतिष्ठान के आसपास इमारत का निर्माण किया. यह योजना कारगिल युद्ध में शहीद हुए लोगों के परिवार वालों के लिए बनाई गई थी, जबकि इसके फ्लैट्स 80 फीसदी असैनिक नागरिकों को आवंटित किए गए. इस कारनामे में सेना के शीर्ष अधिकारी तक शामिल थे. सेना के दोषी अधिकारियों के खिला़फ कार्रवाई होनी बाकी है. मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण से इस्ती़फा ले लिया गया
2-जी स्पेक्ट्रम घोटाला
गौरतलब है कि सीबीआई ने हाल ही में पूर्व दूरसंचार मंत्री ए. राजा को गिरफ्तार किया था। राजा पर 2-जी स्पेक्ट्रम आवंटन में 1.76 लाख करोड़ रूपए का चूना लगाने का आरोप है। सीबीआई ने मंगलवार देर रात डीबी रियलटी के प्रमोटर शाहिद बलवा को भी गिरफ्तार कर उसे दो दिन की ट्रांजिट रिमांड पर लिया था। ए. राजा भी सीबीआई की हिरासत में है।
घोटालों की यह सूची अभी और लंबी है. जिसकी बात फिर कभी, लेकिन इन घोटालों को देखने-पढ़ने के बाद यह सवाल भी उठता है कि आ़िखर इस कैंसर को खत्म करने के लिए क्या कोई क़दम भी उठाया गया. भारत में समय-समय पर भ्रष्टाचार को रोकने के लिए नियम और संस्थाएं बनती आई हैं. इसी वजह से सीबीआई और सीवीसी का गठन हुआ, लेकिन ये दोनों ही अपने मक़सद में नाकाम हैं. अलग-अलग कारणों से. आज तक के इतिहास में सीबीआई को अलग-अलग राजनैतिक पार्टियों ने बस इधर-उधर अपने विरोधियों के पीछे ही दौड़ाया है. ऐसा आरोप शुरू से सीबीआई पर विपक्षी लगाते रहे हैं. और सीवीसी को कोई अधिकार ही नहीं है. स्थिति यह हो गई है कि देश के प्रधानमंत्री इतने मजबूर और कमज़ोर हो गए हैं कि वह अपने ही मंत्रिमंडल के लोगों पर नकेल नहीं कस पा रहे. सरकार बचाना साख बचाने से ऊपर हो गया है. प्रधानमंत्री संसद से लेकर मीडिया तक कठघरे में खड़े किए गए, लेकिन फिर भी सरकार को सुध नहीं आई. सीवीसी पी जे थॉमस ने तो हद कर दी, लेकिन सरकार फिर भी कुछ नहीं कर पाई. आ़खिर क्यों? कहां गए लाल बहादुर शास्त्री और वी पी सिंह जैसे नेता, जो जनता के हित में अपनी कुर्सी तक छोड़ देते थे? कहां गए वे दिन, जब राजनीति घोटालेबाज़ों का गढ़ न होकर सम्मानित लोगों के लिए जनता की सेवा करने का एक ज़रिया था?
Post a Comment
अपनी बहुमूल्य टिपण्णी देना न भूले- धन्यवाद!!