यह विडम्बना ही है कि नेताजी सुभाष चन्द्र बोस जैसे महान जननेता और देश के सपूत को आज शायद ही कोई याद करता है या महत्व देता है. आज उनका जन्मदिवस है परंतु कितनी दुखद बात है कि यह कोई खबर नहीं बनती. नेताजी अपने जोशीले भाषणों के द्वारा युवाओं में जोश भर देते थे. 22 अप्रैल, 1945 को नेताजी ने रंगून (बर्मा) में अपना आखिरी भाषण दिया था. उस समय आज़ाद हिंद फोज इंफाल व पोपा फ्रंट में हार चुकी थी और नेताजी बर्मा छोड़ रहे थे. हिसार के लालचंद कस्बा ने अपनी डायरी में यह भाषण उर्दू में नोट किया था.
नेताजी का अंतिम भाषण:
चाहे हम बर्मा की आजादी की लड़ाई के लिए किए गए पहले युद्ध में पराजय का मुंह देख चुके हों, लेकिन हमें अंग्रेजों से आजादी प्राप्त करने के लिए अभी और कहीं अधिक लड़ाइयों को लड़ना है. मेरा ईमान है कि जो कुछ होगा, वह भलाई के लिए होगा, इसलिए मैं किसी हालत में हार नहीं मानता.
'बर्मा' जहाँ तुमने कई दिनों तक कई जगहों पर जबरदस्त लड़ाईयां लड़ीं व लड़ रहे हो, लेकिन हम इंफाल व पोपा फ्रंट में बर्मा की आजादी का पहला दौर हार चुके है. हम देश की आजादी के लिए हार नहीं मानेंगे. साथियों इस नाजुक वक्त में मेरा एक हुक्म है और वह है कि यदि तुम वक्ती तौर पर हार भी गए तो तिरंगे के नीचे लड़ते हुए बहादुरी की इस शान को दुनिया में जिंदा रखोगे.
अगर तुम ऐसा करोगे तो तुम्हारी आने वाली संतान गुलाम पैदा नहीं होगी. साथियों मैं तुम्हारे हाथों में प्यारे झंडे की शान और इज्जात को छोड़कर जा रहा हूँ और मुझे यकीन है कि तुम हिंदुस्तान की फौज को आजाद कराने वाली फौज के पहले दस्ते हो. यहाँ तक हम अपनी जान भी हिंदुस्तान की इज्जत बचाने के लिए कुर्बान कर देंगे. अगर मेरा अपना कोई जोर होता तो मैं तुम्हारे साथ रहता.
परंतु अफसोस, मैं तुम्हारी हार में शरीक नहीं हो सकता, लेकिन मैं आजादी की जद्दोजहद को जारी रखने के लिए और अफसरों की नसीहत से बर्मा छोड़ रहा हूँ. अगर मैं अंग्रेजों के कब्जे में आ गया तो वह मेरी क्या हालत करेगे. इसलिए मैं दूसरी जगह पर जाकर देश को आजाद करवाने के लिए काम करूंगा. मैं देश की आजादी लिए लड़ाई जारी रखूंगा.
याद रखो अंधेरे के बाद ही उजाला होता है और हिंदुस्तान जरूर आजाद होगा. इंकलाब जिंदाबाद.
courtesy तरकश ब्यूरो व्यक्तित्व
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