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Tuesday, December 7, 2010

0 इनके कारण राजा को छोड़ना पड़ा सिंहासन

एक ऐसा निरंकुश और भ्रष्टाचारी मंत्री जिसके आगे प्रधानमंत्री भी लाचार थे! ऐसे में कर्तव्य के प्रति समर्पित तीन सरकारी अफसरों ने घोटाले की परतें खोलने का दुस्साहस किया। तो तीन अन्य ने जनहित याचिका के जरिए दोषियों को कटघरे में खड़ा किया। विपरीत परिस्थितियों में भी किसी ने हिम्मत नहीं हारी। 

महाघोटाले की दास्तान में चंद हिम्मतवर किरदार

मिलाप जैन, डीजी इन्वेस्टिगेशन, आयकर विभाग 
45
मिनट में 9000 करोड़ के ड्राफ्ट! 
नौ कंपनियों द्वारा 45 मिनटों में ही सोलह-सोलह सौ करोड़ रुपए का ड्राफ्ट बनवाने से इनके कान खड़े हो गए। बैंकों से धनराशि का स्रोत मालूम किया तो लगा कि और बहुत जांच की जरूरत है। इतना मालूम चला कि सारा खेल नीरा राडिया के इर्द-गिर्द चल रहा था। सीबीडीटी से आग्रह किया और गृह मंत्रालय की स्वीकृति के बाद राडिया के घर, ऑफिस और मोबाइल मिलाकर कुल नौ फोन दस महीनों तक टैप कराए।

विनीत अग्रवाल सीबीआई के डीआईजी 
राजा के खिलाफ जांच की तो हटा दिए गए
महाराष्ट्र कैडर के इस आईपीएस अफसर ने 16 नवंबर 2009 को जैन से राडिया के फोन टेप के मुख्य अंश मांगे। 20 नवंबर को यह ब्यौरा मिलते ही आगे की कार्रवाई के लिए सीवीसी सिन्हा से मिले। जांच की जुर्रत का खामियाजा भुगता। उन्हें उनके गृह राज्य महाराष्ट्र वापस भेज दिया गया, लेकिन वे इतना काम कर चुके थे कि घोटाले के ताकतवर आरोपियों का बच निकलना मुश्किल हो गया।

प्रत्यूष सिन्हा चीफ विजिलेंस कमिश्नर 
मारा मंत्री के कमरे पर छापा 
विनीत अग्रवाल से सारी जानकारी मिलते ही उन्होंने 20 नवंबर को एफआईआर कराई। अगले ही दिन संचार भवन स्थित सभी संबंधित कार्यालयों पर छापा मारने को कहा। उस शनिवार को जब ए राजा अपने सचिव पीजे थॉमस के साथ एक सेमिनार में थे, सीबीआई उनके कमरों की तलाशी ले रही थी। 2जी स्पेक्ट्रम की फाइल खुद राजा के कमरे में रखी थी। यह पहली बार हुआ कि मंत्री के कार्यालय पर सीबीआई ने छापा मार कागजात जब्त किए। अगर सिन्हा ने छापे या एफआईआर से पहले अनुमति लेने की कोशिश की होती तो मामला आज भी दबा रह जाता। 

प्रशांत भूषण, सुप्रीम कोर्ट के वकील
हाईकोर्ट-सुप्रीम कोर्ट तक गए
लीक हुए राडिया टेप सुनकर व संबंधित दस्तावेज देखकर सेंटर फॉर पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन के इस सचिव को भरोसा था कि यह देश का सबसे बड़ा घोटाला है। मामले की जांच कर रहे सीबीआई के डीआईजी विनीत अग्रवाल को इस केस से हटाए जाने से लगा कि सरकार जांच दबाना चाहती है। पत्रकार प्रणंजय गुहा ठाकुरता और एक एनजीओ के निदेशक अनिल कुमार के साथ मिलकर इस हाई प्रोफाइल मामले की लड़ाई हाईकोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक लड़ी।

प्रणंजय गुहा ठाकुरता आर्थिक पत्रकार
पहले डटकर लिखा, फिर जमकर लड़े
तीन साल तक देश के सभी प्रतिष्ठित अखबारों और मैग्जीनों में उन्होंने 2जी घोटाले पर रिपोर्ट और लेख लिखे। जब प्रशांत भूषण ने उनसे जनहित याचिका दायर करने को कहा वे तो एक बार तो हिचके। 25 मई 2010 को दिल्ली हाईकोर्ट द्वारा याचिका खारिज किए जाने के बावजूद उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। जब 13 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट ने उनकी स्पेशल लीव पिटीशन पर राजा को नोटिस जारी किया तो लगा कि अब जांच पटरी पर आ जाएगी, दोषी बख्शे नहीं जाएंगे।

अनिल कुमार सचिव टेलीकॉम वॉचडॉग
तकनीक के जानकार, लड़ाई में एक साथ
जापान की फुजित्सु टेलीकॉम कंपनी में 17 साल काम किया। 1999 में भारत लौटे। तब यह सेक्टर बहुत तेजी से बढ़ रहा था। उन्होंने इस संस्था के जरिए टेलीकॉम सेक्टर की गड़बड़ियों पर निगाह रखी। जनता के सामने पेश करने की जिम्मेदारी ली। वोडाफोन की बिक्री, रैवेन्यू शेयरिंग से लाइसेंस राज जैसे विषयों पर कड़ा रुख अपनाया। टेलीकॉम तकनीक की गहरी जानकारी। प्रशांत भूषण ने उन्हें भी साथ ले लिया।

Source: National Newsroom, Bhaskar. अपनी बहुमूल्य टिपण्णी देना न भूले- धन्यवाद