दिल्ली राष्ट्रमंडल खेलों का आज समापन दिवस है. इन खेलों से देश ने काफी कुछ अर्जित भी किया है और काफी कुछ खोया भी है. प्रस्तुत है इसका लेखा जोखा –
क्या रहा अच्छा?
उद्घाटन समारोह :
राष्ट्रमंडल खेलों का उद्घाटन समारोह यादगार था. 7000 कलाकारों ने भारतीय कला और संस्कृति का अनोखा प्रदर्शन किया. देश विदेश के 6000 खिलाडियों और अधिकारियों ने मार्च पास्ट किया. संगीत, ढोल-नगाडों, वाद्य यंत्रों से नेहरू स्टेडियम खिल उठा. 60 करोड़ के हीलियम बैलून पर सवाल तो उठ रहे हैं पर यह आकर्षण का केन्द्र बना रहा. खुशी की बात यह भी है कि पूरे समारोह के दौरान कुछ भी अवांछित घटित नहीं हुआ और लोगों ने इसे सराहा.
भारतीय खिलाडियों का प्रदर्शन:
भारतीय खिलाडियों ने बहुत अच्छा प्रदर्शन किया. खेलों के समाप्त होने के बाद भारत दूसरे या तीसरे स्थान पर रहेगा. भारतीय खिलाडियों ने दिखा दिया कि देश में क्रिकेट ही सबकुछ नहीं है. उन्हें लोगों का भरपूर साथ भी मिला.
स्वयंसेवक:
करीब 15000 स्वयंसेवक राष्ट्रमंडल खेलों को सफल बनाने में जुटे हुए थे. यह सच है कि कई हजार स्वयंसेवक अपनी अपनी किट लेकर गायब भी हो गए. परंतु जो टिके रहे उन्होनें आगंतुकों, खिलाडियों और दर्शकों के साथ तालमेल बिठा कर खेलों को सफल बनाने में कोई कसर बाकी नहीं छोडी.
सेना:
भारतीय सेना एक बार फिर संकटमोचन के रूप में उभरी. चाहे अंतिम समय में साफ सफाई और बडे सामानों को हटाने में मदद करना हो या फिर टूटे हुए पूल को 4 दिन में फिर से खडा कर देना, भारतीय सेना ने देश की ईज्जत को और धूमिल होने से बचा लिया.
निवास और आहार:
हर कोई भारतीय खाने की प्रशंसा कर रहा है. इन राष्ट्रमंडल खेलों में आहार की उत्तम व्यवस्था की गई थी. खिलाडियों का निवास स्थान यानी खेल गाँव विवादों में जरूर रहा परंतु यह भी सच है कि इस बार का खेल गाँव अन्य देशों में बने खेल गावों से कहीं अच्छा था. यहाँ स्यूट, स्पा, बार और डिस्को थेक भी थे.
क्या रहा बुरा?
अभूतपूर्व देरी:
जहाँ स्टेडियम और खेल गाँव एक वर्ष पहले ही तैयार हो जाने थे, वे अंतिम समय तक तैयार ही नहीं हुई. इसलिए उनका अच्छी तरह से परीक्षण भी नहीं हुआ. अधिकतर स्टेडियमों में "राम भरोसे" खेल करवाए गए. सद्भाग्य से कोई दुर्घटना नहीं हुई.
गंदगी:
खेल गाँव परिसर की गंदगी ने देश को शर्मसार कर दिया. कचरा, कीचड़, पान की पीक और बिस्तर पर कुत्तों की शौच. देश-विदेश की मीडिया ने इसे जमकर उछाला और देश की प्रतिष्ठा को भारी धक्का लगा.
ट्राफिक:
दिल्ली की सड़कों पर जाम लग गया. यह नई बात नहीं है परंतु राष्ट्रमंडल खेलों ने इस समस्या को और भी बढा दिया. एक विशेष लेन मात्र खिलाडिओं की बसों के लिए आरक्षित कर दी गई और बाकी लोगों के पास पहले से भी कम स्थान रहा. लोग आँखें बचाकर सीडबल्यूजी लेन में घुसते और पकडे जाने पर भारी भरकम दंड देते. दिल्ली की सार्वजनिक यातायात प्रणाली तथा मेट्रो सेवा भी नाकाफी साबित हुई. दिल्ली हवाईअड्डे को नई दिल्ली से जोडने वाली एयरपोर्ट एक्सप्रेस मेट्रो तो शुरू ही नहीं हो सकी.
टिकट:
एक तरफ स्टेडियम खाली और दूसरी तरफ कोई टिकट खरीदने जाए तो जाए कहाँ? क्योंकि टिकटें तो है ही नहीं. तो टिकटें गई कहाँ? इसका जवाब आयोजकों के पास भी नहीं. यहाँ भी व्यापक भ्रष्टाचार. 17 लाख से अधिक टिकटें छपाई गई थी. उनमें से आधी ही टिकट विक्रेताओं तक पहुँची. बाकी कहाँ गई किसी को पता नहीं. बताया जा रहा है कि टिकटों को रद्दीवालों को बेच दिया गया.
क्या रहा सबसे शर्मनाक?
भ्रष्टाचार:
राष्ट्रमंडल खेलों के दौरान हुए भ्रष्टाचार ने देश को झकझोर कर रख दिया. 2000 करोड़ के लक्ष्य के साथ भारत में लाए गए ये खेल 70000 करोड़ की लागत वाले हो गए. इतना खर्च आखिर हुआ कहाँ. केवल एक नया स्टेडियम बना था, बाकी सभी स्टेडियम मात्र बेहतर बनाए गए थे. परंतु फिर भी उनके ऊपर नए स्टेडियम बनाने से भी अधिक खर्च किया गया. एक ट्रेडमील 9 लाख की, छाता 6000 का, एयर कंडीशनर 4 लाख का... भ्रष्टाचार की कोई सीमा ही नहीं छोड़ी. नेहरू स्टेडियम के पास बन रहा पूल खेल शुरू होने के 5 दिन पहले ही गिर गया. इससे बुरा और क्या हो सकता था.
रंगभेद, नस्लवाद:
राष्ट्रमंडल खेलों के दौरान यह समस्या उभर कर आई. दूरदर्शन के उद्घोषक ने मलावी देश के खिलाडियों के आगमन पर कहा कि - मलावी एक पीछड़ा हुआ देश है. बाद में इस पर दूरदर्शन को माफी मांगनी पड़ी. दक्षिण अफ्रीका के एक धावक ने भारतीय दर्शकों को "बंदर" कह दिया. एक अंग्रेज अधिकारी ने भारतीय तीरन्दाजी टीम के कोच लिम्बाराम के ऊपर छिंटाकशी की. और रही सही कसर न्यूज़ीलैंड के एक टीवी प्रस्तोता ने दिल्ली की मुख्यमंत्री के ऊपर अत्यंत अभद्र टिप्पणी कर पूरी कर दी.
बाल मजदूरी:
राष्ट्रमंडल खेलों की तैयारियों के दौरान बाल मजदूरी की घटनाएँ सामने आई. सीएनएन ने खेल गाँव के पास बच्चों को काम करते दिखाया. इससे देश की छवि धूमिल हुई.
खराब प्रचार:
देश और विदेश की मीडिया ने राष्ट्रमंडल खेलों के खराब प्रचार के लिए जी जान सी लगा दी. केवल वे तस्वीरें दिखाई जाती थी जो "गंदगी" दिखाती थी. खेलों के उजले पक्ष को प्रस्तुत नहीं किया. ऑस्ट्रेलिया और पश्चिमी मीडिया ने भारत का जमकरमखौल उडाया. एक ऑस्ट्रेलियन अधिकारी ने तो यहाँ तक कह दिया कि ऐसे खेल कराने की भारत की औकात ही नहीं है
उद्घाटन समारोह :
राष्ट्रमंडल खेलों का उद्घाटन समारोह यादगार था. 7000 कलाकारों ने भारतीय कला और संस्कृति का अनोखा प्रदर्शन किया. देश विदेश के 6000 खिलाडियों और अधिकारियों ने मार्च पास्ट किया. संगीत, ढोल-नगाडों, वाद्य यंत्रों से नेहरू स्टेडियम खिल उठा. 60 करोड़ के हीलियम बैलून पर सवाल तो उठ रहे हैं पर यह आकर्षण का केन्द्र बना रहा. खुशी की बात यह भी है कि पूरे समारोह के दौरान कुछ भी अवांछित घटित नहीं हुआ और लोगों ने इसे सराहा.
भारतीय खिलाडियों का प्रदर्शन:
भारतीय खिलाडियों ने बहुत अच्छा प्रदर्शन किया. खेलों के समाप्त होने के बाद भारत दूसरे या तीसरे स्थान पर रहेगा. भारतीय खिलाडियों ने दिखा दिया कि देश में क्रिकेट ही सबकुछ नहीं है. उन्हें लोगों का भरपूर साथ भी मिला.
स्वयंसेवक:
करीब 15000 स्वयंसेवक राष्ट्रमंडल खेलों को सफल बनाने में जुटे हुए थे. यह सच है कि कई हजार स्वयंसेवक अपनी अपनी किट लेकर गायब भी हो गए. परंतु जो टिके रहे उन्होनें आगंतुकों, खिलाडियों और दर्शकों के साथ तालमेल बिठा कर खेलों को सफल बनाने में कोई कसर बाकी नहीं छोडी.
सेना:
भारतीय सेना एक बार फिर संकटमोचन के रूप में उभरी. चाहे अंतिम समय में साफ सफाई और बडे सामानों को हटाने में मदद करना हो या फिर टूटे हुए पूल को 4 दिन में फिर से खडा कर देना, भारतीय सेना ने देश की ईज्जत को और धूमिल होने से बचा लिया.
निवास और आहार:
हर कोई भारतीय खाने की प्रशंसा कर रहा है. इन राष्ट्रमंडल खेलों में आहार की उत्तम व्यवस्था की गई थी. खिलाडियों का निवास स्थान यानी खेल गाँव विवादों में जरूर रहा परंतु यह भी सच है कि इस बार का खेल गाँव अन्य देशों में बने खेल गावों से कहीं अच्छा था. यहाँ स्यूट, स्पा, बार और डिस्को थेक भी थे.
क्या रहा बुरा?
अभूतपूर्व देरी:
जहाँ स्टेडियम और खेल गाँव एक वर्ष पहले ही तैयार हो जाने थे, वे अंतिम समय तक तैयार ही नहीं हुई. इसलिए उनका अच्छी तरह से परीक्षण भी नहीं हुआ. अधिकतर स्टेडियमों में "राम भरोसे" खेल करवाए गए. सद्भाग्य से कोई दुर्घटना नहीं हुई.
गंदगी:
खेल गाँव परिसर की गंदगी ने देश को शर्मसार कर दिया. कचरा, कीचड़, पान की पीक और बिस्तर पर कुत्तों की शौच. देश-विदेश की मीडिया ने इसे जमकर उछाला और देश की प्रतिष्ठा को भारी धक्का लगा.
ट्राफिक:
दिल्ली की सड़कों पर जाम लग गया. यह नई बात नहीं है परंतु राष्ट्रमंडल खेलों ने इस समस्या को और भी बढा दिया. एक विशेष लेन मात्र खिलाडिओं की बसों के लिए आरक्षित कर दी गई और बाकी लोगों के पास पहले से भी कम स्थान रहा. लोग आँखें बचाकर सीडबल्यूजी लेन में घुसते और पकडे जाने पर भारी भरकम दंड देते. दिल्ली की सार्वजनिक यातायात प्रणाली तथा मेट्रो सेवा भी नाकाफी साबित हुई. दिल्ली हवाईअड्डे को नई दिल्ली से जोडने वाली एयरपोर्ट एक्सप्रेस मेट्रो तो शुरू ही नहीं हो सकी.
टिकट:
एक तरफ स्टेडियम खाली और दूसरी तरफ कोई टिकट खरीदने जाए तो जाए कहाँ? क्योंकि टिकटें तो है ही नहीं. तो टिकटें गई कहाँ? इसका जवाब आयोजकों के पास भी नहीं. यहाँ भी व्यापक भ्रष्टाचार. 17 लाख से अधिक टिकटें छपाई गई थी. उनमें से आधी ही टिकट विक्रेताओं तक पहुँची. बाकी कहाँ गई किसी को पता नहीं. बताया जा रहा है कि टिकटों को रद्दीवालों को बेच दिया गया.
क्या रहा सबसे शर्मनाक?
भ्रष्टाचार:
राष्ट्रमंडल खेलों के दौरान हुए भ्रष्टाचार ने देश को झकझोर कर रख दिया. 2000 करोड़ के लक्ष्य के साथ भारत में लाए गए ये खेल 70000 करोड़ की लागत वाले हो गए. इतना खर्च आखिर हुआ कहाँ. केवल एक नया स्टेडियम बना था, बाकी सभी स्टेडियम मात्र बेहतर बनाए गए थे. परंतु फिर भी उनके ऊपर नए स्टेडियम बनाने से भी अधिक खर्च किया गया. एक ट्रेडमील 9 लाख की, छाता 6000 का, एयर कंडीशनर 4 लाख का... भ्रष्टाचार की कोई सीमा ही नहीं छोड़ी. नेहरू स्टेडियम के पास बन रहा पूल खेल शुरू होने के 5 दिन पहले ही गिर गया. इससे बुरा और क्या हो सकता था.
रंगभेद, नस्लवाद:
राष्ट्रमंडल खेलों के दौरान यह समस्या उभर कर आई. दूरदर्शन के उद्घोषक ने मलावी देश के खिलाडियों के आगमन पर कहा कि - मलावी एक पीछड़ा हुआ देश है. बाद में इस पर दूरदर्शन को माफी मांगनी पड़ी. दक्षिण अफ्रीका के एक धावक ने भारतीय दर्शकों को "बंदर" कह दिया. एक अंग्रेज अधिकारी ने भारतीय तीरन्दाजी टीम के कोच लिम्बाराम के ऊपर छिंटाकशी की. और रही सही कसर न्यूज़ीलैंड के एक टीवी प्रस्तोता ने दिल्ली की मुख्यमंत्री के ऊपर अत्यंत अभद्र टिप्पणी कर पूरी कर दी.
बाल मजदूरी:
राष्ट्रमंडल खेलों की तैयारियों के दौरान बाल मजदूरी की घटनाएँ सामने आई. सीएनएन ने खेल गाँव के पास बच्चों को काम करते दिखाया. इससे देश की छवि धूमिल हुई.
खराब प्रचार:
देश और विदेश की मीडिया ने राष्ट्रमंडल खेलों के खराब प्रचार के लिए जी जान सी लगा दी. केवल वे तस्वीरें दिखाई जाती थी जो "गंदगी" दिखाती थी. खेलों के उजले पक्ष को प्रस्तुत नहीं किया. ऑस्ट्रेलिया और पश्चिमी मीडिया ने भारत का जमकरमखौल उडाया. एक ऑस्ट्रेलियन अधिकारी ने तो यहाँ तक कह दिया कि ऐसे खेल कराने की भारत की औकात ही नहीं है
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