नई दिल्ली. भारत में भ्रष्टाचार आज सबसे बड़ा मुद्दा बना हुआ है। इससे देश का हर शख्स प्रभावित है। लेकिन सिंगापुर में भ्रष्टाचार सबसे कम है।
दुनिया के 178 देशों में सबसे कम भ्रष्टाचार डेनमार्क, न्यूजीलैंड और सिंगापुर जैसे देशों में है। ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल की तरफ से जारी 2010 करप्शन परसेप्शन इंडेक्स (सीपीआई) के मुताबिक डेनमार्क, न्यूजीलैंड और सिंगापुर 9.3 अंकों के साथ संयुक्त रूप से शीर्ष पर हैं। इसके उलट, अराजकता वाले अफ्रीकी देश सोमालिया सबसे 'भ्रष्ट' देश बताया गया है। दस अंकों के स्केल पर सोमालिया को सबसे कम 1.1 अंक मिले हैं।
सिंगापुर के हाल के बहाने हम समझ सकते हैं कि भारत में भ्रष्टाचार की वजह क्या हो सकती है?
सिंगापुर क्यों है सबसे कम भ्रष्ट?
ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल के मुताबिक मध्यम आकार की अर्थव्यवस्था, राजनीतिक स्थिरता, कम आबादी जैसे कारकों की वजह से सिंगापुर जैसे देशों में सबसे कम भ्रष्टाचार है।
एक ही पार्टी सत्ता में
सिंगापुर में भ्रष्टाचार कम होने के पीछे राजनीतिक स्थिरता भी एक अहम कारक है। यहां 1959 से एक ही पार्टी पीपल्स एक्शन पार्टी का शासन रहा है। इस पार्टी की सरकार सिंगापुर की आज़ादी से पहले से ही सत्ता पर काबिज है, जब सिंगापुर स्वायत्त ब्रिटिश उपनिवेश था। इसी पार्टी के नेता ली कुअन ये 1959 से 1990 तक सिंगापुर के प्रधानमंत्री रहे। कुअन तो यहां तक मानते थे कि बेहतर लोकतंत्र आर्थिक तरक्की के रास्ते में रोड़ा बनता है। हालांकि, एक ही पार्टी के इतने लंबे समय तक प्रभुत्व को कई जानकार लोकतंत्र के लिए अच्छा संकेत नहीं मानते हैं। वे मानते हैं कि सिंगापुर में उदार लोकतांत्रिक सरकार नहीं है।
कम आबादी
2005 में हुई आखिरी जनगणना के मुताबिक सिंगापुर की आबादी 44.80 लाख है, जो कई देशों की तुलना में काफी कम है। यही स्थिति डेनमार्क और न्यूजीलैंड की भी है। ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल के आंकड़ों के मुताबिक दुनिया के जिन देशों भ्रष्टाचार कम है, वहां आबादी भी कम है।
कड़े कानून, फांसी की दर ज़्यादा
सिंगापुर में अपराधों के लिए कड़ी सज़ा देने का कानून है। यहां हत्या, नशीली दवाओं के कारोबार और कुछ खास किस्म के हथियारों को रखने पर फांसी की सज़ा दी जाती है। सिंगापुर में आबादी के हिसाब से दुनिया में सबसे ज़्यादा फांसी की सज़ा दी जाती है। 2010 में सिंगापुर में 8 लोगों को सज़ा-ए-मौत सुनाई गई। संयुक्त राष्ट्र के आंकड़े के मुताबिक सिंगापुर में 1994 और 1999 के बीच फांसी की दर दुनिया में सबसे ज़्यादा थी। उस दौरान सिंगापुर में हर एक लाख की आबादी पर 1.357 लोगों को फांसी दी गई।
एमनेस्टी इंटरनेशनल ने भी सिंगापुर में फांसी दिए जाने की दर को दुनिया में सबसे ज़्यादा बताया है। 2004 में जारी एमनेस्टी की एक रिपोर्ट के मुताबिक 1991 से 2004 के बीच सिंगापुर में 400 लोगों को फांसी की सज़ा दी गई। सबसे ज्यादा फांसी देने वाले देशों की सूची में दूसरे नंबर पर रहे सऊदी अरब की तुलना में यह आंकड़ा 13 गुना ज़्यादा था। सिंगापुर के गृह मंत्रालय के मुताबिक 1999 और 2003 के बीच 138 लोगों को सज़ा-ए-मौत दी गई। सिर्फ 2000 में ही 21 लोगों को फांसी की सज़ा दी गई थी। संयुक्त राष्ट्र की मानवाधिकार से जुड़ी चिंताओं के जवाब में सिंगापुर सरकार ने इसी साल फरवरी में अपना बचाव करते हुए कहा था कि वह मौत की सज़ा को मानवाधिकार का नहीं बल्कि न्याय व्यवस्था का मामला मानती है। सिंगापुर के कड़े कानूनों का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि वहां बलात्कार, दंगा, तोड़फोड़ जैसे अपराधों के लिए बेंत मारने की सज़ा दी जाती है। इस तरह की सजा दूसरे संपन्न देशों में बहुत कम ही देखने को मिलती है।
उत्तर और दक्षिण एशिया में सबसे बेहतर नौकरशाही
नौकरशाही के कामकाज के तरीके, क्षमता और पारदर्शिता को लेकर 2009 में पर्क द्वारा कराए गए एक सर्वे में सिंगापुर को उत्तर और दक्षिण एशियाई मुल्कों में पहला स्थान दिया गया था। यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि इसी सर्वे में भारत को आखिरी स्थान दिया गया था।
दरअसल, सिंगापुर सरकार ने नौकरशाही के कामकाज के तौर तरीकों को बेहतर करने, उनकी क्षमता बढ़ाने और ज़्यादा से ज़्यादा पारदर्शी व्यवस्था अपनाने के लिए नौकरशाही के सिस्टम में कई आमूलचूल बदलाव किए। नौकरशाही में पहले से फैली सांगठनिक जकड़न, पारदर्शिता की कमी, पदानुक्रम को लेकर रक्षात्मक भाव को दूर करने के लिए सिंगापुर सरकार ने हाल के कुछ सालों में बड़े बदलाव किए हैं। आधुनिक पूंजीवादी देशों में 1980 और 1990 के दशकों में विकसित हुए प्रबंधन के नए तरीके को सिंगापुर ने अपनाया। इसके तहत विभिन्न विभागों, मंत्रालयों और एजेंसियों को स्वायत्त एजेंसी में तब्दील किया। सिंगापुर सरकार ने इन स्वायत्त एजेंसियों को बहुत ज़्यादा वित्तीय और प्रशासनिक अधिकार दिए। उन्हें अंतिम नतीजों के आधार पर नीतियां बनाने को कहा गया।
सिंगापुर में पीडब्लूडी, पब्लिक यूटीलिटी बोर्ड, हाउसिंग और डेवलपमेंट बोर्ड, इनलैंड रेवेन्यू अथॉरिटी, पोर्ट अथॉरिटी, ब्रॉडकास्टिंग अथॉरिटी और लैंड ट्रांसपोर्ट अथॉरिटी ऐसी ही स्वायत्त एजेंसियां हैं।
इसी तरह से 90 के दशक में सिंगापुर सरकार ने मंत्रालयों और संवैधानिक बोर्डों में भर्ती के तरीके को बदल दिया था। इसके तहत भर्ती की प्रक्रिया का विकेंद्रीकरण कर दिया गया था। इस बदलाव के बाद मंत्रालय और बोर्ड अपने स्तर पर निचले और मझले स्तर की भर्तियां करने लगे थे। इसी तरह से नियमों में बदलाव के चलते निजी क्षेत्रों में काम करने वाले अधिकारियों को किसी भी स्तर पर सरकारी सेवा में अवसर देने का रास्ता भी खोला गया। सार्वजनिक क्षेत्र की नौकरियों में स्थायी नौकरियों की जगह तय मियाद के कॉन्ट्रैक्ट के आधार पर नौकरी देने का चलन भी सिंगापुर में बढ़ गया।
सरकारी सिस्टम में शीर्ष पर बैठे अफसरों को बिजनेस एग्जीक्यूटिव की तरह पेश आने को कहा गया ताकि मानव संसाधन के प्रबंधन और कर्मचारियों के कामकाज के तरीके का वे बेहतर तरीके से आकलन और प्रबंधन कर सकें।
95.9 फीसदी लोग पढ़े-लिखे
सिंगापुर में 2010 के आंकड़ों के मुताबिक 15 साल या इससे ऊपर आयु वर्ग में 95.9 फीसदी साक्षरता है, जो भारत से कहीं ज्यादा है।
ज्यादा आय
सिंगापुर इस समय दुनिया के सबसे धनी देशों में से एक है। कई पश्चिमी देशों के नागरिकों की तुलना में सिंगापुर के नागरिकों की आय ज़्यादा है।
दुनिया के 178 देशों में सबसे कम भ्रष्टाचार डेनमार्क, न्यूजीलैंड और सिंगापुर जैसे देशों में है। ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल की तरफ से जारी 2010 करप्शन परसेप्शन इंडेक्स (सीपीआई) के मुताबिक डेनमार्क, न्यूजीलैंड और सिंगापुर 9.3 अंकों के साथ संयुक्त रूप से शीर्ष पर हैं। इसके उलट, अराजकता वाले अफ्रीकी देश सोमालिया सबसे 'भ्रष्ट' देश बताया गया है। दस अंकों के स्केल पर सोमालिया को सबसे कम 1.1 अंक मिले हैं।
सिंगापुर के हाल के बहाने हम समझ सकते हैं कि भारत में भ्रष्टाचार की वजह क्या हो सकती है?
सिंगापुर क्यों है सबसे कम भ्रष्ट?
ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल के मुताबिक मध्यम आकार की अर्थव्यवस्था, राजनीतिक स्थिरता, कम आबादी जैसे कारकों की वजह से सिंगापुर जैसे देशों में सबसे कम भ्रष्टाचार है।
एक ही पार्टी सत्ता में
सिंगापुर में भ्रष्टाचार कम होने के पीछे राजनीतिक स्थिरता भी एक अहम कारक है। यहां 1959 से एक ही पार्टी पीपल्स एक्शन पार्टी का शासन रहा है। इस पार्टी की सरकार सिंगापुर की आज़ादी से पहले से ही सत्ता पर काबिज है, जब सिंगापुर स्वायत्त ब्रिटिश उपनिवेश था। इसी पार्टी के नेता ली कुअन ये 1959 से 1990 तक सिंगापुर के प्रधानमंत्री रहे। कुअन तो यहां तक मानते थे कि बेहतर लोकतंत्र आर्थिक तरक्की के रास्ते में रोड़ा बनता है। हालांकि, एक ही पार्टी के इतने लंबे समय तक प्रभुत्व को कई जानकार लोकतंत्र के लिए अच्छा संकेत नहीं मानते हैं। वे मानते हैं कि सिंगापुर में उदार लोकतांत्रिक सरकार नहीं है।
कम आबादी
2005 में हुई आखिरी जनगणना के मुताबिक सिंगापुर की आबादी 44.80 लाख है, जो कई देशों की तुलना में काफी कम है। यही स्थिति डेनमार्क और न्यूजीलैंड की भी है। ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल के आंकड़ों के मुताबिक दुनिया के जिन देशों भ्रष्टाचार कम है, वहां आबादी भी कम है।
कड़े कानून, फांसी की दर ज़्यादा
सिंगापुर में अपराधों के लिए कड़ी सज़ा देने का कानून है। यहां हत्या, नशीली दवाओं के कारोबार और कुछ खास किस्म के हथियारों को रखने पर फांसी की सज़ा दी जाती है। सिंगापुर में आबादी के हिसाब से दुनिया में सबसे ज़्यादा फांसी की सज़ा दी जाती है। 2010 में सिंगापुर में 8 लोगों को सज़ा-ए-मौत सुनाई गई। संयुक्त राष्ट्र के आंकड़े के मुताबिक सिंगापुर में 1994 और 1999 के बीच फांसी की दर दुनिया में सबसे ज़्यादा थी। उस दौरान सिंगापुर में हर एक लाख की आबादी पर 1.357 लोगों को फांसी दी गई।
एमनेस्टी इंटरनेशनल ने भी सिंगापुर में फांसी दिए जाने की दर को दुनिया में सबसे ज़्यादा बताया है। 2004 में जारी एमनेस्टी की एक रिपोर्ट के मुताबिक 1991 से 2004 के बीच सिंगापुर में 400 लोगों को फांसी की सज़ा दी गई। सबसे ज्यादा फांसी देने वाले देशों की सूची में दूसरे नंबर पर रहे सऊदी अरब की तुलना में यह आंकड़ा 13 गुना ज़्यादा था। सिंगापुर के गृह मंत्रालय के मुताबिक 1999 और 2003 के बीच 138 लोगों को सज़ा-ए-मौत दी गई। सिर्फ 2000 में ही 21 लोगों को फांसी की सज़ा दी गई थी। संयुक्त राष्ट्र की मानवाधिकार से जुड़ी चिंताओं के जवाब में सिंगापुर सरकार ने इसी साल फरवरी में अपना बचाव करते हुए कहा था कि वह मौत की सज़ा को मानवाधिकार का नहीं बल्कि न्याय व्यवस्था का मामला मानती है। सिंगापुर के कड़े कानूनों का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि वहां बलात्कार, दंगा, तोड़फोड़ जैसे अपराधों के लिए बेंत मारने की सज़ा दी जाती है। इस तरह की सजा दूसरे संपन्न देशों में बहुत कम ही देखने को मिलती है।
उत्तर और दक्षिण एशिया में सबसे बेहतर नौकरशाही
नौकरशाही के कामकाज के तरीके, क्षमता और पारदर्शिता को लेकर 2009 में पर्क द्वारा कराए गए एक सर्वे में सिंगापुर को उत्तर और दक्षिण एशियाई मुल्कों में पहला स्थान दिया गया था। यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि इसी सर्वे में भारत को आखिरी स्थान दिया गया था।
दरअसल, सिंगापुर सरकार ने नौकरशाही के कामकाज के तौर तरीकों को बेहतर करने, उनकी क्षमता बढ़ाने और ज़्यादा से ज़्यादा पारदर्शी व्यवस्था अपनाने के लिए नौकरशाही के सिस्टम में कई आमूलचूल बदलाव किए। नौकरशाही में पहले से फैली सांगठनिक जकड़न, पारदर्शिता की कमी, पदानुक्रम को लेकर रक्षात्मक भाव को दूर करने के लिए सिंगापुर सरकार ने हाल के कुछ सालों में बड़े बदलाव किए हैं। आधुनिक पूंजीवादी देशों में 1980 और 1990 के दशकों में विकसित हुए प्रबंधन के नए तरीके को सिंगापुर ने अपनाया। इसके तहत विभिन्न विभागों, मंत्रालयों और एजेंसियों को स्वायत्त एजेंसी में तब्दील किया। सिंगापुर सरकार ने इन स्वायत्त एजेंसियों को बहुत ज़्यादा वित्तीय और प्रशासनिक अधिकार दिए। उन्हें अंतिम नतीजों के आधार पर नीतियां बनाने को कहा गया।
सिंगापुर में पीडब्लूडी, पब्लिक यूटीलिटी बोर्ड, हाउसिंग और डेवलपमेंट बोर्ड, इनलैंड रेवेन्यू अथॉरिटी, पोर्ट अथॉरिटी, ब्रॉडकास्टिंग अथॉरिटी और लैंड ट्रांसपोर्ट अथॉरिटी ऐसी ही स्वायत्त एजेंसियां हैं।
इसी तरह से 90 के दशक में सिंगापुर सरकार ने मंत्रालयों और संवैधानिक बोर्डों में भर्ती के तरीके को बदल दिया था। इसके तहत भर्ती की प्रक्रिया का विकेंद्रीकरण कर दिया गया था। इस बदलाव के बाद मंत्रालय और बोर्ड अपने स्तर पर निचले और मझले स्तर की भर्तियां करने लगे थे। इसी तरह से नियमों में बदलाव के चलते निजी क्षेत्रों में काम करने वाले अधिकारियों को किसी भी स्तर पर सरकारी सेवा में अवसर देने का रास्ता भी खोला गया। सार्वजनिक क्षेत्र की नौकरियों में स्थायी नौकरियों की जगह तय मियाद के कॉन्ट्रैक्ट के आधार पर नौकरी देने का चलन भी सिंगापुर में बढ़ गया।
सरकारी सिस्टम में शीर्ष पर बैठे अफसरों को बिजनेस एग्जीक्यूटिव की तरह पेश आने को कहा गया ताकि मानव संसाधन के प्रबंधन और कर्मचारियों के कामकाज के तरीके का वे बेहतर तरीके से आकलन और प्रबंधन कर सकें।
95.9 फीसदी लोग पढ़े-लिखे
सिंगापुर में 2010 के आंकड़ों के मुताबिक 15 साल या इससे ऊपर आयु वर्ग में 95.9 फीसदी साक्षरता है, जो भारत से कहीं ज्यादा है।
ज्यादा आय
सिंगापुर इस समय दुनिया के सबसे धनी देशों में से एक है। कई पश्चिमी देशों के नागरिकों की तुलना में सिंगापुर के नागरिकों की आय ज़्यादा है।
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