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Tuesday, June 22, 2010

1 इज़रायल के दुस्साहस - 1: ऑपरेशन ओपेरा

80 के दशक में इराक ने अपनी परमाणु योजनाओं को तेज़ कर दिया था. इराक का कहना था कि उसका परमाणु कार्यक्रम नागरिक जरूरतों के लिए है और उसका परमाणु बम बनाने का कोई इरादा नहीं है. परंतु अमरीका और इज़रायल सहित अनेक देश इराक की इस बात पर यकीन नहीं रखते थे. 

इराक ने फ्रांस के सहयोग से एक परमाणु रिएक्टर स्थापित कर दिया था. इजरायल का मानना था कि यह परमाणु रिएक्टर उसके लिए खतरनाक साबित हो सकता है. 7 जून 1981 को कुछ इज़रायली लडाकु विमानों ने विपरीत परिस्थियो में इराक के अंदर घुस कर राजधानी बगदाद के समीप स्थित इस परमाणु रिएक्टर को धमाकों से उडा दिया. यह दुस्साहसी कदम ऑपरेशन ओपेरा के नाम से जाना जाता है.

इराक ने 60 के दशक मे अपना परमाणु कार्यक्रम शुरू किया. 70 का दशक आते आते उसने परमाणु रिएक्टर की आवश्यकता महसूस की. इराक राजनेताओं ने इस बाबत फ्रांस और इटाली से बात की. इराक फ्रांस से गैस ग्रेफाइट प्लूटोनियम प्रोडक्शन रिएक्टर चाहता था. परंतु फ्रांस इसके लिए राज़ी नहीं हुआ. फ्रांस को डर था कि इससे इराक संवर्धित प्लूटोनियम बनाने में सफल हो जाएगा और बाद में परमाणु बम बनाने में भी. इटली ने भी यही रूख अपनाया. परंतु इराक सरकार ने कोशिशें जारी रखी और आखिरकार वे फ्रांस सरकार को ओज़िरिज़ क्लास का रिएक्टर स्थापित करने में मदद प्राप्त करने में सफल हो गए. यह 40 मेगावॉट का लाइट वाटर न्यूक्लियर रिएक्टर था, जिसका निर्माण 1979 में बगदाद के समीप अल तुवेथा में किया गया. इस रिएक्टर का नाम फ्रांस ने ऑजिराक [ऑज़िरिज़ और इराक को मिलाकर] रखा. इराक ने इसे तामुज़ नाम दिया. 

इराक और फ्रांस के बीच जो समझौता हुआ था उसके तहत इस रिएक्टर का सैन्य इस्तेमाल वर्जित था. विशेषज्ञ मानते थे कि इराक इस रिएक्टर की मदद से परमाणु बम नहीं बना पाएगा. आईएईए के निरीक्षकों ने भी रिएक्टर का दौरा करने के बाद यही बात कही. परंतु यह बात हर किसी के गले नहीं उतरी. अमरीका की एजेंसी सीआईए का मानना था कि इराक परमाणु बम बनाने के प्रति समर्पित है और इस उसकी यह महत्वाकांक्षा पूरी करने में ओज़िराक महत्वपूर्ण भाग निभा सकता है. इज़रायली गुप्तचर एजेंसी मोसाद का भी यही मानना था. विशेष तौर पर इज़रायल इसे अपने लिए गम्भीर खतरा मानने लगा था और इस रिएक्टर को किसी भी तरह से निष्क्रिय करना चाहता था. 

ऑपरेशन ओपेरा
काफी सोच विचार के बाद इज़रायली सेना ने ऑपरेशन ओपेरा की रूपरेखा तैयार की. इस ऑपरेशन के तहत कुछ इज़रायली लड़ाकु जहाज इज़रायली सैन्य बेस से उड़कर जोर्डन और सउदी अरब के रास्ते इराक में दाखिल होते और ऑजिराक रिएक्टर को बमों से उडाकर वापिस उसी रास्ते लौट आते. यह ऑपरेशन आसान नहीं था. इज़रायली बेस से यह रिएक्टर 1600 किमीदूर था. यानी कि आने और जाने में करीब 3200 की दूरी तय करनी पड़ती. इज़रायली लडाकु विमानों F-16A आदि में इंधन की इतनी ही मात्रा आती थी. यानी कि यह तय था कि ऑपरेशन ओपेरा में भाग लेने वाले विमानों के लौटने की गारंटी नहीं थी. यदि विमान इराकी वायुसेना से उलझ जाए और जरा सी भी देर हवा में अतिरिक्त रह जाए तो काफी बड़ी समस्या उत्पन्न होने वाली थी. 


दूसरी तरफ विमानों को जोर्डन और सउदी अरब के ऊपर से उडकर जाना था जो कि एक और समस्या थी. इसके अलावा इज़रायली गुप्तचल संस्था मोसाद को भी सही सही मालूम नहीं था कि इराक ने ओज़िराक रिएक्टर की सुरक्षा के लिए क्या इंतजाम किए हैं. मोसाद को पता नहीं था कि वहाँ कितनी संख्या में एंटी एयरक्राफ्ट मिसाइलें तैनात की गई हैं. कुल मिलाकर यह ऑपरेशन दुस्साहसी था और इसमें भाग लेने वाले सैनिक जानते थे कि उनका वापस लौटना संदिग्ध है. 

मेनाशेम बेजिन, जो कि उस समय इज़रायल के प्रधानमंत्री थे, ने इस ऑपरेशन को मंजूरी दे दी थी. ऑपरेशन का दिन चुना गया 7 जून जो कि रविवार था. रविवार इसलिए ताकि रिएक्टर में काम कर रहे विदेशी नागरिक और वैज्ञानिक छुट्टी पर हों और जब इजरायली जहाज बम गिराएँ तो कम से कम नागरिक मरें. 

इस ऑपरेशन के लिए F-16A लडाकु जहाज को चुना गया और इनमें इंधन की अतिरिक्त टंकी लगाई गई. F-16 को सहायता देने के लिए F-15 जहाजों के समूह तैयार किए गए. एफ15 का काम एफ16 को मदद पहुँचाना, आकाश में नजर रखना और सम्भावित खतरे से निपटना था. 

7
जून की शाम 4 बजे इज़रायली वायु सेना के 8 एफ16 विमान मिशन की कामयाबी की दुआ के साथ इजरायली बेस से उड़े और जोर्डन की सीमा में दाखिल हो गए. इन विमानों के ऊपर इतनी बडी मात्रा में हथियार लदे थे कि सउदी अरब की सीमा के भीतर ही अतिरिक्त टंकियों का इंधन समाप्त हो गया और इन टंकियों को सउदी रेगिस्तान में गिरा दिया गया. अब ये विमान खुद के इंधन के भरोसे थे. उनके पास समय कम था और कार्य जटिल. 

विमानों को मार्ग में कोई बाधा नजर नहीं आई और ये आराम से इराकी सीमा में दाखिल हो गए. कुछ एफ15 विमान बाकी बेड़े से अलग हो गए ताकी इनका बैकअप के तहत इस्तेमाल किया जा सके. शाम 6:35 बजे एफ16 विमानों को ऑजिराक रिएक्टर नजर आया. वे उससे 20 किलोमीटर दूर थे. सभी एफ16 विमानों ने एक दूसरे से नियत दूरी बनाई और 35 डिग्री के कोण पर गोता लगाया. जब ये विमान रिएक्टर से 1100 मीटर दूर थे तो इन्होनें 5 सेकंड के अंतराल पर मार्क 84 बम गिराने शुरू किए. इजरायली रिपोर्ट के अनुसार कुल 16 बम गिराए गए जिसमें से 14 फटे और 2 डिटोनेट नहीं हुए. 




[
ध्वस्त ऑजिराक]

इराकी एंटी एयरक्राफ्ट डिविज़न ने जवाबी कार्रवाही की. परंतु तब तक काफी देर हो चुकी थी. इजरायली एफ16 स्क्वाड्रन ने तुरंत 12200 मीटर की ऊंचाई प्राप्त की और वे इजरायल की तरफ लौटने लगे. मार्ग में उन्हें कोई चुनौती नहीं मिली परंतु उनका इंधन समाप्त होने लगा था. जब सभी विमान इजरायली सीमा के भीतर लौटे तब तक उनका इंधन लगभग समाप्त हो चुका था. परंतु सभी विमान सकुशल लैंड कर गए. 

इसके बाद:
इजरायल के इस दुस्साहसी कदम के चहुँ ओर आलोचना हुई. इस घटना के बारे में जब अमरीकी राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन को पता चला तो उन्होनें कथित रूप से अपने सुरक्षा सलाहकार को कहा कि "लड़के हमेशा लड़के ही रहेंगे". उन पर दबाव था कि वे इजरायल के साथ दूरी बना लें. लेकिन उन्होनें इसका उल्टा किया और इज़रायल के साथ सैन्य संबंधों को और भी मजबूत बनाया. 

संयुक्त  राष्ट्र ने 36/27 रिजोल्यूशन पास कर इस हमले को आक्रामकता की पराकाष्ठा कहा. संयुक्त राष्ट्र ने इजरायल को निर्देश दिया की वह इस हमले में हुए जान माल के नुकसान का मुआवजा चुकाए. रिजोल्यूशन में यह भी कहा गया कि इजरायल आगे से ऐसा कोई हमला ना करे.

इससे पहले सयुंक्त राष्ट्र में इजरायल की परमाणु नीतियों के ऊपर भी बहस होती थी. इजरायल स्वयं नागरिक इस्तेमाल के लिए परमाणु रिएक्टर स्थापित करने की बात कहता था परंतु कई देश मानते थे कि इजरायल स्वयं परमाणु बम बना रहा है. 

फ्रांस ने इस घटना की निंदा की और कहा कि उसका उद्देश्य इराक की नागरिक जरूरतों को पूरा करने तक ही है. फ्रांस इसलिए भी नाराज था क्योंकि इस हमले में उसका एक नागरिक मारा गया था. परंतु बाद में इजरायल फ्रांस पर दबाव बनाने मे कामयाब रहा और फ्रांस ने पहले हामी भरने के बाद बाद में ओजिराक रिएक्टर को फिर से बनाने मे इराक की मदद करने से इंकार कर दिया. 

इज़रायल के इस हमले की वजह से इराक का परमाणु कार्यक्रम बेहद प्रभावित हुआ और वह फिर कभी "सही" दिशा में आगे नहीं बढ पाया. इस हमले की वजह से प्रधानमंत्री मेनाशेम बेजिन को भी लाभ हुआ और तीन सप्ताह के बाद हुए चुनावों में उनकी पार्टी को जीत हासिल हुई. 





इस हमले में इलान रेमोन नामक एक 27 वर्षीय युवा पायलट ने भी भाग लिया था. इलान बाद में इजरायल ने प्रथम अंतरिक्षयात्री बने. 2003 में हुए कोलम्बिया स्पेश शटल हादसे में उनकी मृत्यु हो गई



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Monday, June 21, 2010

0 इज़रायल के दुस्साहस-2: ऑपरेशन एंटाबी (थंडरबॉल्ट)

                                          
 विशेष रूप से हम भारतीयों के लिए.      
               [जोनाथन नेतन्याहू]                               
 [इदी अमीन] 

मध्यपूर्व में चारों तरफ से इस्लामिक देशों से घिर छोटे से राष्ट्र इज़रायल के लिए अपना अस्तित्व बनाए रखने की चुनौती हर समय बनी रहती है. इस देश की आबादी काफी कम है और इसलिए उनके लिए अपने हर नागरिक के जीवन की कीमत भी काफी अधिक है.

इज़रायल अपने नागरिकों पर आने वाले किसी भी संकट का मूँह तोड़ जवाब देता है और ऑपरेशन एंटाबी या ऑपरेशन थंडरबॉल्ट ऐसा ही एक करारा जवाब था. ऑपरेशन एंटाबी के दौरान इजरायली कमांडो और सेना ने एक दूसरे देश के हवाई अड्डे में बिना अनुमति के घुस कर अपहृत किए गए अपने नागरिकों को छुड़वा लिया था. आज भी दुनिया के सबसे बड़े नागरिक सुरक्षा अभियानों में ऑपरेशन एंटाबी का नाम सबसे ऊपर आता है. 

विमान अपहरण:
27 जून 1976 का दिन. एयर फ्रांस की फ्लाइट 139 ने तेल अवीव से उडान भरी. इस विमान में विमान चालक दल के 12 लोग और 248 यात्री सवार थे. विमान थोडी देर बाद इजिप्त की राजधानी एथेंस पहुँचा और वहाँ लैंडिग की. इसके बाद इसने पेरिस के लिए उडान भरी. जिस समय विमान इजिप्त से बाहर निकल रहा था तब दोपहर के 12:30 बज रहे थे. अचानक दो यात्री खड़े हुए और केबिन की तरफ जाने लगे. आगे की सीट पर बैठे दो अन्य लोग भी उनके साथ हो लिए.  जल्द ही विमान अपहृत कर लिया गया. जिन चार लोगों ने इस विमान को अपहृत किया उनमें दो फिलिस्तीनी थे और दो जर्मन. फिलिस्तीनी नागरिक पोपुलर फ्रंट फोर द लिबरल पेलेस्टाइन से सबंध रखते थे और जर्मन नागरिक जर्मन रिवोल्युशनरी सेल के थे. अपहरण के बाद अपहरणकर्ता विमान को लीबिया के शहर बेंगाजी ले गए जहाँ विमान में ईंधन भरा गया. यहाँ एक महिला यात्री को छोड़ दिया गया जो प्रसवपीड़ा का ढोंग कर रही थी. इसके बाद विमान युगांडा की तरफ ले जाया गया जहाँ दोपहर 3:15 मिनट पर विमान ने एंटाबी शहर के हवाई अड्डे पर लैंडिंग की. यहाँ 4 अन्य लोग अपहरणकर्ताओं से मिल गए और इस तरह से उनकी संख्या हो गई. यह सब कुछ योजनाबद्ध तरीके से हो रहा था और अपहरणकर्ताओं को युगांडा के तानाशाह इदी अमीन का खुला समर्थन हासिल था. 

मांग:
अपहरणकर्ताओं ने अपहृत किए गए लोगों को छोड़ने की ऐवज में इज़रायल की जेलों में बंद 40 फिलिस्तिनी नागरिकों को छोडने की मांग की. इसके अलावा पश्चिम जर्मनी, केन्या, फ्रान्स और स्विट्ज़रलैंड में कैद 13 अन्य लोगों को भी छोडने की मांग की गई. अपहरणकर्ताओं ने धमकी दी कि यदि उनकी मांगे ना मानी गई तो वे 1 जुलाई 1976 के बाद एक एक कर सभी अपहृत लोगों को मारना शुरू कर देंगे. इन लोगों को एयरपोर्ट की पुरानी टर्मिनल बिल्डिंग में कैद कर रखा गया. एक सप्ताह के बाद अपहरणकर्ताओं ने 105 यहूदी लोगों को छोड़कर बाकी कैदियों को रिहा कर दिया.

अपहरणकर्ताओं ने विमान चालक दल को भी जाने को कहा. परंतु विमान के कैप्टन माइकल बोकोस ने इंकार कर दिया. उन्होनें कहा कि सभी यात्रियों की जिम्मेदारी उनकी बनती है और इसलिए वे किसी भी यात्री को छोड़कर नहीं जाएंगे. चालक दल के बाकी सदस्यों ने भी उनका समर्थन किया और वे कैप्टन के साथ डटे रहे. बाकी लोगों को फ्रांस से आए एक विशेष विमान में बिठा कर रवाना कर दिया गया.  उधर इज़रायल में इस घटना से गुस्से का माहौल था. सरकार किसी सख्त कार्रवाही के लिए दबाव में थी और उसके ऊपर अपने 100 से अधिक नागरिकों को जीवित बचाने का दबाव भी था. 

इज़रायल सरकार ने अपहरणकर्ताओं से बातचीत की और उन्हें उलझाए रखा. सरकार हर प्रकार के विकल्प तलाश रही थी. इसमें सैन्य विकल्प भी शामिल था और बातचीत के जरिए मामला सुलझाने लेने का विकल्प भी. इज़रायली सेना के एक रिटायर्ड अफसर बारूक बारलेव ने युगान्डा के तानाशाह इदी अमीन से कई बार बात की. इदी अमीन के साथ उसके अच्छे रिश्ते थे. इदी अमीन ने उसकी बात सुनी परंतु कोई आश्वासन नहीं दिया. उधर सरकार के पास काफी कम समय बचा था. कुछ रिपोर्टों के अनुसार इज़रायल ने एक बार फिलिस्तिनी कैदियों को छोडने का मन भी बना लिया था क्योंकि उसके अलावा और कोई विकल्प नजर नहीं आ रहा था. परंतु इजरायली सेना ने दबाव बनाया कि उसके कमांडो युगांडा तक जाकर अपहरण किए गए लोगों को छुडा सकते हैं. अंत में सरकार ने इस ऑपरेशन को मंजूरी दे दी. 

पूर्व तैयारी:
इज़रायल ने इस ऑपरेशन को ऑपरेशन एंटाबी नाम दिया. इस ऑपरेशन के लिए व्यापक तैयारियाँ की गई. समय कम था फिर भी इजरायली सेना तथा कई नागरिकों एवं कम्पनियों ने इस पूर्व तैयारी में जाने अनजाने भाग लिया. इज़रायल की गुप्तचर संस्था मोसाद अपने काम में जुटी हुई थी. मोसाद के एजेंटो ने फ्रांस में अपहरणकर्ताओं के चंगुल से छूट कर लौटे लोगों से व्यापक बातचीत की. उन्होनें यह जानने का प्रयास किया कि कुल कितने अपहरणकर्ता हैं और उन्होनें लोगों को कहाँ बंधक बनाकर रखा है. यह भी पता लगाया गया कि एंटाबी हवाई अड्डे के आसपास सुरक्षा के क्या इंतजाम किए गए हैं. 

मोसाद के सौभाग्य से उन्हें पता चला कि छूट चुके लोगों में एक यहूदी नागरिक भी शामिल है जिसने झूठ बोला था कि वह फ्रेंच है. दूसरा सौभाग्य यह कि उसे सैन्य साजो सामान की पूरी जानकारी थी. उसने मोसाद के एजेंटो को बताया कि अपहरणकर्ताओं के पास कैसे हथियार हैं और वे कहाँ कहाँ छिपे मिलेंगे.  मोसाद द्वारा प्राप्त की गई यह जानकारी ऑपरेशन एंटाबी के लिए काफी उपयोगी साबित होने वाली थी. उधर इज़रायल में भी तैयारियाँ जोर शोर से जारी थी. एक तरफ सरकार इस प्रकार का माहौल बना रही थी कि वह फिलिस्तिनी कैदियों को छोडने के लिए तैयार है और जरूरी प्रक्रियाएँ पूरी कर रही है. दूसरी तरफ एंटाबी टर्मिनल के जैसी ही एक और इमारत इजरायल में ही तैयार की जाने लगी ताकी इजरायली सेना हमले से पहले पूर्व तैयारी कर सके. 

इसे इजरायल का अच्छा नसीब ही कहेंगे कि एंटाबी की उस पुरानी टर्मिनल बिल्डिंग का निर्माण एक इजरायली कंस्ट्रक्शन कम्पनी ने ही किया था और उसके पास इमारत का ब्लूप्रिंट पडा था. उस कम्पनी के कर्मचारियों ने बिल्डिंग का सेट बनाना शुरू किया. कुछ अन्य कम्पनियों ने भी इस कार्य में मदद की. जो लोग इस कार्य मे जुटे हुए थे उन्हें एक दिन डिनर पर बुलाया गया और कहा गया कि - इमारत बनने के बाद राष्ट्र के हित में उन्हें कुछ दिन तक सेना का मेहमान बन कर रहना होगा. मतलब साफ था.  उधर इज़रायल ने अपहरकर्ताओं से अपील की कि वे समय सीमा को 1 जुलाई से आगे खिसका कर 4 जुलाई कर दें. इदी अमीन इसके लिए तैयार भी हो गया क्योंकि उसे 3 जुलाई को मोरिशस जाकर ओर्गेनाइजेशन ऑफ अफ्रीकन यूनिटी की अध्यक्षता वहाँ के राष्ट्रपति शिवसागर रामगुलाम को देनी थी. इज़रायल के लिए इतना समय काफी था.  3 जुलाई को इज़रायली कैबिनेट ने अधिकृत रूप से ऑपरेशन एंटाबी को मंजूरी दी. मेजर जनरल युकीतेल आदम को इसका नैतृत्व दिया गया और मातन विल्नाई को उप कमांड दी गई. 


मिशन: 
3 जुलाई की रात 4 हरक्यूलिस ट्रांसपोर्ट एयरक्राफ्ट इज़रायल से रवाना हुए. उनका मिशन गुप्त था. इस विमान में करीब 100 सैनिक थे जिन्हें अलग अलग दलों मे विभाजित किया गया था 

 एक छोटा दल जिसे ग्राउंड कमांड दिया गया. इसका काम था हवाई पट्टी की सुरक्षा करना और संचार सुविधा उपलब्ध करवाना. 29 कमांडो का हमलावर दल जिसकी कमान लेफि. जोनाथन नेतन्याहू के पास थी. इसकी जिम्मेदारी थी इमारत में घुसकर अपहरणकर्ताओं को खत्म करना और नागरिकों को छुड़ाना.

    एक अन्य दल जिसका काम था इलाके की सुरक्षा करना. हवाई अड्डे पर खडे युगांडा हवाई सेना के मिग लड़ाकू जहाजॉं को नष्ट करना और किसी भी बाहरी हमले का सामना करना. 4 सी-130 हरक्यूलिस विमानों ने उडान भरी और उनके पीछे दो बोइंग 707 विमान भी उडे. इन विमानों में चिकित्सकीय सुविधा और राहत सामग्री थी.  ये विमान लाल सागर होते हुए इजिप्त, सुडान और सउदी अरब के रास्ते नैरोबी पहुँचे. विमानों ने मात्र 100 फूट की ऊँचाई पर उडान भरी थे ताकी इन देशों के रडार उन्हें पकड ना सकें. नैरोबी में एक बोइंग विमान छोड दिया गया और बाकी विमान पश्चिम दिशा में उड चले. रात 11.30 बजे एंटाबी हवाई अड्डे पर इन विमानों ने लैंडिंग की वह भी बिना एयर ट्राफिक कंट्रोल की सहायता के. एक हर्क्यूलिस विमान से एक मर्सिडिज कार निकली और उसके पीछे कुछ एसयूवी कारें भी निकली. ऐसा इसलिए ताकी हवाई अड्डे पर मौजूद युगांडा के सुरक्षाकर्मियों को लगे कि इदी अमीन अपनी यात्रा खत्म कर लौट रहा है. ऐसा हुआ भी, क्योंकि शुरू में युगांडा के सुरक्षाकर्मियो को यही लगा कि या तो इदी अमीन लौट आए हैं या फिर कोई महत्वपूर्ण व्यक्ति आया है.








यह काली मर्सिडीज पुरानी टर्मिनल बिल्डिंग की तरफ जाने लगी. इस कार में इजरायली कमांडो बैठे थे. लेकिन तभी दो सुरक्षाकर्मियों ने कार को रूकने के लिए कहा. ये सुरक्षाकर्मी जानते थे कि इदी अमीन ने हाल ही में नई सफेद मर्सिडीज़ कारखरीदी है और वह अब काली कार इस्तेमाल नहीं करता. इन दोनों सुरक्षाकर्मियों पर इजरायली कमांडो ने साइलेंसर वाली बंदूक से गोली चला दी. दोनों घायल हो गए परंतु मरे नहीं. एक कमांडो का ध्यान जब इस तरफ गया तो उसने अपनी एके-47 से गोलियाँ चला दी. दोनों मारे गए परंतु गोलियों की आवाज से युगांडा के सैनिक चौकन्ने हो गए. अब समय कम था. इज़रायली कमांडो ने इमारत पर धावा बोल दिया और दूसरी तरफ दूसरी यूनिट ने बाहर मोर्चा सम्भाल लिया. इमारत में घुसते ही गोलियाँ चलनी शुरू हो गई. इजरायली कमांडो माइक पर चिल्ला रहे थे कि हम इजरायली सैनिक हैं, लैट जाओ लैट जाओ. कमांडो ने 3 अपहरणकर्ताओं को गोली मार दी. तभी एक 19 वर्षीय फ्रेंच लडका खडा हो गया (इसने झूठ बोला था कि वह यहूदी है), कमांडो ने उसे अपहरणकर्ता समझा और गोली मार दी. इसके अलावा दो अन्य नागरिक भी क्रोस फायरिंग में मारे गए. 3 अपहरणकर्ता एक अन्य कमरे में छिप गए. कमांडो ने उस कमरे में ग्रेनेड फेंके और गोलियों की बौछार कर दी, वे भी मारे गए.




उधर तीन अन्य हर्क्यूलिस विमानों ने भी लैंडिंग कर ली थी और उसमें से सैनिक निकल आए थे. इन सैनिकों ने वहाँ खडे मिग विमानो को नष्ट करना शुरू कर दिया. उधर कमांडो की टीम ने लोगों को निकाल कर एक हरक्यूलिस विमान में बैठाना शुरू कर दिया. उनपर युगांडा के सैनिकों ने हमला किया. ये सैनिक एयर ट्राफिक कंट्रोल टावर पर खडे थे. इजरायली सैनिकों ने जवाबी हमला कर उन्हें मार डाला. परंतु एक युगांडाई स्नाइपर ने गोली चलाकर लेफि. जोनाथन नेतन्याहू की जान ले ली. इस पूरे हमले के दौरान इजरायल की सेना को मात्र यही जानहानि हुई थी. 10 कमांडो घायल भी हुए थे. 

सभी हर्क्यूलिस विमानों में ईंधन भरा जाने लगा और अंत में सभी विमानो ने उडान भर ली. पूरा ऑपरेशन 53 मिनट चला और उसमें से 30 मिनट तक कमांडो कार्रवाही चली. 105 नागरिक छुडाए गए, तीन नागरिक मारे गए, करीब 40 युगांडाई सैनिक मारे गए, 1 इजरायली कमांडर मारा गया, 11 मिग विमान ध्वस्त कर दिए गए.  ये विमान केन्या की राजधानी नैरोबी पहुँचे और वहाँ से इजरायल के लिए उड चले. युगांडा के तानाशाह इदी अमीन के लिए यह खून का घूंट पीने जैसा था. उसे यकीन ही नहीं हुआ कि कोई उनके देश में घुस कर अपने नागरिकों को छुडा कर ले जा सकता है वह भी इदी अमीन के 40 के आसपास सैनिकों को मारकर. 

इदी अमीन ने अपमान का बदला विभत्स तरीके से लिया और वहाँ की एक अस्पताल में भरती एक 75 वर्षीय इजरायली महिला को यातना देकर मरवा डाला. परंतु इज़रायल ने वह कर दिखाया था जिसकी कल्पना करना भी मुश्किल है, विशेष रूप से हम भारतीयों के लिए.

MONDAY, 21 JUNE 2010 10:13 पंकज बेंगाणी विशेष
THANKS and  COURTESY BY TARaKASH