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Friday, December 9, 2011

0 पवार को थप्पड़ पर जेल, टीचर को थप्पड़ पर बेल!

इस देश में 2 लोगों ने लगभग एक ही तरह का अपराध किया , लेकिन दोनों के खिलाफ अलग-अलग तरह से बर्ताव हो रहा है। ये दोनों आरोपी हैं , केंद्रीय कृषि मंत्री शरद पवार को थप्पड़ मारने वाले हरविंदर सिंह और

पंजाब के मुक्तसर में महिला टीचर के को थप्पड़ मारने वाले सरपंच बलजिंदर सिंह। इनमें एक बुनियादी फर्क है। पहली घटना में एक आम आदमी ने एक नेता को थप्पड़ मारा ,वहीं दूसरी घटना में एक नेता ने आम महिला को थप्पड़ मारा।

पहली घटना दिल्ली की है। युवक हरविंदर सिंह ने केंद्रीय कृषि मंत्री शरद पवार को थप्पड़ मारा। हरविंदर, पवार से नाराज था। वह पूरे देश की परेशानियों से परेशान था। यानी महंगाई से परेशान था। उसे लगा कि इसके लिए शरद पवार दोषी हैं। इसके लिए उसने पवार को ' सिर्फ एक थप्पड़ ' मारा। वह पकड़ा गया। उसे जेल भेज दिया गया। कोर्ट को लगा कि उसका बाहर रहना खतरनाक साबित हो सकता है। कोर्ट ने उसे तुरंत 14 दिन की जुडिशल कस्टडी में भेज दिया।

Courtesy navbharat Times

Thursday, December 8, 2011

0 .थप्पड़ की वजह तक की पड़ताल लोगों ने अपने हिसाब से कर डाली।

                      linkPhoto - अजब नेताओं की गजब तस्वीरें

Friday, November 25, 2011

1 पवार पर हमला, सबक किसके लिए?

 आम-आदमी नेताओं से इतनी ज्यादा घृणा करने लगा है कि वह चाटा मारने पर उतारु हो गया है। कल कोई गोली चलाए तो हैरत नहीं होगा। क्योंकि नेतागण इसी के लायक हैं। जनता परेशान है और ये खुद मलाई खा रहे हैं। जिस जनता की गाढ़ी कमाई के टैक्स से वे मामूली कीमत पर अपने लिए सुविधायें जुटाते हैं उनकी वे परवाह करना ही भूल गए हैं। जब चुनाव आता है तो सारे रंगे सियार एक जैसे हो जाते हैं और आम-आदमी को अपना माई-बाप बताते हैं लेकिन वोटों के पड़ने के बाद भूल जाते हैं।

कहीं अरब देशों की तरह भारत मैं भी जनता सडको पर न आ जाए,  तब हमारे ये माननीय नेता क्या करेंगे. लोकसभा और विधान सभाओं मैं ये खुद माइक , कुर्सी फेंक कर लड़ते है. और जब कोई इनको गाली दे तो ये है शिस्टाचार का पाठ पढ़ाते हैं.

अनुभवी नेता क्या होता है ये शरद पवार ने दिखा दिया। महंगाई से पीड़ित आम आदमी से थप्पड़ खाने के बाद भी वह बगैर विचलित हुए आगे बढ़ गए। जैसे कुछ हुआ ही हो। आदर्श बातें, आदर्श स्थितियों के लिए होती हैं। जब सरकार और व्यवस्था आम लोगों के लिए आदर्श नहीं है तो जनता की प्रतिक्रिया आदर्श कैसे रहेगी। सरकार की नीतियो से जनता परेशान है। आम आदमियों की सरकार उन्हीं का संघार करने पर आमदा है। ऐसे मे लोगो का गुस्सा फूटना लाजमी है। शदर पवार पर थप्पड़ पड़ना ताज्जुब की बात नहीं है।



Monday, June 13, 2011

0 दस कलमाड़ी + एक राजा = शरद पवार -Sharad Pawar

राजनीति की चटर पटर और बात का बतंगड़ : क्या यह संभव है कि कोई मंत्री, किसी विभाग का मुखिया सीएमओ को महत्व ना दे! ऐसा नामुमकिन नहीं तो मुश्किल बहुत है। आरपीएस की तबादला लिस्ट के बाद इस प्रकार की चटर-पटर कई जगह सामने आई। कुछ समय पहले मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और गृह मंत्री शांति धारीवाल के बीच दूरी या वैचारिक, राजनीतिक मतभेद थे। तब सीएमओ की लिस्ट ही विभाग की तबादला सूची होती थी। जनप्रतिनिधि सीएमओ में डिजायर भेजते। इन दिनों दोनों में सम्बन्ध सामान्य है। इसलिए सीएम आम तौर पर डिजायर सीधे गृहमंत्री को देने का संकेत करते थे। फिर भी मुख्यमंत्री को गृह विभाग से सम्बंधित डिजायर मिलती ही रही। सीएमओ ने किसकी सिफारिश की किसकी नहीं की। यह तो वही जाने। मगर बहुत सी डिजायर का परिणाम नहीं निकला। इस वजह से चर्चा ये होने लगी कि गृह मंत्री सीएमओ की सिफारिश की अधिक परवाह नहीं करते।
अब डीजीपी और गृहमंत्री में खटपट की खुसर-फुसर है। दोनों एक दूसरे की बात पर कभी कभी कान नहीं धरते। फ़िलहाल जिसकी डिजायर के माफिक नियुक्ति नहीं हुई उनको सीएम के पास जाने को कहा जाता है। वहां तक जाने की हिम्मत कम ही करेंगे। यही तो वे चाहते हैं। तभी तो बड़े अफसर कई स्थानों पर अपने प्यादे फिट करने में सफल हो जाते हैं। हालाँकि इस प्रकार की खटपट को कोई साबित नहीं कर सकता। लेकिन कार्यप्रणाली से कहाँ, क्या और क्यूँ हो रहा है इसका अंदाजा जरुर लग जाता है।
ये तो पहले सोचते : बीएसपी छोड़ कांग्रेस का पल्लू पकड़कर मंत्री बने विधायक बेबस हैं। ऐसे ही एक मंत्री ने बैठक में सीएम से कहा कि उसके इलाके में छह क़त्ल हो गए। बार-बार कहने के बावजूद सीआई नहीं बदला गया। दूसरे मंत्री ने कहा कि दौरे के समय कांग्रेस के दफ्तर खुले नहीं मिलते। असली कांग्रेस का मंत्री बोला, तो अपने दफ्तर में चले जाया करो। इस ताने पर दलबदलू मंत्री को ताव आ गया। आइन्दा हम अपने दफ्तर में ही रुका करेंगे, वह बोला। बैठक के बाद उनको कई शुभचिंतकों ने बताया कि अपना घर छोड़ने का क्या नुकसान होता है। मंत्री तो हैं परन्तु चलने चलाने को तो राम जी का नाम ही है।
बात का बतंगड़ : कृषि विपणन मंत्री गुरमीत सिंह कुनर के लिफ्ट में फंसने की खबर ने खासकर इस इलाके में खूब पाठक बटोरे। असल में तो कोई बात ही नहीं थी। श्री कुनर अपने एक अधिकारी के साथ लिफ्ट में दाखिल हुए। लिफ्ट मैन तो था ही। एक मंडी समिति का अध्यक्ष आ गया जो बीजेपी का था। लिफ्ट का बटन दबाया वह चली नहीं। लिफ्ट मैन ने यह कहकर कि वजन अधिक है अध्यक्ष को लिफ्ट से बाहर कर दिया। लिफ्ट फिर भी ऊपर नहीं उठी। लिफ्टमैन खुद भी निकल आया। श्री कुनर ने एक, दो मिनट बटन दबाया, लिफ्टमें कोई हरकत नहीं हुई। श्री कुनर बाहर आ गए। हाँ लिफ्ट में फंसने की खबर छपने के बाद श्री कुनर के पास शुभचिंतकों के फोन बहुत आए। इसके अलावा जो भी उनको मिलता यही सवाल करता, लिफ्ट में कैसे फंस गए? किसी को बता देते किसी के सामने बस मुस्करा कर रह जाते।
अब एक एसएमएस : भेजने वाले का नाम नहीं पता। सन्देश है : एक करोड़ को कहते हैं एक खोखा। पांच सौ करोड़ को एक कोड़ा। अब एक हजार करोड़ का मतलब है एक राडिया। दस हजार करोड़ अर्थात एक कलमाड़ी। एक लाख करोड़ को एक राजा। दस कलमाड़ी प्लस एक राजा बराबर एक शरद पवार।
Courtesy B4M   गोविंद गोयल श्रीगंगानगर जिले के वरिष्ठ पत्रकार हैं.