ऐ जिंदगी गले लगा ले, हमने भी तेरे हर एक गम को गले से लगाया है... है ना।
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एवरीथिंग इज प्री-रिटन’ इन लाईफ़ (जिन्दगी मे सब कुछ पह्ले से ही तय होता है)।
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Wednesday, December 7, 2011
Saturday, December 3, 2011
0 सांसदों ने मांगी लाल बती
संसद और विधान सभाओं मैं राष्ट्रीय हित के मुद्दों पर सांसद और विधायक कभी एक मत नहीं होते, परन्तु जब लाल बती, वेतन और दूसरी सुविधाओं की मुद्दों पर सब एक मत हो जाते है.
Tuesday, February 8, 2011
0 थामस ने सरकार ओर विप्क्ष को आईना दिखाया !
थामस ने बचाव में ली दागी सांसदों की आड़
सीवीसी पद पर नियुक्ति को सही ठहरा रहे पीजे थामस ने सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में अपने बचाव में दागी सांसदों का सहारा लिया। थामस की ओर से दलील दी गई कि सिर्फ आरोप पत्र दाखिल होने के आधार पर न्यायालय उन्हें पद से नहीं हटा सकता। कानून में कुछ ऐसे अस्पष्ट क्षेत्र हैं जहां इसे अयोग्यता नहीं माना जाता। 28 फीसदी सांसद गंभीर मामलों में आरोपित हैं और वे लोग कानून बनाते हैं क्योंकि जन प्रतिनिधित्व कानून में उन्हें अयोग्य नहीं माना गया है। इस मामले में गुरुवार को फिर सुनवाई होगी। थामस की ओर से उन्हें पद से हटाए जाने की मांग का विरोध करते हुए वरिष्ठ अधिवक्ता केके वेणुगोपाल ने कहा कि न्यायालय अधिकार पृच्छा रिट (रिट को-वारंटो) के तहत थामस को पद से हटाने का आदेश नहीं दे सकते क्योंकि इस रिट में आदेश तभी दिया जा सकता है जबकि कानून में दिए गए किसी नियम का उल्लंघन होता हो। आरोप पत्र दाखिल होने से वे ऊंचे पद पर नियुक्ति के लिए अयोग्य नहीं हो जाते। कानून में कुछ ऐसे अस्पष्ट क्षेत्र हैं जिसमें इसे अयोग्यता नहीं माना जाता। उन्होंने कहा कि 535 में 153 सांसदों के खिलाफ गंभीर आरोप हैं। 54 पर तो हत्या आदि के गंभीर आपराधिक मामले हैं। इसके बावजूद ये लोग कानून बनाते हैं क्योंकि जन प्रतिनिधित्व कानून में उन्हें अयोग्य नहीं माना गया है। मामले की सुनवाई मुख्य न्यायाधीश एसएच कपाडि़या, न्यायमूर्ति केएस राधाकृष्णन व न्यायमूर्ति स्वतंत्र कुमार की पीठ कर रही है। वेणुगोपाल ने कहा कि उच्च स्तरीय समिति ने सभी पहलुओं पर विचार करने के बाद उन्हें नियुक्त किया है। कोर्ट नियुक्ति की न्यायिक समीक्षा नहीं कर सकता। उनकी दलील पर कोर्ट ने कहा कि अगर किसी व्यक्ति को अदालत दोषी ठहराती है और उच्च स्तरीय समिति यह जानते हुए या इस तथ्य से अपरचित रहते हुए व्यक्ति की नियुक्ति कर देती है तो क्या कोर्ट उसकी समीक्षा नही कर सकता। पीठ ने यह भी कहा कि जब वे संवैधानिक उपबंधों की समीक्षा कर सकते हैं तो संवैधानिक नियुक्ति की क्यों नहीं। पीठ ने कहा कि उन्हें नहीं मालूम कि इस मामले में किस मुद्दे पर चर्चा हुई और किस पर नहीं लेकिन वे भविष्य के लिए कानून तय करने पर विचार कर रहे हैं
Tuesday, December 28, 2010
0 सत्ता की गंदी राजनीति
एक व्यक्ति दिमागी दिवालियेपन की किस सीमा तक पहुँच सकता है इसके प्रत्यक्ष उदाहरण हैं दिग्विजय सिंह जी. लगातार आ रहे उनके वक्तव्य कोई राजनीतिक एजेंडा है या गाँधी-व्याप्त समाज में अपनी एक छवि बनाने की अभिलाषा? इस बात से परिचित होने के बाद कि कांग्रेस में गाँधी परिवार के लिए ही प्रधानमंत्री का पद आरक्षित है, वे अपनी एक स्वतंत्र छवि उभारने में लग गए हैं. दिग्विजय सिंह जी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का हिटलर की तानाशानी से तुलना करके ये साबित करना चाह रहे हैं कि वे "राष्ट्रवाद" और "आतंकवाद" के बीच की असमानता से अनजान और अज्ञान हैं. कांग्रेस सरकार द्वारा किये गए कई घोटालो को भगवा आतंकवाद की चादर ओढ़ाने का यह प्रयास सदैव निष्फल होगा. संपूर्ण देश में चहुंओर चर्चा हो रही है कि दिग्विजय जी अपना मानसिक संतुलन खो बैठे हैं, पर शायद ये कहना गलत होगा. मेरा मानना है कि यह एक सोची समझी राजनीति है, देश को दो गुटों में विभाजित करने की.
सरस्वती शिशु विद्या मंदिर में आंतंकवादी प्रवृतियों का विकास करवाया जाता है यह कह कर दिग्विजय जी मदरसों में हो रहे सर्वविदित आतंकवादी गतिविधियों पर पर्दा डाल रहे हैं. सरस्वती विद्या मंदिर एक अखिल भारतीय शिक्षण संस्था है, जहाँ छात्र ज्ञानोपार्जन करते हैं, ऐसी संस्था पर प्रहार किसी राजनीतिक दल के लिए कैसे फायदेमंद हो सकता है? एक सोची समझी चाल के तहत मुस्लिमों का वोट के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है. हालाकि संपूर्ण मुस्लिम समाज इस बात से अवगत है कि कांग्रेस का बर्ताव उनके प्रति कैसा रहा है, अतएव उन्होंने इसका उत्तर कांग्रेस को बिहार चुनाव में दे दिया. भगवा आंतकवाद को देश के लिए सर्वोच्च खतरा बता कर वाराणसी, मुंबई, दिल्ली आदि जगहों पर हुए ब्लास्ट को भुला देना हमारी एकता पर कुठाराघात है.
हमारा देश एक राजनीतिक दल-दल में फँस चुका है. घोटालों की रफ़्तार इतनी बढ़ गयी है की पुराने को दबा कर नए घोटाले उभर जाते हैं. बिहार चुनाव में अपनी हार एवं कई घोटालों में फंसने के बाद शायद कांग्रेस के पास कोई और मुद्दा ही नही बचा है. गौरतलब है कि जिस वेग से कांग्रेस संघ और इसकी अनुशांगिक शाखाओं पर प्रहार कर रही है, संघ परिवार ने अभी तक उसका प्रत्युतर नही दिया है- भारतीय संस्कृति की एक उम्दा झलक! हिन्दू और मुस्लिम के बीच मतभेद पैदा करने वाले ये राजनीतिज्ञ भूल रहे हैं कि आज भी भारत के कई कोने में हिन्दू-मुस्लिम एकता बरकरार है. आज भी दोनों समुदाय एक ही झंडे के सामने नतमस्तक होते हैं.
लेखक सुयश वर्मा courtesy B4M
Thursday, November 18, 2010
Wednesday, July 21, 2010
0 Politician's drama
Natak
Mr. Rahul Gandhi do this work just for an hour....without media.
Then tell us what you got...
If you really want to Change our India....No need to show us.....
“Karunaa”Nidhi Fasting
First time in the world history fasting only 4 hours and that too with an AC …….
This is the comedy of the year 2009….Fasting starts after breakfast and ending before lunch. Interesting one!!
This is the comedy of the year 2009….Fasting starts after breakfast and ending before lunch. Interesting one!!
Monday, July 19, 2010
0 शटअप, मिस्टर जेठमलानी!
: अपन इतनी अंग्रेजी तो जानते ही हैं कि कह सकें - शटअप, मिस्टर जेठमलानी! : छोटा था। चौथी-पांचवीं का स्टूडेंट। पांच-छह किलो का बोझ लादे स्कूल जाता। लौटता। बस्ता पटकता, और भागता। अपने सहपाठियों, दोस्तों की महफिल में शामिल होने। घंटों की बैठक, जिसका कोई एजेंडा नहीं होता था। बस, बतकही-दुनिया भर की बातें। अपन राम ज्ञानी अब भी नहीं हैं। उस समय तो खैर पूरे अज्ञानी थे। ऐसे कि हमारे लिए दुनिया का सबसे अमीर आदमी बिल गेटस या वारेन बफेट, ब्रुनेई का सुल्तान, टाटा, बिड़ला, अंबानी जैसे लोग कतई नहीं थे।
दुनिया का बड़ा आदमी हमारे लिए हमारे शहर के दो-चार करोड़ की हैसियत वाले सेठ मुरली भदानी या सुरेश झांझरी थे। तब भी अपन राम, राम जेठमलानी को जानते थे। सोचते थे कि आखिर श्री जेठमलानी कितने बड़े वकील होंगे, अपने शहर से थोड़ी दूर स्थित कोडरमा अनुमंडल कोर्ट में प्रैक्टिस करने वाले यमुना बाबू वकील या पन्नालाल जोशी जैसे। तब अनुमान नहीं लगा पाता था, पूरा, सटीक अनुमान तो खैर आज भी नहीं है, लेकिन पत्रकारिता में 25 साल चप्पल रगडऩे के बाद इतना तो पता हो गया है कि जेठमलानी साहब वकील चाहे जितने बड़े हों, नेक इंसान कतई नहीं हैं। ऐसे हैं कि जिनके लिए पैसा ही भगवान है। अपनी गंवई भाषा में कहें तो कफनचोर।
अपन विषयांतर नहीं होते, मूल बात यह कि श्री जेठमलानी को दुनिया जानती है, वे नामी वकीलों महेश और रानी जेठमलानी के पिता, खुद बेटा-बेटी से भारी वकील, पार्ट टाइम राजनेता और न जाने क्या-क्या हैं? अपराधियों-आतंकवादियों के पैरौकार। माफियाओं के वकील। हर्षद मेहताओं, इंदिरा गांधी के हत्यारों के पैरवीकार। कभी भारतीय जनता पार्टी के उपाध्यक्ष भी थे। उस समय उपाध्यक्ष थे, जब अध्यक्ष अपने अटलजी हुआ करते थे। संसद में रहे, कभी इस तो कभी उस पार्टी से। स्टांप घोटाले में जेल की हवा खा रहे अनिल गोटे के सलाहकार भी थे। अपन ने दोनों की संयुक्त प्रेस कांफ्रेस कवर की है। जेठमलानी साहब मंत्री भी बने, वह भी कानून मंत्री। यह भी अपने देश में ही संभव है कि रोज कानून का मखौल उड़ाने वाला कानून मंत्री बन जाए पर जेठमलानी साहब बने और शान से रहे।
अपन भटक गए। विषय प्रोफाइल बताना नहीं था, यह बताना था कि स्टार न्यूज के एक कार्यक्रम में दीपक चौरसिया के सवाल पर वे भडक़ गए। बेचारे दीपक ने यह पूछ लिया था कि आप राज्यसभा में जाने के लिए कुछ भी कर सकते हैं, कभी यह तो कभी वह पार्टी, आप आतंकवादी अफजल की भी पैरवी कर सकते हैं, ऐसे ही कुछ सवाल। बस, जेठमलानी साहब भडक़ गए। बकने लगे-तुम बेवकूफ हो, बिकाऊ हो, कांग्रेस पार्टी ने पूरी मीडिया को खरीद लिया है, तुम लोग अंग्रेजी नहीं जानते, निकल जाओ नहीं तो गार्ड धक्के मार कर निकाल देगा। ऐसे ही शब्द। अपने दीपक भाई सुनते रहे। करते भी क्या, अपनी पत्रकारिता की पढ़ाई में सिखाया जाता है कि बोलो नहीं, बस लिखो, दीपक बाबू दृश्य मीडिया में हैं इसलिए कह सकते हैं कि दिखाओ। अपनी नौकरी झगडऩे की नहीं है, सहने की है, इसलिए सहना पड़ता है। साफ-साफ कहना हो तो अपनी चलती भाषा में यह भी कहा जा सकता है कि यह साली नौकरी ही ऐसी है।
अंत में-माना टुकड़ों में पत्रकारिता बिकाऊ है जेठमलानी साहब, लेकिन इतनी नहीं कि कोई राम जेठमलानी उसे बिकाऊ कहे। और यह भी कि अपन न अंग्रेज हैं और न अंग्रेज की औलाद। हिंदुस्तान में रहते हुए भी इतनी अंग्रेजी तो जानते ही हैं कि कह सकें - शटअप, मिस्टर जेठमलानी!
लेखक डा. संतोष मानव वरिष्ठ पत्रकार हैं.
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