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Tuesday, December 28, 2010

0 सत्‍ता की गंदी राजनीति

एक व्यक्ति दिमागी दिवालियेपन की किस सीमा तक पहुँच सकता है इसके प्रत्यक्ष उदाहरण हैं दिग्विजय सिंह जी. लगातार रहे उनके वक्तव्य कोई राजनीतिक एजेंडा है या गाँधी-व्याप्त समाज में अपनी एक छवि बनाने की अभिलाषा? इस बात से परिचित होने के बाद कि कांग्रेस में गाँधी परिवार के लिए ही प्रधानमंत्री का पद आरक्षित है, वे अपनी एक स्वतंत्र छवि उभारने में लग गए हैं. दिग्विजय सिंह जी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का हिटलर की तानाशानी से तुलना करके ये साबित करना चाह रहे हैं कि वे "राष्ट्रवाद" और "आतंकवाद" के बीच की असमानता से अनजान और अज्ञान हैं. कांग्रेस सरकार द्वारा किये गए कई घोटालो को भगवा आतंकवाद की चादर ओढ़ाने का यह प्रयास सदैव निष्फल होगा. संपूर्ण देश में चहुंओर चर्चा हो रही है कि दिग्विजय जी अपना मानसिक संतुलन खो बैठे हैं, पर शायद ये कहना गलत होगा. मेरा मानना है कि यह एक सोची समझी राजनीति है, देश को दो गुटों में विभाजित करने की.
सरस्वती शिशु विद्या मंदिर में आंतंकवादी प्रवृतियों का विकास करवाया जाता है यह कह कर दिग्विजय जी मदरसों में हो रहे सर्वविदित आतंकवादी गतिविधियों पर पर्दा डाल रहे हैं. सरस्वती विद्या मंदिर एक अखिल भारतीय शिक्षण संस्था है, जहाँ छात्र ज्ञानोपार्जन करते हैं, ऐसी संस्था पर प्रहार किसी राजनीतिक दल के लिए कैसे फायदेमंद हो सकता है? एक सोची समझी चाल के तहत मुस्लिमों का वोट के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है. हालाकि संपूर्ण मुस्लिम समाज इस बात से अवगत है कि कांग्रेस का बर्ताव उनके प्रति कैसा रहा है, अतएव उन्होंने इसका उत्तर कांग्रेस को बिहार चुनाव में दे दिया. भगवा आंतकवाद को देश के लिए सर्वोच्च खतरा बता कर वाराणसी, मुंबई, दिल्ली आदि जगहों पर हुए ब्लास्ट को भुला देना हमारी एकता पर कुठाराघात है.
हमारा देश एक राजनीतिक दल-दल में फँस चुका है. घोटालों की रफ़्तार इतनी बढ़ गयी है की पुराने को दबा कर नए घोटाले उभर जाते हैं. बिहार चुनाव में अपनी हार एवं कई घोटालों में फंसने के बाद शायद कांग्रेस के पास कोई और मुद्दा ही नही बचा है. गौरतलब है कि जिस वेग से कांग्रेस संघ और इसकी अनुशांगिक शाखाओं पर प्रहार कर रही है, संघ परिवार ने अभी तक उसका प्रत्युतर नही दिया है- भारतीय संस्कृति की एक उम्दा झलक! हिन्दू और मुस्लिम के बीच मतभेद पैदा करने वाले ये राजनीतिज्ञ भूल रहे हैं कि आज भी भारत के कई कोने में हिन्दू-मुस्लिम एकता बरकरार है. आज भी दोनों समुदाय एक ही झंडे के सामने नतमस्तक होते हैं.
लेखक सुयश वर्मा  courtesy B4M

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