तार्किक होना या बुद्धिमान होना कोई बुरी बात नहीं है। इंसान को वही बात स्वीकारनी चाहिए, जो तर्क की कसौटी पर खरी उतरे या जिसे बुद्धि स्वीकार करे। किंतु तर्क और बुद्धि की भी अपनी सीमा होती है। देवी-देवताओं के विषय में भी लोगों की ऐसी ही दुविधा है। गणेश की सवारी चूहा हो या लक्ष्मी का वाहन उल्लू, इसपर सहसा कोई विश्वास नहीं करता। यहां तक कि देवी-देवताओं के अस्तित्व पर भी शंका-संदेह किया जाता है। जबकि वास्तविकता यह है कि देवी-देवताओं के जो चित्र बनाए गए हैं वे प्रतीकात्मक हैं, जो कि उनके गुणों को व्यक्त करने का जरिया या संकेत होते हैं।
उल्लू पर सवार लक्ष्मी-लक्ष्मी का वाहन उल्लू माना जाता है जो कि रात यानि अंधेरे का निवासी है। अंधेरा सदैव असत्यता और अज्ञानता को जन्म देता है। यहां उल्लू मूर्ख इंसान का प्रतीक है। उल्लू पर सवार लक्ष्मी अत्यंत चंचल मानी गई है। चंचल यानि कि जो एक जगह स्थिह ना रहे। मतलब यह हुआ कि, उल्लू जैसे अज्ञानी व्यक्ति के पास यदि किसी तरह की किस्मत या संयोग से लक्ष्मी आ भी गई तो वह टिकेगी नहीं। वह जैसे अचानक आई है वैसे ही चली भी जाएगी।
विष्णु प्रिया लक्ष्मी-जबकि मेहनती, ईमानदार और सच्चा इंसान वो समझदारी प्राप्त कर लेता है, जिससे देवी लक्ष्मी उसको छोड़कर नहीं जाती। ज्ञानी के पास जो लक्ष्मी आती है वह उल्लू पर सवार होकर नहीं बल्कि भगवान विष्णु के साथ गरुड़ पर सवार होकर आती है। जहां सत्य और ज्ञान है वहां विष्णु है, जहां विष्णु हैं वहां उनकी चिरप्रिया लक्ष्मी स्थाई निवास करती है।
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