जूता लगे या न लगे लेकिन इसकी मार पड़ती ही है। सभ्य समाज में जूता फेंकने को कभी भी जायज नहीं ठहराया जा सकता है। लेकिन चारों ओर से निराश लोगों के लिए जूता अब एक हथियार बन गया है। जूता फेंक कर लोग न सिर्फ अपनी भड़ास निकाल रहे हैं बल्कि उन मुद्दों को भी सामने ले आते हैं जिन पर नेता ध्यान नहीं देते हैं।
बुश पर एक के बाद एक पड़े दो जूते
कहां - बगदाद में एक संयुक्त संवाददाता सम्मेलन में।
किसने फेंका - इराक के पत्रकार मुंतजर अल जैदी ने।
क्यों फेंका - इराक में लगातार बढ़ते अमेरिकी दबदबे से नाराज थे।
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इजरायली राजदूत पर भी जूते की मार
कहां - स्टॉकहोम यूनिवर्सिटी में।
किसने फेंका - दर्शक दीर्घा से दो लोगों ने।
क्यों फेंका- फिलीस्तीन पर इजरायली नीतियों का विरोध करना।
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चीनी प्रधानमंत्री भी नहीं बच पाए जूते की मार से
कहां - ब्रिटेन के कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी में
किसने फेंका - यूनिवर्सिटी के एक स्टूडेंट ने।
क्यों फेंका - यूनिवर्सिटी कैंपस में चीनी प्रधानमंत्री को बुलाए जाने से।
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लालकृष्ण आडवाणी भी नहीं बच पाए खड़ाऊ की मार से
कहां - मप्र के कटनी में एक चुनावी रैली के दौरान।
किसने फेंका- भाजपा के ही एक कार्यकर्ता ने।
क्यों - पार्टी में अपनी उपेक्षा से दुखी होकर यह कदम उठाया।
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गृहमंत्री चिदम्बरम भी नहीं बच पाए जूते की मार से
कहां - दिल्ली में एक प्रेस वार्ता के दौरान।
किसने फेंका- दैनिक जागरण समाचार पत्र के वरिष्ठ संवाददाता ने।
क्यों फेंका - सीबीआई के द्धारा सिक्ख दंगों के आरोपियों को क्लीनचिट दिए जाने से नाराज था।
बुश पर एक के बाद एक पड़े दो जूते
कहां - बगदाद में एक संयुक्त संवाददाता सम्मेलन में।
किसने फेंका - इराक के पत्रकार मुंतजर अल जैदी ने।
क्यों फेंका - इराक में लगातार बढ़ते अमेरिकी दबदबे से नाराज थे।
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इजरायली राजदूत पर भी जूते की मार
कहां - स्टॉकहोम यूनिवर्सिटी में।
किसने फेंका - दर्शक दीर्घा से दो लोगों ने।
क्यों फेंका- फिलीस्तीन पर इजरायली नीतियों का विरोध करना।
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चीनी प्रधानमंत्री भी नहीं बच पाए जूते की मार से
कहां - ब्रिटेन के कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी में
किसने फेंका - यूनिवर्सिटी के एक स्टूडेंट ने।
क्यों फेंका - यूनिवर्सिटी कैंपस में चीनी प्रधानमंत्री को बुलाए जाने से।
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लालकृष्ण आडवाणी भी नहीं बच पाए खड़ाऊ की मार से
कहां - मप्र के कटनी में एक चुनावी रैली के दौरान।
किसने फेंका- भाजपा के ही एक कार्यकर्ता ने।
क्यों - पार्टी में अपनी उपेक्षा से दुखी होकर यह कदम उठाया।
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गृहमंत्री चिदम्बरम भी नहीं बच पाए जूते की मार से
कहां - दिल्ली में एक प्रेस वार्ता के दौरान।
किसने फेंका- दैनिक जागरण समाचार पत्र के वरिष्ठ संवाददाता ने।
क्यों फेंका - सीबीआई के द्धारा सिक्ख दंगों के आरोपियों को क्लीनचिट दिए जाने से नाराज था।
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वर्ष 1969 में ऊंझा सीट पर जनसंघ के उम्मीदवार कांतिभाई डॉक्टर के खिलाफ कांग्रेसी उम्मीदवार शंकरलाल गुप्त खड़े हुए थे। जिनका प्रचार करने के लिए पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ऊंझा में एक सभा को संबोधित कर रही थीं उस दरमियान उन जूता फेंका गया जिसके बाद भारी हंगामा मचा इसके बाद इंदिरा गांधी ने लोगों से कहा था कि आप चाहे जूता फेंके या पत्थर मारें हम अपनी बात कहे बिना यहां से नहीं जाएंगे। हालांकि बाद में जूता फेंकने वाले को हिरासत में ले लिया गया था।
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प्राप्त जानकारी के अनुसार जरदारी बर्मिघम में पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी के एक कार्यक्रम में हिस्सा ले रहे थे इस दौरान ज़रदारी पर जूता फेंका गया। बहरहाल ज़रदारी की किस्मत अच्छी थी कि इस युवक द्वारा फेंका गया जूता उन्हें नहीं लगा। पुलिस ने जूता फेंकने वाले को गिरफ्तार कर लिया गया है। पुलिस छानबीन कर रही है।
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