जब मैं मेडिकल कॉलेज में पढ़ता था, तब भी 300 रुपए में एक महीने का खर्च आराम से निकल जाया करता था। इसमें कॉपी-किताबें, भोजन, चाय-नाश्ता, हॉस्टल व कॉलेज की फीस के अलावा महीने भर में 8-10 फिल्में देखने का खर्च भी शामिल था। मैं 1975 के दशक के आसपास की बात कर रहा हूं।
अमिताभ का कोलकाता काल तो मेरी तुलना में लगभग 10 साल पहले का था, यानी की 1965 के दशक के आसपास का। इससे आप यह अंदाजा तो बखूबी लगा सकते हैं कि उस समय इतनी महंगाई तो नहीं थी। इस समय कोयला कंपनी में बतौर एक्जिक्युटिव के पद पर काम करने वाले दुबले-पतले, कंपनी की ड्रेस, जिसमें नॉर्मल पेंट-शर्ट, चकाचक पॉलिश किए हुए बूट, बेल्ट और गले में टाई पहनने वाले अमिताभ के लिए यह तनख्वाह बहुत ज्यादा ही थी।
'बर्ड एंड हिल्जर्स'में 470 रुपए प्रतिमाह की नौकरी छोड़ अमिताभ ने 'ब्लैकर्स' नामक कंपनी ज्वाइन कर ली थी। यहां पर अब उनकी तनख्वाह 1200 रुपए प्रतिमाह थी। इस मोटी तनख्वाह के अलावा कंपनी की ओर से उन्हें गाड़ी की सुविधा और 125 रुपए टिफिन का भत्ता भी मिला करता था।
जबकि यह जमाना इतना सस्ता था कि इतनी तनख्वाह में 5 मेडिकल छात्रों का भी गुजारा हो सकता था। लेकिन फिर भी अमिताभ के पास महीने के अंत तक खर्च के लिए पैसे नहीं बचते थे। अब सवाल यह उठता है कि आखिर अमिताभ इतने सारे पैसों का करते क्या थे?
कोलकाता में बिताए अपने 5 वष्रो के दौरान अमिताभ ने माता-पिता को अपनी कमाई से एक रुपया भी कभी नहीं भेजा। अब अगर एक अकेला व्यक्ति इतने सारे पैसे एक महीने में ही खत्म कर दे तो उस पर गलत शंका तो होगी ही न!
अगर आप भी कुछ गलत सोच रहे हैं तो आप बिल्कुल सही हैं..!
अमिताभ प्रतिदिन कितनी सिगरेट फूंक दिया करते थे?
इस दौरान अमिताभ को दो चीजों की बहुत बुरी लत लग चुकी थी.. शराब और सिगरेट। आपको जानकर अत्यधिक दुख तो तब होगा जब आप इनकी मात्रा के बारे में सुनेंगे।
अमिताभ रोज लगभग 100 सिगरेट पी जाया करते थे। सोना, नहाना, खाना और नौकरी करना.. इन सभी कामों के बाद भी सिगरेट फूंकने के लिए प्रतिदिन 360 मिनट उन्हें मिला करते थे। इसमें माचिस और लाइटर का तो सवाल ही नहीं उठता.. 'यस'। 'अमिताभ वाज अ चेन-स्मोकर'। उनकी हरेक नई सिगरेट पुरानी सिगरेट के अंगारों से ही आग पकड़ा करती थी।
बच्चन ने शराब पीने में भी कई रिकार्ड बना डाले थे
अब बात करते हैं शराब की। 'मधुशाला' के रचियता कवि बच्चनजी के इस पुत्र ने शराब पीने के लगभग सारे रिकार्ड अपने नाम कर लिए थे। अमिताभ एक दिन में स्कॉच व्हिस्की की 2 बोतल गटगटा जाया करते थे। वैसे भी अधिक शराब पीने वालों की आंखें पूरी सच्चई अपने-आप बयां कर देती हैं। आमतौर पर चार-पांच दोस्तों के साथ दो-तीन घंटों की महफिल में शराब की एक बोतल तो यूं ही खत्म हो जाती है (यह मेरा अंदाजा है)। लेकिन यहां तो यह व्यक्ति एक दिन में दो बोतलें खाली कर दिया करता था।
इतनी शराब पीने के पीछे दो अलग-अलग कारण थे। इसमें से एक था शराब पीने की क्षमता पहचानने का। अमिताभ अपने दोस्तों से अक्सर शर्त लगाया करते थे..'स्कॉच व्हिस्की की एक पूरी बोतल एक सांस में पी जाने की'। पैग बनाने की तो बात ही नहीं थी। न पानी और न उसमें सोडा..बोतल का मुंह सीधे मुंह से लगाना और एक बार में पूरी बोतल खाली कर देना। (स्कॉच व्हिस्की में मौजूद अल्कोहल की सांद्रता देखें तो कहा जा सकता है कि इतनी तेज शराब पीने वाले व्यक्ति के शरीर की अंतरत्वचा का क्या हाल होता होगा? लीवर का तो नाश ही हो जाए.)
लेकिन यहां बात सिर्फ इस तरह व्हिस्की पीने की ही नहीं थी। शर्त में शामिल सबसे खतरनाक बात तो दिमागी और शारीरिक संतुलन बरकरार रखने की थी। शर्त यह भी थी कि महफिल का स्थान सातवीं मंजिल पर स्थित किसी दोस्त का फ्लैट। इस फ्लैट की खिड़की, जिसके बीच ग्रिल न हो, और इसके ठीक बीचों-बीच शरीर को बिना किसी सपोर्ट दिए बिना बैठकर पूरी बोतल एक बार में खाली करने की थी।
बोतल जब मुंह से लगाकर पी जाए तो सिर का हिस्सा तो पीछे की तरफ हो जाता है लेकिन बाकी शरीर का आगे की तरफ हो जाता है। यानी की ऐसा करते समय पैर से लेकर सीने तक का पूरा हिस्सा खिड़की से बाहर की ओर दिखाई देता। (पाठकों से मेरा निवेदन है कि वे कभी भी इस तरह का प्रयास न करें।) शरीर को किसी भी वस्तु का सहारा दिए बिना इतनी शराब पीने से रक्त और दिमाग की कोशिकाएं पूरी तरह से झन्ना जाती हैं। अंदाजा लगाइए कि इस स्थिति में अगर शरीर का जरा सा भी संतुलन बिगड़ता तो सीधे सातवें माले से नीचे आ जाते..।
अमिताभ के दोस्त उनसे कभी जीत नहीं पाए
इस तरह दोस्तों के साथ न जाने कितनी बार शर्त लगाई गई, लेकिन अमिताभ के दोस्त उनसे कभी भी जीत नहीं सके। इसके अलावा बियर पीने की भी एक अलग तरह की ही शर्त थी। सभी दोस्तों के बीच बियर का सिर्फ एक ही मग रखा जाता था। शुरुआत किसी एक से होती थी। जब पहला व्यक्ति मग खाली करता तो दूसरे का नंबर आता...
Source: courtesy शरद ठाकर
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