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Wednesday, November 24, 2010

0 मर्सी किलिंग की ‘गुज़ारिश’?

 विश्व भर में मर्सी किलिंग को लेकर कई वर्षों से बहस चली आ रही है पर आज भी इस दुविधा को खत्म नहीं किया जा सका है कि मर्सी किलिंग सही है या गलत, यह मानव हत्या का ही एक स्वरूप है या वाकई में इसमें किसी की भलाई है।

मर्सी किलिंग का दूसरा नाम है यूथेनेशिया जो कि एक ग्रीक शब्द है जिसका अर्थ है 'गुड डेथ' यानि कि अच्छी मौत। यह ज़िंदगी को खत्म करने का एक ऐसा तरीका है जिसके पीछे पीड़ित को तकलीफ और परेशानी से मुक्ति दिलाने की मंशा होती है।
यूथेनेशिया दो प्रकार का होता है- ऐच्छिक और अनेच्छिक। हालांकि इन दोनों प्रकार के पीछे मंशा एक ही होती है पर अनेच्छिक को अपराध की श्रेणी में रखा गया है वहीं ऐच्छिक को नहीं। ऐच्छिक में मरीज़ की मर्ज़ी शामिल होती है जबकि अनेच्छिक मरीज़ की मर्ज़ी के खिलाफ होता है। इसी श्रेणी में एक और प्रकार है जिसमें मरीज़ की इच्छा प्राप्त नहीं होती। मतलब यदि मरीज़ इस हालत में नहीं कि अपनी मर्ज़ी बता सके या खासतौर पर बच्चे।
इसी तरह मर्सी किलिंग को दो और कैटेगरी में बांटा गया है- एक्टिव (सक्रिय) और पैसिव (निष्क्रिय)। एक्टिव यूथेनेशिया में मरीज़ को ऐसे ड्रग्स और चीज़ें दी जाती हैं जिनसे मानव जीवन खत्म किया जाता है। जबकि पैसिव में जीवन बचाने वाले एंटीबायोटिक्स और इलाज को बंद कर दिया जाता है।
हालांकि मर्सी किलिंग को लेकर कई बातें अभी तक सुलझाई नहीं जा सकी हैं और कई बहस भी इस को लेकर हो चुकी हैं। अभी तक विश्व में कुछ ही देशों में मर्सी किलिंग, जोकि मरीज़ की मर्जी से हो, को लीगल किया गया है, इनमें- बेल्जियम, लग्ज़मबर्ग, नीथरलैंड, स्विटज़रलैंड यूएस, ऑस्ट्रेलिया, अल्बानिया, जर्मनी, आदि शामिल हैं। आज भी मर्सी किलिंग के खिलाफ और समर्थन में कई देशों में बहस जारी है क्योंकि कई बार इसका गलत उपयोग भी किया जा चुका है वहीं यह बात भी ध्यान देने वाली है कि इससे कई लोगों का भला भी किया गया है।
ज़िंदगी को खत्म करने का अधिकार देना चाहिए या नहीं, यह एक अंतहीन बहस बन चुकी है। इसका समर्थन करने वालों के पास अपने तर्क हैं, और खिलाफियत करने वालों के अपने। 1939 में हिटलर ने उन बच्चों को जो कि बीमार हैं या शारिरिक रूप से असक्षम हैं मर्सी किलिंग द्वारा मारने का आदेश दिया था। तर्क ये था कि जब यही बच्चे बड़े होंगे तो उनका जीवन तो वैसे ही दूभर हो जाएगा साथ ही वो किसी काम के भी नहीं होंगे। पर ऐसे केस भी दुनिया में हुए हैं जब ऐसे फैसले बिना किसी जांच और मेडिकल रिकॉर्ड के बिना किए गए। जीवन के अधिकार के साथ साथ मरने का अधिकार भी होना चाहिए, यह अभी भी बहस का मुद्दा है।
Courtesy : dainikbhaskar अपनी बहुमूल्य टिपण्णी देना न भूले- धन्यवाद .

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