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Monday, November 8, 2010

2 सुख' को हजम करना मुश्किल!!

 हम मन पक्का करके जीवन में आने वाले हर एक दुःख को सहन करते हैं। जैसे हम जिंदगी में आने वाले हर एक दुःख को सहन करते हैं, उसी प्रकार हमें सुख भी सहते आना चाहिए, क्योंकि सुख हजम करना इतना आसान नहीं है। प्रायः सुख आने पर इंसान इतराने लगता है और अपने पर काबू नहीं रख पाता है।

जीवन में कई बार ऐसा भी होता है कि दुःख आने पर हमारे संगी-साथी हमारा साथ छोड़ देते हैं और भविष्य में सुखद दिन लौटने पर भी वे हमारे जीवन में वापस नहीं आते।


इसलिए कहा जाता है कि- दुःख आने पर घबराना नहीं और सुख आने पर इतराना नहीं। हम जीवन में अच्छे संकल्प लेकर सुख और दुःख दोनों से पार पा सकते हैं। क्या करें, जीवनरूपी नदी के सुख और दुःख दो किनारे जो हैं। उस विधाता ने किसी को भी मझधार में रहने की व्यवस्था नहीं की है। अतः इंसान या तो सुख के किनारे पर रहेगा या दुःख के दूसरे किनारे पर।

जीवन के इस परम्‌ सत्य को जान लेना जरूरी है कि- दुःख की अपेक्षा सुख सहना या उसे आसानी से हजम करना अधिक कठिन है। एक अच्छे इंसान को यदि 'सुखार्थी' बनना है तो उसे चाहिए कि वह स्वयं को हमेशा 'जिज्ञासु' बनाए रखे और उसमें 'विनय' भी होना ही चाहिए। क्योंकि जिसमें विनय नहीं होगा उसे ज्ञान मिलेगा कैसे? फिर बिना ज्ञान के 'सुख' मिले तो कैसे?

- विलास जोशी

अपनी बहुमूल्य टिपण्णी देना न भूले- धन्यवाद .

 

2 comments:

  1. sach kaha kaushikji,sukh ko hajam karna bahut mushkil hai

    http://sanjaykuamr.blogspot.com/

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  2. सच्चाई को वयां करती हुई रचना , बधाई

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अपनी बहुमूल्य टिपण्णी देना न भूले- धन्यवाद!!