किसान जागा तो नेताओं की भी नींद टूटी, लेकिन इस बार किसान किसी नेता के भरोसे नहीं हैं. वे जान देने को तैयार हैं, लेकिन ज़मीन नहीं. 114 साल पुराने भू-अधिग्रहण क़ानून को बदलने की मांग है. संसद में बैठे नेताओं को सोचना होगा. जब एक प्रदेश के किसान दिल्ली आते हैं तो वह पूरी तरह अस्त-व्यस्त हो जाती है. अगर पूरे देश के किसान एक मंच पर, दिल्ली आ जाएं तो फिर क्या होगा?
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