जब भी हमारे मन की कोई बात पूरी नहीं होती, या कोई हमारी बात नहीं मानता तो क्रोध, गुस्सा अपने आप ही हम पर हावी हो जाता है और हम अपना विवेक खो बैठते हैं। और जयादातर इसके परिणाम काफी बुरे ही होते हैं। क्रोध हमारे दिमाग की सोचने और समझने की क्षमता का हरण कर लेता है और वो कर बैठते हैं जिसके लिए बाद में पछताना पड़ता है।
मेरे साथ अक्सर ये होता है, मैंने कई बार अपना अर्धिक और सामाजिक नुकसान क्रोध के ही कारण किया है. बहुत कोशिश करता हूँ, फिर कभी दोबारा ऐसा नहीं हो, परन्तु में इस पर अपना कण्ट्रोल नहीं कर सकता. और यही गलती बार बार दोहराता हूँ.
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