डॉ. मनमोहन सिंह 14. 08.2011 प्रधानमंत्री भारत सरकार नई दिल्ली
प्रिय डॉ. मनमोहन सिंह जी!
जंतर मंतर पर अनशन करने के लिए, हमने 15 जुलाई 2011 को पत्र लिखकर आपकी सरकार से अनुमति मांगी थी। उस दिन से लेकर आज तक हमारे साथी दिल्ली पुलिस के अलग-अलग थानों, दिल्ली नगर निगम, एनडीएमसी, सीपीडब्ल्यू डी, और शहरी विकास मंत्रालय के लगभग हर रोज चक्कर काट रहे हैं।
अब हमें बताया गया है कि हमें केवल तीन दिन के लिए उपवास की अनुमति दी जा सकती है। मुझे समझ में नहीं आता कि लोकशाही में अपनी बात कहने के लिए इस तरह की पाबन्दी क्यों? किस कानून के तहत आप इस तरह की पाबन्दी लगा सकते हैं? इस तरह की पाबन्दी लगाना संविधान के खिलाफ हैं और उच्चतम न्यायालय के तमाम निर्देशों की अवमानना हैं। जब हम कह रहे हैं कि हम अहिंसापूर्वक, शांतिपूर्वक अनशन करेंगे, किसी को कोई नुकसान नहीं पहुंचाएंगे तो यह तानाशाही भरा रवैया क्यों? देश में आपातकाल जैसे हालात बनाने की कोशिश क्यों की जा रही है?
संविधान में साफ-साफ लिखा है कि शांतिपूर्वक इकट्ठा होकर, बिना हथियार के विरोध प्रदर्शन करना हमारा मौलिक अधिकार है। क्या आप और आपकी सरकार हमारे मौलिक अधिकारों का हनन नहीं कर रहे? जिन अधिकारों और आज़ादी के लिए हमारे क्रांतिकारियों और स्वतंत्रता सेनानियों ने कुर्बानी दी, स्वतंत्रता दिवस के दिन पहले क्या आप उसी आज़ादी को हमसे नहीं छीन रहे हैं? मैं सोच रहा हूं कि 65 वें स्वतंत्रता दिवस पर आप क्या मुंह लेकर लाल किले पर ध्वज फहराएंगे?
पहले हमें जंतर मंतर की इजाज़त यह कहकर नहीं दी गई कि हम पूरी जंतर मंतर रोड को घेर लेंगे और बाकी लोगों को प्रदर्शन करने की जगह नहीं मिलेगी। यह सरासर गलत है क्योंकि पिछली बार हमने जंतर मंतर रोड का केवल कुछ हिस्सा इस्तेमाल किया था। फिर भी हमने आपकी बात मानी, और चार नई जगहों का सुझाव दिया- राजघाट, वोट क्लब, रामलीला मैदान और शही पार्क। रामलीला मैदान के लिए तो हमें दिल्ली नगर निगम से भी अनुमति मिल गई थी लेकिन आपकी पुलिस ने इस मुद्दे पर कई दिन भटकाने के बाद चारों जगहों के लिए मना कर दिया।
मना करने के पीछे एक भी जगह के लिए कोई वाजिब कारण नहीं था। सिर्फ मनमानी भरा रवैया था। हमने कहा आप दिल्ली के बीच कोई भी ऐसा स्थान दे दीजिए जो मेट्रो और बसों से जुड़ा हो, अंततः हमें जेपी। पार्क दिखाया गया, जो हमने मंजूर कर लिया। अब आपकी पुलिस कहती है कि यह भी केवल तीन दिन के लिए दिया जा सकता है। क्यों? इसका भी कोई कारण नहीं बताया जा रहा। माननीय सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेशों में साफ-साफ कहा है कि सरकार मनमाने तरीके से लोगों के इस मौलिक अधिकार का हनन नहीं कर सकती।
क्या इन सबसे तानासाही की गंध नहीं आती? संविधान के परखच्चे उड़ाकर, जनतंत्र की हत्या कर, जनता के मौलिक अधिकारों को रौंदना क्या आपको शोभा देता है?
लोग कहते हैं कि आपकी सरकार आज़ादी के बाद की सबसे भ्रष्ट सरकार है। हालांकि मेरा मानना है कि हर अगली सरकार पिछली सरकार से ज्यादा भ्रष्ट होती है। लेकिन भ्रश्टाचार के खिलाफ़ आवाज़ उठाने वालो को कुचलना, यह आपके समय में कुछ ज्यादा ही हो रहा है। स्वामी रामदेव के समर्थकों की सोते हुए आधी रात में पिटाई, पुणे के किसानों पर गोलीबारी जैसे कितने ही उदाहरण हैं जो आपकी सरकार के इस चरित्र का नमूना पेश करते हैं। यह बहुत चिंता का विषय है।
हम आपको संविधान की आहूति नहीं देने देंगे। हम आपको जनतंत्र का गला नहीं घोंटने देंगे। यह हमारा भारत है। इस देश के लोगों का भारत। आपकी सरकार तो आज है, कल हो न हो।
बड़े खेद की बात है कि आपके इन ग़लत कामों की वजह से ही अमेरिका के हमारे लोकतंत्र के आंतरिक मामलों में दखल देने की हिम्मत हुई। भारत अपने जनतांत्रिक मूल्यों की वजह से जाना जाता रहा है। लेकिन अंतराष्ट्रीय स्तर पर आज उन मूल्यों को ठेस पहुंची है। यह बहुत ही दुख की बात है।
मैं यह पत्र इस उम्मीद से आपको लिख रहा हूं कि आप हमारे मौलिक अधिकारों की रक्षा करेंगे। क्या भारत का प्रधानमंत्री दिल्ली के बीच अनशन के लिए हमें कोई जगह दिला सकता है? आज यह सवाल मैं आपके सामने खड़ा करता हूं।
आपकी उम्र 79 साल है। देश के सर्वोच्च पद पर आप आसीन हैं। जिंदगी ने आपको सब कुछ दिया। अब आपको जिंदगी से और क्या चाहिए। हिम्मत कीजिए और कुछ ठोस कदम उठाइए।
मैं और मेरे साथी, देश के लिए अपना जीवन कुर्बान करने के लिए तैयार हैं। 16 अगस्त से अनशन तो होगा। लाखों लोग देश भर में सड़कों पर उतरेंगे। यदि हमारे लोकतंत्र का मुखिया भी अनशन के लिए कोई स्थान देने में असमर्थ रहता है तो हम गिरफ्तारी देंगे और अनशन जेल में होगा।
संविधान और लोकतंत्र की रक्षा करना आपका परम कर्तव्य है। मुझे उम्मीद है कि आप मौके की नज़ाकत को समझेंगे और तुरंत कुछ करेंगे।
भवदीय, अन्ना हज़ारे
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