ढाका।। बांग्लादेश हाई कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसले में व्यवस्था दी है कि फतवे के नाम पर कोड़े मारना अथवा महिला को पीटना क्राइम है। जस्टिस
सैयद महमूद हुसैन और गोविन्द चंद्र टैगोर की बेंच ने फैसले में कहा जो काई भी अदालत से अलग सजा का फरमान जारी करता है वह क्राइम कर रहा है।
बेंच ने कहा कि कोड़े लगाना अथवा स्थानीय पंचाट में लोगों द्वारा किसी की पिटाई जुडिशल प्रोसेस का उल्लंघन है। कई मानवाधिकार संगठनों की याचिका पर सुनाये गए फैसले में अदालत ने खासतौर पर संबंधित अधिकारियों को महिलाओं के खिलाफ फतवे जारी करने वाले लोगों के खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई करने का निर्देश दिया।
अदालत ने सरकार, कानून पालन कराने वाली एजेंसियों और स्थानीय निकायों खासकर नगरपालिका और यूनियन काउन्सिल से पीड़ितों को सुरक्षा मुहैया कराने को कहा है। अदालत ने महिलाओं को सतानेवाले लोगों के खिलाफ तत्काल कार्रवाई करने का आदेश दिया। यह फैसला पहली सुनवाई के करीब एक साल बाद आया है। तब अदालत ने एक नियम जारी कर सरकार और पुलिस प्रमुख से यह साफ करने को कहा था कि वे कानून से अलग अपनी सत्ता चलानेवालों के खिलाफ कारगर कदम उठाने तथा अपने कानूनी और संवैधानिक दायित्वों को निभाने में क्यों नाकाम रहे।
अदालत ने फैसले में सरकार से तय करने को कहा है कि वह कानून से अलग सजा देने की इस तरह की घटना होने पर इसकी सूचना कोर्ट को दे। इससे पहले 2001 में गुलाम रब्बानी और नजमून आरा सुल्ताना वाली हाई कोर्ट की एक बेंच ने फतवा जारी करने को अवैध घोषित किया था और दंडनीय करार दिया था। इसके खिलाफ अपील की गई और सुप्रीम कोर्ट की अपीली डिवीजन ने उसी साल उसके इंप्लीमेंटेशन पर रोक लगा दी। फैसला अब भी अपीली डिवीजन के सामने है
बेंच ने कहा कि कोड़े लगाना अथवा स्थानीय पंचाट में लोगों द्वारा किसी की पिटाई जुडिशल प्रोसेस का उल्लंघन है। कई मानवाधिकार संगठनों की याचिका पर सुनाये गए फैसले में अदालत ने खासतौर पर संबंधित अधिकारियों को महिलाओं के खिलाफ फतवे जारी करने वाले लोगों के खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई करने का निर्देश दिया।
अदालत ने सरकार, कानून पालन कराने वाली एजेंसियों और स्थानीय निकायों खासकर नगरपालिका और यूनियन काउन्सिल से पीड़ितों को सुरक्षा मुहैया कराने को कहा है। अदालत ने महिलाओं को सतानेवाले लोगों के खिलाफ तत्काल कार्रवाई करने का आदेश दिया। यह फैसला पहली सुनवाई के करीब एक साल बाद आया है। तब अदालत ने एक नियम जारी कर सरकार और पुलिस प्रमुख से यह साफ करने को कहा था कि वे कानून से अलग अपनी सत्ता चलानेवालों के खिलाफ कारगर कदम उठाने तथा अपने कानूनी और संवैधानिक दायित्वों को निभाने में क्यों नाकाम रहे।
अदालत ने फैसले में सरकार से तय करने को कहा है कि वह कानून से अलग सजा देने की इस तरह की घटना होने पर इसकी सूचना कोर्ट को दे। इससे पहले 2001 में गुलाम रब्बानी और नजमून आरा सुल्ताना वाली हाई कोर्ट की एक बेंच ने फतवा जारी करने को अवैध घोषित किया था और दंडनीय करार दिया था। इसके खिलाफ अपील की गई और सुप्रीम कोर्ट की अपीली डिवीजन ने उसी साल उसके इंप्लीमेंटेशन पर रोक लगा दी। फैसला अब भी अपीली डिवीजन के सामने है
मुस्लिम धर्म के ठेकेदारों और कट्टरपंथियों को सिखाना चाहिए
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