मंत्री अथवा गुरू किसे बनायें, जिसमें सत्य को सत्य एवं असत्य को असत्य कहने का साहस हो, जो चाटुकारिता में नहीं बल्कि राज्यहित में विश्वास रखता हो, जो मान अपमान से परे हो, जिसे धन का लोभ न हो, जो कंचन व कामिनी से अप्रभावित रहे उसी व्यक्ति को राजा को अपना मंत्री अथवा गुरू नियुक्त करना चाहिये - चाणक्य नीति
शायद मेरे गुरुजी ऎसे नही थे, इसलिय मुझे बीस साल बाद उनसे मोहभँग हो गया!
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