कश्मीर भारत का अभिन्न अंग नहीं है कहने वाली अरुंधति राय का विवादों से पुराना नाता रहा है। पता नही कयोँ भारत सरकार ऎसे लोगों से सख्ती से नही निपटती, सरकारोँ की एसी क्या मजबुरी है ?
एक व्यक्ति जो अपना दिमाग खो दे - उसे आप क्या कहेगे।'
यह पहली बार नहीं है जब अरुंधति रॉय कश्मीर पर दिए अपने बयान को लेकर विवादों में हैं। इससे पहले कश्मीर को पाकिस्तान को देने संबंधी बयान पर अरुंधति रॉय पर जूता भी फेंका जा चुका है।
गौरतलब है कि 13 फरवरी को दिल्ली यूनिवर्सिटी में एक वार्ता के दौरान युवा (यूथ यूनिटी फॉर वाइब्रेंट एक्शन) के एक सदस्य ने लेखिका पर पाकिस्तान का समर्थन करने के विरोध में जूता फेंक दिया था। बाद में एक नीलामी में यह जूता एक लाख रुपए में बिका था।
विवादों की देवी कहिए
कश्मीर भारत का अभिन्न अंग नहीं है कहने वाली अरुंधति राय का विवादों से पुराना नाता रहा है।
अंग्रेजी की इस लेखिका को अपने उपन्यास 'द गॉड ऑफ द स्माल थिंग्स' से चर्चा मिली और इस पर बुकर प्राइज जीतने के बाद वो जानी पहचानी हस्ती हो गई। इससे पहले रॉय ने कुछ फिल्मों के लिए स्क्रीन प्ले भी लिखा था। लेकिन द गॉड ऑफ स्माल थिंग्स के प्रकाशन से पहले अरुंधति राय की जिंदगी में आर्थिक स्थायित्व नहीं था। उन्होंने इस बीच तरह तरह के काम किए, यहां तक की दिल्ली के फाइव स्टार होटल्स में उन्होंने एयरोबिक्स की क्लासेज भी लीं।
नक्सलियों को समर्थन
बस्तर में सीआरपीएफ जवानों पर हमले के बाद अरूंधति ने नक्सल प्रभावित क्षेत्रों का दौरा किया। जिसमें उन्होंने नक्सलवाद का सर्मथन करते हुए एक पत्रिका में लेख लिखा। देश की मुख्यधारा की पार्टियों ने अरुंधति राय के लेख की आलोचना की।
अलगाववाद का समर्थन
अभी हाल के विवादों से पहले भी रॉय तमाम मंचों पर कश्मीर के बारे में ऐसे विचार व्यक्त करती रही हैं जो कथित तौर पर भारत सरकार के विचार के खिलाफ हैं। इससे पहले भी उन्होंने अलगाववादियों की आजादी की मांग का सर्मथन किया है।
बैंडिट क्वीन
डाकू फूलन देवी के जीवन पर बनी फिल्म बैंडिट क्वीन की अरुंधति ने जोरदार आलोचना की थी। फेस्टिवल सर्किट में सराही और तमाम समारोहों में पुरस्कृत इस फिल्म की आलोचना करते हुए रॉय ने इस 'द गेट्र इंडियन रेप ट्रिक' कहा था। डायरेक्टर शेखर कपूर के रेप की सीन्स को इन एक्ट करने को लेकर उन्होंने आलोचना की थी और कहा था कि बगैर फूलन की अनुमति लिए उन्होंन फूलन जैसी महिला के किरदार को गलत ढंग से परदे पर पेश किया
अफजल की फांसी
अफजल गुरू की फांसी का विरोध कर रहे तमाम मानवाधिकार संगठनों के सर्मथन में उतरी अरुंधति ने अफजल और संसद भवन पर हमले के प्रकरण में न्याय प्रकिया पर सवाल उठा दिया। उनका कहना है कि अफजल को बिना ठोस सबूतों के आधार पर फांसी की सजा दी गई थी।
द गॉड ऑफ स्माल थिंग्स
अरुंधति के बेहद सफल पहले नॉवेल को लेकर ही विवाद उत्पन्न हुआ। माना जाता है कि मोटे तौर पर उपन्यास की कहानी अरुधंति राय की मां की कहानी है। वैसे अरुंधति राय को एंटी ग्लोब्लाइजेशन और अमेरिका विरोधी नीतियों का प्रवक्ता माना जाता है। लेकिन इस उपन्यास में उन्होंने केरल में लंबे समय तक चलने वाले कम्युनिस्ट शासन का मजाक उड़ाया है। द गॉड ऑफ स्माल थिंग्स को बुकर मिलने के बाद केरल के तमाम कम्युनिस्ट नेताओं ने आरोप लगाया था कि कम्युनिस्टों का मजाक उड़ाने के लिए ही पश्चिमी देशों ने इस किताब को बुकर पुरस्कार दिया है।
सरदार सरोवर प्रोजेक्ट और कोर्ट की अवमानना
द गॉड ऑफ स्माल थिंग्स के बाद लेखिका ने फिक्शन से हटकर राजनीतिक समस्याओं पर अपने लेखन को केंद्रित कर लिया। वह उदारीकरण, भारत की परमाणु नीति और विकास की परियोजनाओं की जोरदार मुखालफत करती रही।
मेधा पाटेकर के साथ मिलकर उन्होंने नर्मदा बचाओ आंदोलन में शिरकत की और इस मामले में उन्होंने अदालत के आदेशों की आलोचना की। सुप्रीम कोर्ट की अवमानना के आरोप में प्रतीकात्मक रूप से रॉय को एक दिन की जेल और 2500 रू का जुर्माना देना पड़ा था। इसको लेकर देश के जाने माने इतिहासकार रामचंद्र गुहा ने उनकी जोरदार आलोचना की थी और अरूंधति रॉय और रामचंद्र गुहा के बीच इंटीलेक्चुअल सर्किल में जोरदार बहस चली थी। प्रसिद्ध स्तंभकार तवलीन सिंह ने भी उनकी आलोचना की थी।
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