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क्या होती है देशभक्ति
ओलंपिक एसोसिएशन ऑफ एशिया (ओएए) ने पहली बार एशियाई खेलों में क्रिकेट को जगह देकर इस खेल को बड़ा मान दिया है, लेकिन उसके पास खिलाडि़यों को देने के लिए दाम नहीं है। सो, भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) की नजर में इस मान का कोई मोल नहीं रहा।
जी हां, बीसीसीआई ने साफ कर दिया है कि इस साल के अंत में चीन में होने वाले एशियाई खेलों में वह क्रिकेट खिलाडि़यों की टीम नहीं भेज सकेगा। बोर्ड का तर्क है कि नवंबर में एशियाड के दौरान खिलाडि़यों का विदेश में खेलने का कार्यक्रम तय हो चुका है।
खेल मंत्री कटाक्ष करते रहें, बीसीसीआई की बला से। उसे तो कमाई होगी, तभी किसी प्रतियोगिता में टीम भेजी जाएगी। एशियाई खेलों में टीम भेज कर बीसीसीआई को क्या मिलेगा भला? पदक की उसे जरूरत नहीं है। और, कौन जाने कहीं पदक भी कोई और ही देश झटक ले जाए ? नाक बचानी मुश्किल हो जाएगी। मिलना कुछ नहीं, फजीहत पूरी। भला ऐसा जोखिम लेने का क्या फायदा? इन खेलों में शामिल होना सम्मान की बात होती होगी किसी और के लिए, बीसीसीआई को भला सम्मान की क्या जरूरत है? उसे तो वैसे ही हर कोई सम्मान देता है। जिस क्रिकेट की बदौलत उसकी सत्ता चलती है, उसे तो भारत में लोग धर्म मानते हैं। ऐसे में खाली सम्मान के लिए खेलने की 'बेवकूफी' कौन करे।
विजय कुमार झा
न्यूज़ एडिटर, भास्कर
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