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Wednesday, July 7, 2010

2 दूरदर्शन की दक्षिणा से शुरू हुआ था इंडिया टीवी

 रजत शर्मा पर बड़े उपकार हैं अरुण जेटली के



एक टीवी चैनल स्थापित करने में करोड़ों रुपए लगते हैं और उसे चलाने में भी करोड़ों रुपये हर साल लगते हैं। दिल्ली में एक ऐसा टीवी चैनल है जिनका मालिक कश्मीरी गेट के एक अपेक्षाकृत गरीब परिवार में पैदा हुए थे।
एक ही कमरे में दर्जनों लोग सोते थे। बात इंडिया टीवी के मालिक रजत शर्मा की हो रही है। रजत शर्मा को जिंदगी में पत्रकारिता का ब्रेक जल्दी मिला। वे प्रभु चावला के अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद और दिल्ली विश्वविद्यालय के जमाने के साथी हैं। भले ही प्रभु चावला जैसा होने का इल्जाम उन पर नहीं लगाया जाता लेकिन साइकिल से आधुनिकतम कारों और भूत- प्रेत दिखा कर ही सही, सफल होने वाले टीवी चैनल की सफलता की कहानी उनसे जुड़ी है। सफलता की इस कहानी के पीछे की कहानी आपको बतानी है।
साल सन 2000 था। सरकार अटल बिहारी वाजपेयी की थी। सूचना और प्रसारण मंत्री देश के जाने माने वकील और भाजपा के ताकतवर नेताओं में से एक अरुण जेटली हुआ करते थे। रजत शर्मा जिन्होंने प्रेस इंन्फॉरमेशन ब्यूरो का कार्ड लेने के लिए ग्वालियर के एक अखबार दैनिक स्वदेश से फर्जी अनुभव प्रमाण पत्र लिया था, जी टीवी के जरिए और आपकी अदालत जैसे सफल प्रोग्राम के रास्ते टीवी की दुनिया में आए थे। मगर उनका असली उद्धार उनके पुराने नेता और दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ के अध्यक्ष रहे अरुण जेटली ने सूचना और प्रसारण मंत्रालय के जरिए किया।
अरुण जेटली ने रजत शर्मा की कंपनी, जो वे अपनी दूसरी पत्नी रितु धवन के साथ चला रहे थे और चला रहे हैं, इंडीपेंडेंट इंडिया प्राइवेट लिमिटेड, को डेढ़ घंटे का दैनिक कार्यक्रम बनाने के लिए सन 2000 में 55 लाख रुपए प्रति माह दूरदर्शन से देने का करार कराया था। यह करार इसलिए विचित्र था कि तकनीकी साधन और कर्मचारी भी दूरदर्शन के ही काम करते थे और कई बार दूरदर्शन का ही फुटेज इस्तेमाल किया जाता था, मगर रजत शर्मा की कंपनी को 55 लाख रुपए हर महीने मिलते रहते थे।
यह राज्यसभा का रिकॉर्ड कह रहा है। महान पत्रकार और आपातकाल में रजत शर्मा से ज्यादा जेल में रहे और माफी मांग कर बाहर नहीं निकले कुलदीप नायर ने राज्यसभा के सदस्य की हैसियत से सूचना और प्रसारण मंत्री अरुण जेटली से यह सवाल पूछा। जवाब मिला था कि सप्ताह में पांच दिन सुबह सेवन टू नाइन नाम का एक समाचार कैप्सूल बनाने के लिए इंडीपेंडेंट मीडिया को 55 लाख रुपए दिए जाते थे। हिसाब लगाएं तो बीस दिन 90 मिनट प्रतिदिन यानी 1800 मिनट का यह कार्यक्रम होता था और इसके लिए 55 लाख का नियमित भुगतान दूरदर्शन से होता था। प्रति मिनट भुगतान की गिनती आप कर लीजिए क्योंकि अपना गणित ज्यादा कमजोर हैं।
कुलदीप नायर ने अरुण जेटली से पूछा था कि उन संस्थाओं और व्यक्तियों के नाम बताए जाएं जिन्हें दूरदर्शन से लगातार पैसा दिया जा रहा है। इनमें इंडीपेंडेंट इंडिया प्राइवेट लिमिटेड का नाम तो बता दिया गया मगर रजत शर्मा और रितु धवन का नाम नहीं बताया गया। इसके पहले राहुल देव और मृणाल पांडे को डेढ़-डेढ़ लाख रुपए महीने पर समाचार सलाहकार रखा गया था तो काफी हंगामा मचा था।
कुलदीप नायर के सवाल के जवाब में रजत शर्मा और रितु धवन का नाम तो नहीं बताया गया मगर बीएजी फिल्म्स की अनुराधा प्रसाद का नाम बता दिया गया जो कांग्रेस सांसद राजीव शुक्ला की पत्नी हैं और भाजपा नेता रविशंकर प्रसाद की बहन भी हैं। वे रोजाना के नाम से एक समाचार बुलेटिन बनाती थीं जिसके लिए उन्हें 22 लाख रुपए प्रतिमाह मिलते थे और दूरदर्शन के ढांचे का कोई सहयोग नहीं था। असली मुफ्तखोरी तो रजत शर्मा की कंपनी ने की। इसके अलावा 31 और कंपनियों के नाम थे जिनमें से ट्रांस वर्ल्ड इंटरनेशनल 36 लाख रुपए महीने में दैनिक खेल समाचार देती थी।
दूरदर्शन के ही एक भूतपूर्व कैमरामैन प्रेम प्रकाश की कंपनी एशियन न्यूज इंटरनेशनल - एएनआई को चौदह लाख दस हजार रुपए महीने मिलते थे। रिवर बैंक स्टूडियो सप्ताह में एक कार्यक्रम बनाता था और उसे चौदह लाख साठ हजार रुपए मिलते थे। शैली सुमन प्रोडक्शन को विज्ञान पर साप्ताहिक कार्यक्रम बनाने के लिए दस लाख साठ हजार महीने मिलते थे। टीम वर्ग फिल्म्स और आईएमए के नाम की कपंनी को सप्ताह में तीन बार पंचायती टॉक शो करने के दस लाख चालीस हजार रुपए मिलते थे और वर्ल्ड रिपोर्ट नाम की कंपनी को साप्ताहिक बुलेटिन विश्व समाचारों का निकालने के लिए दस लाख रुपए महीने मिलते थे।
कुलदीप नायर ने जोर देकर अरुण जेटली से पूछा था कि 55 लाख रुपए महीने दूरदर्शन से लूटने वाली इस कंपनी के असली मालिक कौन हैं यानी किसकी जेब में यह पैसा जा रहा है? उन्होंने पूछा था कि वे तीन व्यक्ति कौन हैं जो दूरदर्शन की आउटसोर्सिंग नीति के तहत सबसे ज्यादा कमाई कर रहे हैं? जेटली ने कहा कि दस्तावेजों में सबके नाम हैं। मगर कुलदीप नायर अड़े रहे और अरुण जेटली भी कम नहीं थे इसलिए उन्होंने लिखित बयान में इन सभी कंपनियों के कार्यक्रमों की समीक्षा पेश कर दी।
उन्होंने तो यहां तक कह डाला कि वीर सांघवी, नलिनी सिंह, मृणाल पांडे, चंदन मित्रा और सईद नकवी जैसे बड़े नामों को जोड़ कर उन्होंने अच्छा काम किया हैं। मृणाल पांडे अब प्रसार भारती की मुखिया बन गई हैं और रजत शर्मा अब इंडिया टीवी चलाते हैं और लोगों को डराते हैं। चंदन मित्रा दूसरी बार भाजपा की ओर से सांसद बने हैं और सईद नकवी अपने आप में इतने बड़े पत्रकार रहे हैं कि उनकी कोई कीमत नहीं लगाई जा सकती। नाम-चेहरे सब कायम हैं। कोई दक्षिणा लेकर गुरु घंटाल बन गया तो कोई दक्षिणा पर लात मारकर गुड़-गोबर रह गया। लेकिन इतिहास का नाम कुछ दशक की कहानी पढ़ना-पढ़ाना नहीं होता। भविष्य लालचियों और घपलेबाजों का नहीं ही है, आज भले बाजारू सफलता उन्हें चकाचौंध कर रही हो, आत्ममुग्ध कर रही हो।
लेखक आलोक तोमर देश के जाने-माने पत्रकार हैं.

2 comments:

  1. इतनी सलीके की जानकारी और टिपण्णी एक भी नहीं !

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  2. रोचक जानकारी

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