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Monday, July 5, 2010

1 ऑम जय जगदीश हरे

ऑम जय जगदीश हरे के रचयिता, भूला दिया गया जननायक


मैनें कुछ लोगों से पूछा कि क्या उन्हें पता है कि प्रसिद्ध आरती"ऑम जय जगदीश हरे" के रचयिता कौन हैं? एक ने जवाब दिया कि हर आरती तो पौराणिक काल से गाई जाती है, एक ने इस आरती को वेदों का एक भाग बताया और एक ने कहा कि सम्भवत: इसके रचयिता अभिनेता-निर्माता-निर्देशक मनोज कुमार हैं!


ऑम जय जगदीश हरे, आरती आज हर हिन्दू घर में गाई जाती है. इस आरती की तर्ज पर अन्य देवी देवताओं की आरतियाँ बन चुकी है और गाई जाती है, परंतु इस मूल आरती के रचयिता के बारे में काफी कम लोगों को पता है.
 
इस आरती के रचयिता थे पं. श्रद्धाराम शर्मा या श्रद्धाराम फिल्लौरी. आज यानी 24 जून को उनकी पूण्यतिथि है. पं. श्रद्धाराम शर्मा का जन्म पंजाब के जिले जालंधर में स्थित फिल्लौर शहर में हुआ था. वे सनातन धर्म प्रचारक, ज्योतिषी, स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, संगीतज्ञ तथा हिन्दी और पंजाबी के प्रसिद्ध साहित्यकार थे. उनका विवाह सिख महिला महताब कौर के साथ हुआ था.

बचपन से ही उन्हें ज्यौतिष और साहित्य के विषय में गहरी रूचि थी. उन्होनें वैसे तो किसी प्रकार की शिक्षा हासिल नहीं की थी परंतु उन्होंने सात साल की उम्र तक गुरुमुखी में पढाई की और दस साल की उम्र तक वे संस्कृत, हिन्दी, फ़ारसी भाषाओं तथा ज्योतिष की विधा में पारंगत हो चुके थे.
 
उन्होने पंजाबी (गुरूमुखी) में 'सिक्खां दे राज दी विथियाँ' और 'पंजाबी बातचीत' जैसी पुस्तकें लिखीं. 'सिक्खां दे राज दी विथियाँ' उनकी पहली किताब थी. इस किताब में उन्होनें सिख धर्म की स्थापना और इसकी नीतियों के बारे में बहुत सारगर्भित रूप से बताया था. यह पुस्तक लोगों के बीच बेहद लोकप्रिय साबित हुई थी और अंग्रेज सरकार ने तब होने वाली आईसीएस (जिसका भारतीय नाम अब आईएएस हो गया है) परीक्षा के कोर्स में इस पुस्तक को शामिल किया था.

पं. श्रद्धाराम शर्मा गुरूमुखी और पंजाबी के अच्छे जानकार थे और उन्होनें अपनी पहली पुस्तक गुरूमुखी मे ही लिखी थी परंतु वे मानते थे कि हिन्दी के माध्यम से ही अपनी बात को अधिकाधिक लोगों तक पहुँचाया जा सकता है. हिन्दी के जाने माने लेखक और साहित्यकार पं. रामचंद्र शुक्ल ने पं. श्रद्धाराम शर्मा और भारतेंदु हरिश्चंद्र को हिन्दी के पहले दो लेखकों में माना है. उन्होनें1877 में भाग्यवती नामक एक उपन्यास लिखा था जो हिन्दी में था. माना जाता है कि यह हिन्दी का पहला उपन्यास है. इस उपन्यास का प्रकाशन 1888 में हुआ था. इसके प्रकाशन से पहले ही पं. श्रद्धाराम का निधन हो गया परंतु उनकी मृत्यु के बाद उनकी पत्नी ने काफी कष्ट सहन करके भी इस उपन्यास का प्रकाशन करावाया था. 

वैसे पं. श्रद्धाराम शर्मा धार्मिक कथाओं और आख्यानों के लिए काफी प्रसिद्ध थे. वे महाभारत का उध्दरण देते हुए अंग्रेजी हुकुमत के खिलाफ जनजागरण का ऐसा वातावरण तैयार कर देते थे उनका आख्यान सुनकर प्रत्यैक व्यक्ति के भीतर देशभक्ति की भावना भर जाती. इससे अंग्रेज सरकार की नींद उड़ने लगी और उसने 1865 में पं. श्रद्धाराम को फुल्लौरी से निष्कासित कर दिया और आसपास के गाँवों तक में उनके प्रवेश पर पाबंदी लगा दी. 

लेकिन उनके द्वारा लिखी गई किताबों का पठन विद्यालयों में हो रहा था और वह जारी रहा. निष्कासन का उन पर कोई असर नहीं हुआ, बल्कि उनकी लोकप्रियता और बढ गई. निष्कासन के दौरान उन्होनें कई पुस्तकें लिखी और लोगों के सम्पर्क में रहे. पं. श्रद्धाराम ने अपने व्याख्यानों से लोगों में अंग्रेज सरकार के खिलाफ क्रांति की मशाल ही नहीं जलाई बल्कि साक्षरता के लिए भी ज़बर्दस्त काम किया.

1870
में उन्होने एक ऐसी आरती लिखी जो भविष्य में घर घर में गाई जानी थी. वह आरती थी - ऑम जय जगदीश हरे... 

पं. शर्मा जहाँ कहीं व्याख्यान देने जाते ओम जय जगदीश आरती गाकर सुनाते. उनकी यह आरती लोगों के बीच लोकप्रिय होने लगी और फिर तो आज कई पीढियाँ गुजर जाने के बाद भी यह आरती गाई जाती रही है और कालजई हो गई है. इस आरती का उपयोग प्रसिद्ध निर्माता निर्देशक मनोज कुमार ने अपनी एक फिल्म में किया था और इसलिए कई लोग इस आरती के साथ मनोज कुमार का नाम जोड़ देते हैं.
 
पं. शर्मा सदैव प्रचार और आत्म प्रशंसा से दूर रहे थे. शायद यह भी एक वजह हो कि उनकी रचनाओं को चाव से पढने वाले लोग भी उनके जीवन और उनके कार्यों से परिचित नहीं हैं. 24 जून 1881 को लाहौर में पं. श्रद्धाराम शर्मा ने आखिरी सांस ली.
THANKS AND  COURTESY BY TARAKASH

Friday, May 28, 2010

0 Suicide

रूस की यह घटना हालांकि सच्ची है, लेकिन पूरी फिल्मी है। शादी से एक दिन पहले अपनी मंगेतर की मौत से दुखी युवक नदी पर बने पुल से कूदकर जान देने जा रहा था। तभी वहां उसे एक लड़की मिली। वह भी अपनी जिंदगी से तंग आकर आत्महत्या करने वाली थी। नजरें मिली, बातें हुई और दोनों में प्यार हो गया। 26 वर्षीय आद्रेंज इवानोव नाम के इस युवक की शादी से एक दिन पहले उसकी मंगेतर की कार दुर्घटना में मौत हो गई। हताश इवानोव रात को मध्य रूस के यूएफए पुल से कूद कर जान देना चाहता था।

Text from jagran newspaper
 

Sunday, May 16, 2010

0 Late Sh. Bhairon Singh Sekhawat (Vice president of india)

शेखावत की धोती 
मुख्यमंत्री बनने के बाद शेखावत सरकारी यात्रा पर इजराइल गए। वहां भी परिधान बंद गले का कोट, कुर्ता और धोती ही रखा। शेखावत ने पहले दिन पहनी धोती होटल की लांड्री में धुलने को दे दी। दूसरे दिन वे इजरायली अधिकारियों के साथ बैठक समाप्त कर होटल की लॉबी में आए तो देखा कि एक व्यक्ति उनकी धोती का एक सिरा, दूसरा व्यक्ति दूसरा सिरा पकड़े था तो दो व्यक्ति बीच में से पकड़कर खड़े थे। विस्मय से शेखावत ने इन व्यक्तियों से पूछा कि वे इस तरह धोती को क्यों पकड़कर खड़े हैं? उन लोगों ने जवाब दिया कि सर, वी डोंट नो हाउ टू फोल्ड इट। सो वी आर कैरिंग दिस लाइक इट (महोदय, हमें पता नहीं कि इसे किस तरह फोल्ड किया जाता है, अत: हम इसे इस तरह ले जा रहे हैं) लांड्री वालों का उत्तर सुनकर शेखावत सहित लॉबी में खड़े सभी हंसते हंसते दुहरे हो गए। फिर शेखावत ने आगे बढ़कर उन्हें बताया कि धोती कैसे फोल्ड की जाती है। वे हतप्रभ रह गए कि कोई इतनी बड़ी चीज ऐसे फोल्ड भी हो सकती है।