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Friday, October 22, 2010

0 राष्ट्रमंडल खेल - दिल्ली, क्या रहा अच्छा, क्या बुरा और क्या बेहद शर्मनाक

दिल्ली राष्ट्रमंडल खेलों का आज समापन दिवस है. इन खेलों से देश ने काफी कुछ अर्जित भी किया है और काफी कुछ खोया भी है. प्रस्तुत है इसका लेखा जोखा –
क्या रहा अच्छा?
उद्घाटन समारोह :
राष्ट्रमंडल खेलों का उद्घाटन समारोह यादगार था. 7000 कलाकारों ने भारतीय कला और संस्कृति का अनोखा प्रदर्शन किया. देश विदेश के 6000 खिलाडियों और अधिकारियों ने मार्च पास्ट किया. संगीत, ढोल-नगाडों, वाद्य यंत्रों से नेहरू स्टेडियम खिल उठा. 60 करोड़ के हीलियम बैलून पर सवाल तो उठ रहे हैं पर यह आकर्षण का केन्द्र बना रहा. खुशी की बात यह भी है कि पूरे समारोह के दौरान कुछ भी अवांछित घटित नहीं हुआ और लोगों ने इसे सराहा. 

भारतीय खिलाडियों का प्रदर्शन:
भारतीय खिलाडियों ने बहुत अच्छा प्रदर्शन किया. खेलों के समाप्त होने के बाद भारत दूसरे या तीसरे स्थान पर रहेगा. भारतीय खिलाडियों ने दिखा दिया कि देश में क्रिकेट ही सबकुछ नहीं है. उन्हें लोगों का भरपूर साथ भी मिला. 

स्वयंसेवक:
करीब 15000 स्वयंसेवक राष्ट्रमंडल खेलों को सफल बनाने में जुटे हुए थे. यह सच है कि कई हजार स्वयंसेवक अपनी अपनी किट लेकर गायब भी हो गए. परंतु जो टिके रहे उन्होनें आगंतुकों, खिलाडियों और दर्शकों के साथ तालमेल बिठा कर खेलों को सफल बनाने में कोई कसर बाकी नहीं छोडी.

सेना:
भारतीय सेना एक बार फिर संकटमोचन के रूप में उभरी. चाहे अंतिम समय में साफ सफाई और बडे सामानों को हटाने में मदद करना हो या फिर टूटे हुए पूल को 4 दिन में फिर से खडा कर देना, भारतीय सेना ने देश की ईज्जत को और धूमिल होने से बचा लिया.

निवास और आहार:
हर कोई भारतीय खाने की प्रशंसा कर रहा है. इन राष्ट्रमंडल खेलों में आहार की उत्तम व्यवस्था की गई थी. खिलाडियों का निवास स्थान यानी खेल गाँव विवादों में जरूर रहा परंतु यह भी सच है कि इस बार का खेल गाँव अन्य देशों में बने खेल गावों से कहीं अच्छा था. यहाँ स्यूट, स्पा, बार और डिस्को थेक भी थे. 

क्या रहा बुरा?
अभूतपूर्व देरी:
जहाँ स्टेडियम और खेल गाँव एक वर्ष पहले ही तैयार हो जाने थे, वे अंतिम समय तक तैयार ही नहीं हुई. इसलिए उनका अच्छी तरह से परीक्षण भी नहीं हुआ. अधिकतर स्टेडियमों में "राम भरोसे" खेल करवाए गए. सद्भाग्य से कोई दुर्घटना नहीं हुई. 

गंदगी:
खेल गाँव परिसर की गंदगी ने देश को शर्मसार कर दिया. कचरा, कीचड़, पान की पीक और बिस्तर पर कुत्तों की शौच. देश-विदेश की मीडिया ने इसे जमकर उछाला और देश की प्रतिष्ठा को भारी धक्का लगा. 

ट्राफिक:
दिल्ली की सड़कों पर जाम लग गया. यह नई बात नहीं है परंतु राष्ट्रमंडल खेलों ने इस समस्या को और भी बढा दिया. एक विशेष लेन मात्र खिलाडिओं की बसों के लिए आरक्षित कर दी गई और बाकी लोगों के पास पहले से भी कम स्थान रहा. लोग आँखें बचाकर सीडबल्यूजी लेन में घुसते और पकडे जाने पर भारी भरकम दंड देते. दिल्ली की सार्वजनिक यातायात प्रणाली तथा मेट्रो सेवा भी नाकाफी साबित हुई. दिल्ली हवाईअड्डे को नई दिल्ली से जोडने वाली एयरपोर्ट एक्सप्रेस मेट्रो तो शुरू ही नहीं हो सकी. 

टिकट:
एक तरफ स्टेडियम खाली और दूसरी तरफ कोई टिकट खरीदने जाए तो जाए कहाँ? क्योंकि टिकटें तो है ही नहीं. तो टिकटें गई कहाँ? इसका जवाब आयोजकों के पास भी नहीं. यहाँ भी व्यापक भ्रष्टाचार. 17 लाख से अधिक टिकटें छपाई गई थी. उनमें से आधी ही टिकट विक्रेताओं तक पहुँची. बाकी कहाँ गई किसी को पता नहीं. बताया जा रहा है कि टिकटों को रद्दीवालों को बेच दिया गया.

क्या रहा सबसे शर्मनाक?
भ्रष्टाचार:
राष्ट्रमंडल खेलों के दौरान हुए भ्रष्टाचार ने देश को झकझोर कर रख दिया. 2000 करोड़ के लक्ष्य के साथ भारत में लाए गए ये खेल 70000 करोड़ की लागत वाले हो गए. इतना खर्च आखिर हुआ कहाँ. केवल एक नया स्टेडियम बना था, बाकी सभी स्टेडियम मात्र बेहतर बनाए गए थे. परंतु फिर भी उनके ऊपर नए स्टेडियम बनाने से भी अधिक खर्च किया गया. एक ट्रेडमील 9 लाख की, छाता 6000 का, एयर कंडीशनर 4 लाख का... भ्रष्टाचार की कोई सीमा ही नहीं छोड़ी. नेहरू स्टेडियम के पास बन रहा पूल खेल शुरू होने के 5 दिन पहले ही गिर गया. इससे बुरा और क्या हो सकता था. 

रंगभेद, नस्लवाद:
राष्ट्रमंडल खेलों के दौरान यह समस्या उभर कर आई. दूरदर्शन के उद्घोषक ने मलावी देश के खिलाडियों के आगमन पर कहा कि - मलावी एक पीछड़ा हुआ देश है. बाद में इस पर दूरदर्शन को माफी मांगनी पड़ी. दक्षिण अफ्रीका के एक धावक ने भारतीय दर्शकों को "बंदर" कह दिया. एक अंग्रेज अधिकारी ने भारतीय तीरन्दाजी टीम के कोच लिम्बाराम के ऊपर छिंटाकशी की. और रही सही कसर न्यूज़ीलैंड के एक टीवी प्रस्तोता ने दिल्ली की मुख्यमंत्री के ऊपर अत्यंत अभद्र टिप्पणी कर पूरी कर दी. 

बाल मजदूरी: 
राष्ट्रमंडल खेलों की तैयारियों के दौरान बाल मजदूरी की घटनाएँ सामने आई. सीएनएन ने खेल गाँव के पास बच्चों को काम करते दिखाया. इससे देश की छवि धूमिल हुई. 

खराब प्रचार:
देश और विदेश की मीडिया ने राष्ट्रमंडल खेलों के खराब प्रचार के लिए जी जान सी लगा दी. केवल वे तस्वीरें दिखाई जाती थी जो "गंदगी" दिखाती थी. खेलों के उजले पक्ष को प्रस्तुत नहीं किया. ऑस्ट्रेलिया और पश्चिमी मीडिया ने भारत का जमकरमखौल उडाया. एक ऑस्ट्रेलियन अधिकारी ने तो यहाँ तक कह दिया कि ऐसे खेल कराने की भारत की औकात ही नहीं है
 तरकश ब्यूरो विशेष

Monday, September 27, 2010

2 7 सबसे 'खराब' वैश्विक खेल आयोजन

दिल्ली कॉमनवैल्थ खेल भ्रष्टाचार की मिसाल के तौर पर देखे जा रहे हैं. परंतु ऐसा क्या पहली बार हो रहा है? नहीं. दुनिया के कई इस तरह के बड़े खेल आयोजन करने में विफल साबित हुए हैं, भारत अकेला नहीं है.

दिल्ली में हो रहे कॉमनवैल्थ खेल 2010 के लिए काफी कुछ लिखा जा चुका है और लिखा जा रहा है, परंतु दुर्भाग्य की बात यह है कि लगभग हर खबर नकारात्मक है. दिल्ली कॉमनवैल्थ खेल भ्रष्टाचार की मिसाल के तौर पर देखे जा रहे हैं और ऊपर से स्टेडियम और खेलगाँव को तैयार करने में देरी, बाल मजदूरी, गंदगी, सुरक्षा का अभाव जैसी बातों ने इस आयोजन की और भी बदनामी की है.

परंतु ऐसा क्या पहली बार हो रहा है?
 नहीं. दुनिया के कई इस तरह के बड़े खेल आयोजन करने में विफल साबित हुए हैं, भारत अकेला नहीं है
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                                             म्यूनिख ओलम्पिक, 1972

भारत की सुरक्षा व्यवस्था पर प्रश्नचिह्न लगाया जाता है परंतु म्यूनिख ओलम्पिक खेलों के दौरान फलस्तिनी आतंकवादी बड़े आराम से खेलगाँव में घुस कर इजरायली खिलाडियों के निवास स्थल तक पहुँच गए थे और उन्हें बंदी बना लिया था. इसके बाद हुआ बचाव अभियान भी विफल रहा था और 11 इज़रायली खिलाड़ी मारे गए थे. 5 आतंकवादी भी मारे गए और 3 गिरफ्तार हो गए जिन्हें बाद में छोड़ देना पडा.

आयोजन की दृष्टि से भी म्यूनिख खेल विफल रहे थे और जर्मनी को शर्मसार होना पड़ा था.

       वानकुवर कॉमनवैल्थ खेल, 1952
जब खेल शुरू होने में कुछ दिन ही रह गए थे तब आयोजन समिति को लगा कि खेलों के आयोजन के लिए तो उनके पास पैसे ही नहीं बचे हैं. ब्रिटिश अम्पायर खेल समिति को कहना पड़ा कि वे खेलों के आयोजन के लिए किसी भी हद तक जाएंगे, चाहे भीख ही क्यों ना मांगनी पड़ी. विश्व मीडिया ने कनाडा की जमकर आलोचना की थी




    एडिनबर्ग कॉमनवैल्थ खेल, 1986
इस दौरान कॉमनवैल्थ खेलों के आयोजन के औचित्य पर ही प्रश्नचिह्न लगने लगा था. स्टार धावक इन खेलों में भाग नहीं लेते थे. एडिनबर्ग कॉमनवैल्थ खेलों को इसका भारी खामियाजा भूगतना पड़ा था जब कोई स्टार स्वीमर खेलने नहीं आया क्योंकि कुछ सप्ताह बाद ही विश्व स्विमिंग स्पर्धा होनी थी. यह खेल आयोजन काफी खर्चीला और बिना लाभ का रहा.
                             जकार्ता एशियाड, 1962 
इंडोनिशिया के इज़रायल और ताईवान के साथ खराब रिश्तों के कारण इस खेल आयोजन पर गम्भीर पड़ा. इंडोनिशिया ने इन दोनों देशों को आमंत्रित करने से इंकार कर दिया. भारत ने इसका कड़ा विरोध किया और इंडोनिशिया को अंतर्राष्ट्रीय ओलम्पिक संघ से ही निकाल दिया गया. आखिरकार इस समस्या का हल इन दोनों देशों के खिलाडियों को सादे आईडी कार्ड देकर निकाला गया. परंतु लोगों का प्रदर्शन और भारतीय उपनिवेश पर हमलों से यह खेल आयोजन काफी बदनाम हुआ.

                सिडनी ओलम्पिक, 2000 
सिडनी ओलम्पिक से ऑस्ट्रेलिया को उम्मीद थी कि उसकी अर्थव्यवस्था सुधरेगी परंतु हुआ ऊल्टा. सिडनी ओलम्पिक पार्क जो खिलाडियों के रहने के लिए बनाया गया था आज खंडहर बन गया है. विकास के कई काम अधुरे ही रह गए और पर्यटकों की सुविधा का भी ध्यान नहीं रखा गया. कुल मिलाकर ये खेल बहुत खराब ढंग से आयोजित हुए और ऑस्ट्रेलियाई नागरिक आज भी इसका बोझ विशेष कर चुकाकर उठाते हैं. 



  अटलांटा ओलम्पिक, 1996
लोग आज भी प्रश्न उठाते हैं कि आखिर ओलम्पिक जैसे खेलों का आयोजन करने के लिए अमेरीका ने अटलांटा शहर को ही क्यों आगे किया? अमेरीका ने अटलांटा शहर को ओलम्पिक लायक बनाने के लिए कोई खर्च नहीं किया. वहाँ की यातायात व्यवस्था लचर थी. और खेल शुरू होने के तुरंत बाद से अफरा तफरी मच गई जो अंत तक जारी रही. ना तो पर्यटक आए और ना ही अमेरीका को कोई आर्थिक लाभ ही हुआ.



          एथेंस ओलम्पिक, 2004
ये खेल भी आयोजन स्थलों के निर्माण में हुई व्यापक देरी की वजह से चर्चा में रहे. एक बार तो लगने लगा था कि ओलम्पिक खेल हो ही नहीं पाएंगे. परंतु बाद में ग्रीस सरकार ने आनन फानन में सारे निर्माण स्थल पूरे करवाए. जैसे तैसे खेल तो हो गए परंतु ग्रीस की आर्थिक हालत डाँवाडोल हो गई.




THANKS & COURTESY BY TARAKASH RESEARCH BUREAU

Saturday, September 25, 2010

1 CWG थीम सोंग

ए आर रहमान और कैलाश खेर से बढ़िया तो काक का CWG  थीम सोंग जयादा अच्छा है.


C

Friday, September 24, 2010

2 घूस देकर हासिल की मेजबानी

अब भारत को मेजबानी मिलने पर उठे सवाल 
घपलों और लापरवाही के चलते सुर्खियों में आ चुके दिल्ली कॉमनवेल्थ खेलों की मेजबानी पर भी सवाल उठ रहे हैं। एक ऑस्ट्रेलिया अख़बार ने दावा किया है कि भारत ने घूस देकर कॉमनवेल्थ खेलों की मेजबानी हासिल की थी। वहीं, ऑस्ट्रेलिया की ओलंपिक कमेटी का कहना है कि भारत को मेजबानी दी ही नहीं जानी चाहिए थी। गौरतलब है कि साफ-सफाई की कमी को लेकर हुई तीखी आलोचनाओं के बाद आखिरी कुछ दिनों में कॉमनवेल्थ खेलों की तैयारी से जुड़ी खामियों को दूर करने और अपना घर सजाने-संवारने में भारत जुटा हुआ है। दिल्ली में 3 से 14 अक्टूबर के बीच कॉमनवेल्थ खेल होने हैं।
घूस देकर हासिल की मेजबानी
ऑस्ट्रेलियाई अख़बार 'डेली मेल' ने दावा किया है कि कॉमनवेल्थ देशों में शामिल 72 देशों को करीब 44-44 लाख रुपये घूस देकर कनाडा को पछाड़ा था। कनाडा का हैमिल्टन शहर भी 2010 के कॉमनवेल्थ खेलों की मेजबानी की रेस में शामिल था। 
डेली मेल के मुताबिक, 'भारत ने घूस देकर मेजबानी की हो़ड़ में कनाडा को पिछाड़ा था। अख़बार ने यह भी दावा किया कि ऑस्ट्रेलिया को भारत से करीब सवा लाख डॉलर करीब 55 लाख रुपये मिले थे। भारत के प्रतिनिधियों ने जमैका में 2003 में कॉमनवेल्थ की मेजबानी के लिए लगी बोली के दौरान 72 देशों को एथलीट ट्रेनिंग स्कीम के तहत 44-44 लाख रुपये देने कीपेशकश कर मेजबानी हासिल की थी।
रिपोर्ट के मुताबिक, भारत की ओर से जो राशि सभी देशों को दी गई, वह ऑस्ट्रेलिया के लिए ज़्यादा अहम नहीं थी क्योंकि ऑस्ट्रेलिया ने पहले से ही भारत को वोट देने का निर्णय कर लिया था और भारत से मिलने वाली रकम भी बहुत ज़्यादा नहीं थी। लेकिन कॉमनवेल्थ खेलों में कोई दिलचस्पी नहीं रखने वाले छोटे देशों ने भारत को वोट दिया जिससे दिल्ली ने हैमिल्टन को 46-22 के अंतर से हराते हुए बोली जीत ली। दिलचस्प बात यह है कि हैमिल्टन ने भी करीब 30 लाख रुपये बतौर घूस देने की पेशकश की थी।

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भारत को नहीं मिलनी चाहिए थी मेजबानी'
ऑस्ट्रेलियन ओलंपिक कमेटी (एओसी) के प्रेजिडेंट जॉन कोट्स ने कहा है कि भारत को कॉंमनवेल्थ खेलों की मेजबानी दी ही नहीं जानी चाहिए थी। कोट्स ने कहा कि कॉमनवेल्थ खेलों की तैयारी में बरती गई लापरवाही के चलते 3 से 14 अक्टूबर तक होने वाले खेलों की छवि पर बट्टा लगा है। कोट्स ने कहा कि कॉमनवेल्थ गेम्स फेडरेशन को इन तैयारियों में ज़्यादा सक्रियता दिखानी चाहिए थी। असल समस्या है कॉमनवेल्थ गेम्स फेडरेशन में संसाधनों की कमी। सीजीएफ के पास इतने संसाधन नहीं हैं कि जिससे वह आयोजन कर रहे शहर पर ओलंपिक कमेटी की तरह नज़र रख सके।

कोट्स ने कहा कि अगर इंटरनेशनल ओलंपिक कमेटी कॉमनवेल्थ की तैयारियों को देख रही होती तो काम बेहतर होता। लेकिन कोट्स ने कॉमनवेल्थ खेलों में हिस्सा लेने के मसले पर कुछ बोलने से मना कर दिया। गौरतलब है कि कॉमनवेल्थ खेलों से यूसैन बोल्ट, क्रिस हॉय और आसफा पॉवेल जैसे खिलाड़ी हट चुके हैं।
Source: Bhaskar agency