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Wednesday, October 26, 2011

0 एक बच्‍चा पैदा कर बुड्ढा हो गया चीन

चीन में एक बच्चे की नीति ने भले ही जनसंख्या में करोड़ों के इजाफे को कम किया हो लेकिन यह नीति अब देश के लिए परेशानी भी बन रही है। इसी नीति का परिणाम है कि चीन में अब युवाओं की अपेक्षा बुजुर्गो की संख्या में खासा इजाफा हो गया है। हालांकि आंकड़ों के मुताबिक 1979 से शुरू की गई इस नीति को अगर देश में लागू नहीं किया जाता तो देश की जनसंख्या मौजूदा 1.35 अरब की आबादी से कहीं ज्यादा होती।

इस नीति के कई दुष्परिणाम भी देखने को मिल रहे हैं जिनमें सामूहिक बंध्याकरण और आठ महीने तक के गर्भ के गर्भपात जैसे मामले तक भी शामिल हैं। कन्या भ्रूण को मारने की घटनाएं भी देखने में आती हैं। इस नियम का उल्लंघन करने वाले दंपतियों का कई सालों का वेतन काटने और उन्हें जेल भेजने तक का प्रावधान है। लेकिन नियम लागू होने के तीन दशक बाद अब समाजशात्रियों और अर्थशात्रियों ने चेतावनी दी है कि चीन विकास की ओर बढ़ रहा एकमात्र ऐसा देश है जो धनी होने के पहले बूढ़ा हो जाएगा। चीन में 60 वर्ष से ऊपर के लगभग आधे लोग अकेले रहते हैं जबकि एक समय में चीन में चार पीढि़यां एक ही छत के नीचे रहती थीं।

पीपुल्स डेली आनलाइन ने कमीशन फार पापुलेशन एंड फैमिली प्लानिंग के हवाले से कहा है कि 2050 तक चीन की एक चौथाई आबादी 65 वर्ष से ऊपर के लोगों की होगी जबकि आज इतनी उम्र के लोगों की संख्या सिर्फ नौ फीसदी है। सरकार के लिए सबसे बड़ा सिरदर्द इस बात को लेकर है कि एक अकेले बच्चे के कंधे पर अपने दो अभिभावकों और चार दादा-दादी और नाना-नानी की भी जिम्मेदारी है। खास तौर पर ऐसे में यह परेशानी और बढ़ रही है जब देश में बेरोजगारी में भी इजाफा हो रहा है जिसके चलते लोग रोजगार की तलाश में गांवों से शहरों की ओर रुख कर रहे हैं।

Courtesy वन इंडिया 

Saturday, October 23, 2010

0 चीन पर चले चाबुक

यह हमारी पारंपरिक प्रेम सौहार्द्र वाली नीति ही है कि भारत को कभी भी राष्ट्रीय हितों को लेकर उग्र नीति अपनाने वाले देशों में नहीं गिना गया. इससे यह डर लगता है कि अन्य राष्ट्रों के बीच हमारी छवि कमज़ोर देश की न बन जाए, जो अपने हितों की रक्षा करने में भी ढुलमुल रवैया अपनाता है. आजतक हमें अपने हितों की पैरवी के लिए आक्रामक रुख़ अपनाते नहीं देखा गया, जबकि चीन को अपने हितों पर चोट पहुंचाने वाले किसी भी मामले पर उग्र रूप अपनाने वाले देशों में गिना जाता है. हम जब तक शक्तिशाली राष्ट्र की तरह से पेश आना नहीं सीखेंगे, ऐसे प्रश्नों से दो चार होना ही पड़ेगा.