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Sunday, June 5, 2011

0 रामदेव पर हुई कार्रवाई इमर्जेंसी की याद दिलाती है -Ramdev

मुझे हालात देखकर अफसोस हो रहा है। यह घटना जून 1975 को देश में आपातकाल लागू होने के दिनों की याद दिलाती है। इस वर्ष भी जून में ही यह घटना हुई है। रामलीला मैदान पर हुई पुलिस कार्रवाई लोगों के मूल अधिकारों का हनन है। 

0 बाबा रामदेव के गायब होने पर सिलेब्रिटीज ने सरकार को कोसा

नई दिल्ली।। बाबा रामदेव के आंदोलन को पुलिस ने रातों-रात कुचल दिया और उनके समर्थकों पर लाठीचार्ज की। इस घटना पर सिलेब्रिटीज भी हैरान हैं और उन्होंने ट्वीट के जरिए सरकार की भरपूर आलोचना की है।
अनुपम खेर रामलीला मैदान में पुलिस जिस तरह से लोगों के साथ बर्ताव कर रही है, वह शर्मनाक है। यह अन्यायपूर्ण और अलोकतांत्रिक है।
चेतन भगत: इस बात से भौंचक्का हूं कि शांतिपूर्वक प्रदर्शन करने वाले लोगों पर सरकार ने पुलिस का इस्तेमाल तब किया जब वे सो रहे थे। लोकतांत्रिक देश रात के एक बजे आंसू-गैस के गोले नहीं छोड़ते। यह समय भयावह है।
शेखर कपूर: रामलीला मैदान में चल रहे शांतिपूर्ण आंदोलन को सरकार ने सबसे बुरे हिंसक तरीके से कुचलने की कोशिश की है। उम्मीद है कि बाबा रामदेव के समर्थकों को यह अहसास होगा कि सरकार की हिंसा का सबसे तगड़ा जवाब शांतिपूर्ण प्रदर्शन है। अब वक्त इस सवाल को पूछने का है कि क्या सिस्टम लोगों के लिए काम करता है या फिर उस सरकार के लिए जो लोगों की उम्मीदों का प्रतिनिधित्व नहीं करती। पुलिस के ऐसा करने के पीछे क्या तर्क है? क्या यह फासिस्ट देश है? सांसदों ने संविधान के मुताबिक काम करने की सारी शपथ तोड़ दी हैं और इस तरह से देशद्रोह का काम किया है। उत्तर प्रदेश और छत्तीसगढ़ में भूमि-अधिग्रहण में जो कुछ हुआ, वही दिल्ली के रामलीला मैदान में हो रहा है। अपनी इस एक वाहियात हरकत से सरकार ने लोगों को यह संदेश दिया है कि अब शांतिपूर्ण प्रदर्शन से काम नहीं चलने वाला। सरकार ने लोगों को हिंसात्मक रवैया अपनाने के लिए उकसाया है।
विवेक ओबेरॉय: प्रदर्शन कर रहे मासूम बच्चों, महिलाओं और लोगों पर पुलिस आंसू-गैस के गोले छोड़ रही है। यह बहुत भयानक है। क्या दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र को इस तरह से बर्ताव करना चाहिए? मैं यह सब देख कर बहुत अपसेट हो गया हूं। हिंसा किसी समस्या का हल नहीं है। गांधीजी की अहिंसा का क्या हुआ?

Saturday, March 19, 2011

0 रामदेव के साथ अब बेईमान भारत - चिन्मयानंद -chinmyanand

परमार्थ आश्रम हरिद्वार के परमाध्यक्ष एवं पूर्व सांसद स्वामी चिन्मयानंद महाराज का मानना है कि भारत की जनता बाबा रामदेव को अपने नेता के रूप में न कभी स्वीकार कर सकती है, न उन्हें किसी तरह का राजनीतिक क़द प्राप्त हो सकता है. इसके पहले भी एक देव ने राजनीति में आने का दिवास्वप्न देखा था, वह जयगुरुदेव थे. उनका क्या हश्र हुआ, यह सबके सामने है. चिन्मयानंद कहते हैं कि भारत के महान संत करपात्री जी महाराज ने भी एक दल बनाकर उसका इस्तेमाल करके राजनीतिक सफलता हासिल करने की कोशिश की थी, लेकिन वह भी असफल रहे. हिंदी-हिंदू-हिंदुस्तान के प्रणेता एवं काशी हिंदू विश्व विद्यालय के संस्थापक पंडित मदन मोहन मालवीय ने भी हिंदू महासभा का गठन राजनेता बनने के उद्देश्य से किया, उनकी आशाओं पर जनता ने पानी फेर दिया.

चिन्मयानंद कहते हैं कि भारतीय जनता पार्टी ने जनआस्था के मुद्दे राम मंदिर को उछाल कर उसका पूरा राजनीतिक लाभ लिया, किंतु जनभावना का निज स्वार्थ के लिए प्रयोग करने के कारण भारतीय जनमानस ने उसे बाद में उन्हीं क्षेत्रों में बुरी तरह नकार दिया, जहां उसे सर्वाधिक समर्थन मिला था. भाजपा को देश की जनआस्था के साथ खिलवाड़ की सजा आज तक मिल रही है. महान समाजवादी चिंतक एवं विचारक डॉ. राम मनोहर लोहिया की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि डॉ. लोहिया ने लोकधर्म को ही राजनीति की संज्ञा दी थी और उनका मानना था कि इसका प्रयोग राष्ट्रहित में किया जाना चाहिए.

स्वामी चिन्मयानंद ने कहा कि पहले तो बाबा रामदेव के साथ एक बीमार भारत जुट रहा था, किंतु अब उनके साथ बेईमान भारत जुट चुका है और योगगुरु पूरी तरह से बेईमान भारत से घिरे हुए हैं. देश के चंद व्यवसायी अपने व्यवसायिक उद्देश्य साधने के लिए उनका इस्तेमाल कर रहे हैं. रामदेव ने भी योग को अब जनकल्याण से हटाकर चंद लोगों के कल्याण तक सीमित कर दिया है. उन्होंने अपने साथ जुटी आस्था का व्यवसायिक प्रयोग शुरू कर दिया है. धर्म-आस्था का व्यवसायिक प्रयोग एक नितांत निंदनीय कार्य है, जिसे देश की जनता कभी बर्दाश्त नहीं करेगी. चिन्मयानंद ने देश की जनता की राजनीतिक समझ की सराहना करते हुए कहा कि यह पब्लिक है, सब जानती है. बाबा रामदेव के खेल का अब अंतिम चरण चल रहा है, जिसमें मतिभ्रम की स्थिति उत्पन्न हो गई है.

उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री एवं बसपा प्रमुख मायावती द्वारा बाबा रामदेव को निशाने पर लेने के सवाल पर स्वामी चिन्मयानंद ने कहा कि मायावती भारतीय राजनीति की विडंबना की उपज मात्र है, जिसने दलितों के सहारे सत्ता का सुख तो पूरी तरह से प्राप्त किया, किंतु उसने दलित-कमज़ोर वर्ग का कोई भला नहीं किया. उन्होंने कटाक्ष करते हुए कहा कि अब तो मायावती दलित की बेटी से दौलत की बेटी बन गई है. वह भारतीय राजनीति में मानक नहीं बन सकती.

भारत साधु समाज के देवभूमि के अध्यक्ष, संस्कृत विश्वविद्यालय के प्रथम कुलपति एवं जैराम संस्थाओं के संस्थापक ब्रह्मस्वरूप ब्रह्मचारी ने बाबा रामदेव के राजनीतिक भविष्य पर टिप्पणी करते हुए कहा कि जो तेज़ दौड़ लगाता है, वह गिरता भी तेज़ी से है और जब वह गिरता है तो संभल नहीं पाता. उन्होंने कहा कि शोहरत पा चुके रामदेव के गिरने के दिन लगता है कि बेहद क़रीब आ चुके हैं. उन्होंने अपनी जैराम संस्थाओं का ज़िक्र करते हुए कहा कि कई महान संतों ने इसे अपने त्याग-तपस्या और वर्षों की कड़ी मेहनत से सींचा. आज यह संस्था वटवृक्ष की तरह आकार ले चुकी है और समाज निर्माण में अपनी भूमिका निभा रही है. यह जो कुछ दिख रहा है, वह समाज का दिया और समाज के लिए है, जिसे व्यवस्थित रूप से चलाने का दायित्व मुझे सौंपा गया है. बाबा रामदेव ने ऐसा क्या समाज को दे दिया कि लोग उन्हें प्रधानमंत्री के रूप में स्वीकार कर लेंगे. विनोदी स्वभाव के धनी ब्रह्मचारी कहते हैं कि रामदेव एवं राखी सावंत में एक समानता दिखती है कि दोनों ने जनचर्चा में आने के लिए अंग प्रदर्शन का रास्ता अपनाया और दोनों की चर्चा भी एक जैसी होती है. रामदेव को एक व्यवसायिक संत बताते हुए उन्होंने कहा कि जैसे एक बार रावण ने भगवा वेश धारण करके सीता जी को छलने में सफलता प्राप्त कर ली थी, उसी तरह कई लोग अब भी भगवा धारण करके बाबा कहलाने में सफलता प्राप्त कर लेते हैं. सनातन धर्म में संत बनने के लिए संताचरण करना पड़ता है. किसी भी बाबा को जनता रूपी सीता की भावना से खेलने की छूट नहीं दी जा सकती. और, संत वेश का जिसने भी बदनीयती से इस्तेमाल किया, उसका हश्र हमेशा बुरा रहा. रामदेव को एक सफल व्यापारी बताते हुए उन्होंने कहा कि जो दिखता है, वह बिकता है. बहुत पहले से ही आयुर्वेद एवं संतों में जनता की अगाध आस्था रही है. आज भी लोकजीवन में दादी मां के नुस्खे के रूप में अनेक औषधियां प्रचलन में हैं. एक व्यापारी सफल संत और राजनेता नहीं हो सकता. रामदेव का उपयोग पहले लोगों ने एक बाबा बनाने के लिए किया और अब उसी बाबा से लोग अपना व्यापार चला रहे हैं. जनता की अदालत में सदैव दूध का दूध पानी का पानी हो जाता है. भारतीय जनमानस की सराहना करते हुए उन्होंने कहा कि जनता की पहचान-परख क्षमता बहुत तेज़ है, वह समय पर अपना काम करती है.

Courtesy chausthidunia - राजकुमार शर्मा

 


Sunday, March 13, 2011

0 प्रधानमंत्री पद की दौड़ में बाबा रामदेव -Ramdev

बाबा रामदेव भारत की राजनीति बदल देना चाहते हैं. वह सभी संसदीय सीटों पर चुनाव लड़ना चाहते हैं. पिछले बीस सालों में यह काम भाजपा भी नहीं कर पाई. उसके पास सभी संसदीय सीटों पर लड़ने वाले उम्मीदवार ही नहीं उपलब्ध हो पाए. बाबा रामदेव की पतंजलि योग पीठ में एक भी मंदिर नहीं है और न ही वह आज हिंदू धर्म को अपना ध्वज वाहक बना रहे हैं. उनका कहना है कि वह इंसानियत को मज़हब मानते हैं.

संतोष भारतीय



0 रामदेव एवं राखी सावंत Ramdev and Rakhi Sawant

रामदेव एवं राखी सावंत में एक समानता दिखती है कि दोनों ने जनचर्चा में आने के लिए अंग प्रदर्शन का रास्ता अपनाया और दोनों की चर्चा भी एक जैसी होती है. जो तेज़ दौड़ लगाता है, वह गिरता भी तेज़ी से है और जब वह गिरता है तो संभल नहीं पाता. उन्होंने कहा कि शोहरत पा चुके रामदेव के गिरने के दिन लगता है कि बेहद क़रीब आ चुके हैं.
-ब्रह्मस्वरूप ब्रह्मचारी

Monday, September 27, 2010

2 महारानी की मशाल के पीछे पूरा देश दौड़ रहा

योग गुरु बाबा रामदेव ने क्वींस बैटन का विरोध किया है। उन्होंने यहां गुरुवार को कहा कि ब्रिटेन की महारानी की मशाल के पीछे पूरा देश दौड़ रहा है। जिन अंग्रेजों ने हमारे लाखों लोगों को बर्बरतापूर्वक मार डाला था, उसकी गुलामी को याद करना बेवकूफी है। इंग्लैंड की गुलामी सहन करने वाले 70 देशों के समूह को राष्ट्रमंडल कहा जाता है। उन्होंने राष्ट्रमंडल खेलों पर हो रहे बेतहाशा खर्चे पर भी चिंता जताई
Source: भास्कर नेटवर्क