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Monday, July 12, 2010

2 नक्सलवादी आतंक की कहानी


लाल झंडों के नीचे ये लोग कसम खाते हैं कि जब तक अपने उद्देश्यों को प्राप्त नहीं कर लेंगे चैन से नहीं बैठेंगे. ये कार्यकर्ता अपने लक्ष्य के प्रति समर्पित होते हैं और इनके दिमाग में इतना जहर भरा जाता है कि वे सही और गलत की पहचान करना ही भूल जाते हैं.

ये माओवादी गुरिल्ले हैं जिन्हें अब आतंकवादी कहा जा सकता है. ये आतंकवादी विदेशी नहीं हैं, घर के ही हैं और घर में ही आग लगा रहे हैं.

नक्सलवाद की शुरूआत:
नक्सली अभियान की शुरूआत पश्चिम बंगाल के दार्जीलिंग से हुई थी. 1967 में सीपीआई(एम) के कुछ कार्यकर्ताओं नेनक्सलबाड़ी के जमींदारों के खिलाफ बगावत कर दी थी. उस समय यह एक छोटा सा गुट हुआ करता था, लेकिन समय के साथ यह गुट पूरा वटवृक्ष बनता गया. 2004 इस आंदोलन के लिए बहुत महत्वपूर्ण था. इस वर्ष सभी छोटे छोटे गुट आपस में मिल गए और भारतीय कम्प्यूनिस्ट पार्टी (माओवादी) का गठन हुआ. 
क्या चाहते हैं माओवादी?
माओवादियों को वर्तमान शासन व्यवस्था पर विश्वास नहीं है और वे इसमें आमूल चूल परिवर्तन चाहते हैं. उन्हे लगता है कि वर्तमान शासन पद्धति शोषण करती है और गरीबों, महिलाओं तथा अल्पसंख्यकों पर अत्याचारों को प्रोत्साहन देती है.

ये लोग अमेरिका और अमेरिकन नीतियों के घोर विरोधी हैं तथा विश्व व्यापार संगठन जैसी संस्थाओं के भी खिलाफ हैं.

ऊपरी तौर पर देखा जाए तो इनका उद्देश्य एक ऐसे वातावरण का सृजन करना है जहाँ कोई भेदभाव ना हो, जातिप्रथा ना हो और अमीर और गरीब ना हो. सब समान हो.

लेकिन रक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि ये सब बातें सुनने में अच्छी लग सकती है परंतु अब इस अभियान का उद्देश्य इससे कहीं आगे जा चुका है. नक्सलियों की पीठ के पीछे भारत विरोधी ताकतें लगी हैं और इनका मूल उद्देश्य सामाजिक समीकरण ठीक करना नहीं बल्कि भारत को अंदर से खोखला करना है.

कितना बडा यह अभियान?
इसका सही सही जवाब देना मुश्किल है लेकिन इस समय कोई 10 हजार हथियारबंद माओवादी लडाके देश में मौजूद हैं (कश्मीर में आतंकवादियों की संख्या इससे काफी कम है). देश मे कुछ 630 जिले हैं और उनमे से करीब 180 जिले नक्सल प्रभावित हैं. देश के जिन राज्यों मे नक्सलियों की अच्छी पैठ है वे हैं आंध्र प्रदेश, पश्चिम बंगाल, उड़ीसा, झारखंड, छत्तीसगढ, बिहार और महाराष्ट्र.

कितने खतरनाक हैं माओवादी आतंकवादी?
काफी खतरनाक. शुरूआत में इनके पास लडने के लिए मात्र तीर कमान हुआ करते थे लेकिन आज उनके पास लगभग हर आधुनिक हथियार है. इन हथियारों में शामिल है एके47, कार्बाइन, सेल्फ लोडिंग गन, राकेट लांचर, बारूदी सुरंग आदि.

इस तथ्य पर गौर करिए पिछले कुछ वर्षों में माओवादी आतंकवादियों ने जितने लोगों और सुरक्षाकर्मियों को मारा है उतने तो कश्मीर में भी नहीं मारे गए.

दिल्ली के समीप पकड़े गए एक आतंकवादी मदनी ने खुलासा किया था कि पाक स्थित आतंकवादी संगठनों का भारत के माओवादियों के साथ गहरे संबंध हैं. इससे स्पष्ट होता है कि दुश्मन देश इन लोगों का उपयोग कर भारत को खोखला करना चाहते हैं. माओवादियों के सक्रीय रहने से भारत को अपने रक्षा संसाधन देश के अंदर ही लगाने पडते हैं और इससे बाहरी आतंकवादियों को अपना अभियान चलाने में काफी आसानी हो जाती है.

भारत के लिए चिंता की स्थिति 
नक्सलवाद भारत के लिए चिंताजनक है. एक तरह राज्य सरकारे तथा उनकी पुलिस नक्सलवादियों पर काबू पाने में विफल हो रही हैं और दूसरी तरफ माओवादियों के पाँव अब 180 जिलों से बाहर जा रहे हैं.

ऐसे में सरकार के लिए चिंता की बात यह है कि कहीं इनसे निपटने के लिए सेना का सहारा ना लेना पड जाए. भारतीय सेना भी गुप्त रूप से यह स्वीकार करती है कि पुलिस और अर्धसैनिक बलों के काबू से बाहर जा रहे माओवादी आतंकवादियों को कुछलने के लिए उन्हें मैदान में आना पड सकता है.
यह मैदान देश के हृदय में स्थित है. उन्हे यदि लडाई लडनी पडी तो उनकी लडाई देश के नागरिकों के साथ ही होगी.
COURTESY BY TARAKASH 

Saturday, June 19, 2010

0 नक्सली हिंसा

आज लगभग देश के 23 राज्य  और 220 से ज्यादा जिले नक्सली  हिंसा की चपेट में हैकह सकते हैलगभग आधे देश पर माओवादियों का कब्जा हो चुका है। इसके बावजूद जिस तरह से देश की शासन व्यवस्था चल रही है, वह काफी तकलीफदेह है।
 
नक्‍सलियों से लड़ाई में सरकार और राज्य सरकारों की अपनी जो कमजोरी है,  वह तो है ही, परन्तु  बाहरी ताकतों का दखल भी परेशानी बढाने वाला है। नक्‍सलियों को नेपाल और चीन जैसे पड़ोसियों से धन और हथियारों की मदद मिलती है। यह सरकार को भी पता है. अगर केंदर और राज्य सरकारों का यही रवैया रहा तो, एक दिन  देश हाथ से निकल जायेगा