Fact of life!

एवरीथिंग इज प्री-रिटन’ इन लाईफ़ (जिन्दगी मे सब कुछ पह्ले से ही तय होता है)।
Everything is Pre-written in Life..
Change Text Size
+ + + + +
Showing posts with label world. Show all posts
Showing posts with label world. Show all posts

Thursday, September 23, 2010

2 जिस जाल में फंस जाते हैं जासूस

सब पर नजर रखने वाले जासूस पर नजर रखना आसान काम नहीं है। इस मुश्किल काम को अंजाम देते हैं प्रति गुप्तचर। इस जोखिम भरे पेशे की चुनौतियों पर एक नजर-

जासूसी का सबसे बेहतर और चुनौती भरा काम है जवाबी जासूसी, जिसे प्रतिगुप्तचरी या काउंटर एस्पियानेज भी कहते हैं। दुश्मन के जासूस को पहचान कर मौत के घाट उतारना, अपने जासूस पर चुपके से नजर रखना, गद्दार होने की स्थिति में वापस बुलाकर खत्म करना, बंदी बनाना या फिर विदेश में ही मार डालना आदि सब काम इसी का हिस्सा हैं। लिहाजा जासूस पर जासूसी को ही प्रति गुप्तचरी कहा जाता है।

प्रति गुप्तचरी या जवाबी जासूसी में कौन सी खास बात है? एक पेशेवर जासूस को पकड़ना लोहे के चने चबाने के बराबर है। वह इसलिए कि एक जासूस को न पकड़े जाने की ट्रेनिंग दी जाती है। फिर उसे यह भी मालूम होता है कि पकड़े जाने पर क्या करना है। माताहारी की याद है आपको? प्रथम विश्व युद्ध की यह जर्मन जासूस पकड़ी गई थी और उसे सजा-ए-मौत मिली थी। उस समय संचार के इतने माध्यम नहीं थे। लेकिन आज किसी जासूस को मय सबूत के गिरफ्तार करना आसान नहीं है। उस पर लंबे अर्से तक नजर रखनी पड़ती है। फिर उसके संचार माध्यम की छानबीन करनी पड़ती है। फिर ऐसे सबूत जुटाने पड़ते हैं, जो शक के दायरे से पूरी तरह बाहर हों। तब ही जाकर किसी जासूस को पकड़ा जा सकता है। तब तक दोनों पक्षों के बीच एक लुकाछिपी का खेल चलता रहता है। जरा सा भी शुबहा होने पर कई दिन की मेहनत पर पानी फिर सकता है। दुश्मन सारे सबूत खत्म कर देश से गायब हो सकता है और प्रति जासूस को बेबसी में हाथ मलते रहना पड़ सकता है।

इतने तक भी गनीमत है। कभी-कभी प्रति जासूस को अपनी जान से भी हाथ धोना पड़ सकता है। अप्रैल 1956 में ब्रिटिश नौसेना के गोताखोर जासूस कमांडर क्रैब के साथ ऐसा ही हुआ। उस समय सोवियत संघ से ख्रुश्चेव और बुल्गानिन ब्रिटेन यात्रा पर थे। उनका जहाज 'ओर्दोनिकित्जे' पोर्ट्समाउथ बंदरगाह में था। यह जहाज ब्रिटिश गुप्तचर सेवा एम आई 5 के राडार पर था। सारे रूसी भी शक के दायरे में थे। वजह सिर्फ इतनी थी कि उस जहाज की स्पीड कुछ ज्यादा ही थी। ख्रुश्चेव और बुल्गानिन के लंदन स्थित निवास के कमरे की इलेक्ट्रॉनिक तलाशी में कुछ भी नहीं मिला। एम आई 5 के अफसरान ने क्रैब को उस जहाज के प्रॉपेलर को नापने का काम सौंपा। पता नहीं कैसे ये खबर लीक होकर अखबारी सुर्खियों में तब्दील हो गई। तत्कालीन ब्रिटिश प्रधानमंत्री एंथोनी ईडन ने मामले को दबाना चाहा। लेकिन ख्रुश्चेव ने खुले आम जहाज के साथ हुई छेड़छाड़ की बात कही, जिससे अखबारों को और भी मसाला मिला। बाद में ब्रिटिश तट से कुछ दूर एक शव तैरता हुआ पाया गया, जिसका सिर नदारद था। माना गया है कि यह लाश कमांडर क्रैब की थी।

यह पहला मौका नहीं था जब जासूसी के मामले में रूसियों ने अंग्रेजों को नाकों चने चबवाए। ऐसा कई बार हुआ। 1956 में एम आई 5 को शक हुआ कि लंदन स्थित मिस्री दूतावास से रूसियों को जानकारियां पहुंचती हैं। उन्होंने बातें सुनने के इलेक्ट्रॉनिक उपकरण वहां लगा दिए। फिर एक रूसी दल ने जब वहां की इलेक्ट्रॉनिक सफाई की, तो वे उपकरण पकड़ में आ गए। लेकिन रूसियों ने उन्हें बिना छेड़छाड़ किए ज्यों का त्यों रहने दिया। फिर उन्हीं का इस्तेमाल अंग्रेजों तक भ्रामक बातें पहुंचाने के लिए किया। असली जानकारी मास्को से लंदन के रूसी दूतावास आकर बजरिये संदेशवाहक मिस्र तक पहुंचती थी। एम आई 5 के अधिकारी इस बात पर हैरान थे कि रूसी जासूस को पकड़ने की कोशिशें अक्सर नाकाम हो जाया करती हैं। ऐसा किसलिए? जाहिर था कि एम आई 5 में रूसी घुसपैठ हुई थी। किसी भी ऑपरेशन की खबर रूसियों तक तुरंत पहुंच जाती थी। बाद में एक भगोड़े रूसी एजेंट ने इस बात की पुष्टि की कि रूसी एम आई 5 में 1946 में ही सेंध लगा चुके थे।

अप्रैल 1959 में हैरी रोमन नामक एक उच्चाधिकारी ने एम आई 5 6 को चेताया कि दो लोग ब्रिटेन में रूसियों के लिए जासूसी कर रहे हैं। उनमें से एक सीक्रेट सर्विस में और दूसरा नौसेना में है। इस बात से चौकन्ने हुए ब्रिटिश प्रति गुप्तचर के शक की सुई जॉर्ज ब्लैक नामक एक अफसर पर टिकी। एम आई 6 के इस अधिकारी को लैम्बडा1 के कूटनाम से जाना जाता था। इसी ने सीआईए और एम आई 5 के संयुक्त उपक्रम बर्लिन सुरंग की जानकारी रूसियों को दी थी। 1960 में उसे गिरफ्तार कर लिया गया। 1961 में उसे सजा भी हो गई और तभी यह बात पता चली कि रूसियों ने उसे छात्र जीवन में ही जासूसी के लिए भर्ती कर लिया था!

फिर अंग्रेज जासूस का ध्यान नौसेना की ओर गया। इस बार संदेह के बादल समुद्री शस्र निर्माण से संबद्ध हैरी हॉटन पर मंडराए। उस पर नजर रखी जाने लगी। 1960 में उसे एक एकांत स्थान पर एक व्यक्ति को एक बैग देकर एक लिफाफा लेते हुए रंगे हाथों पकड़ा गया। हॉटन का दूसरी जगह तबादला कर दिया गया। लिफाफा देने वाला व्यक्ति था कनाडा का एक व्यापारी गॉर्डन ऑर्नाल्ड लॉसडेल। अब एम आई 5 ने उस पर नजर रखनी शुरू कर दी। सितंबर 1960 के दौरान उसने एक बैंक में यह कहकर एक सूटकेस जमा कराया कि वह उसे बाद में आकर ले जाएगा। एम आई 5 के एजेंटों ने जब उसे खोलकर देखा तो उसमें निकला जासूसी उपकरण का जखीरा। अब एम आई 5 ने लॉसडेल की निगरानी कड़ी कर दी। लेकिन वह भी काफी चौकस था। वह गतिशील होते हुए भी अपने ठिकाने बदलता रहता था। उसका निवास पाया गया 45, क्रैनले गार्डन लंदन। न्यूजीलैंड के दंपति पीटर व हलेन क्रोगर यहीं से पुरानी किताबों का व्यवसाय करते थे। लॉसडेल ने नवंबर 1960 में बैंक से अपना सूटकेस उठाया और दूसरा मकान ले लिया। एम आई 5 की नजर तो उस पर थी ही। उन्होंने अपने एक कम्युनिकेशन एक्सपर्ट को उसके पड़ोस में तैनात कर दिया। उसने लॉसडेल के भेजे हुए संदेश का कोड ब्रेक कर लिया। लॉसडेल की असलियत का खुलासा हो जाने के बावजूद एम आई 5 ने उसे ढील दी ताकि उसके संपर्क मालूम हो सकें। आखिरकार जनवरी 1961 में उसे गिरफ्तार कर लिया गया।

जासूसी मामलों में प्रतिगुप्तचरी विभाग एक अजीब स्थिति में होता है। जब दुश्मन का जासूस पकड़ा जाता है तो विभाग की निगरानी को कमजोर बता कर उस पर लानत भेजी जाती है। और यदि वह बच निकलता है तो भी निगरानी को कमजोर बताया जाता है। यानी दोनों सूरतों में इल्जाम का ठीकरा इसी विभाग के सिर फू टता है।

शक प्रति गुप्तचरी की जान है लेकिन बहुत ज्यादा शक उसकी मौत है। इसका जबर्दस्त नमूना पेश किया है सीआईए के काउंटर एस्पियॉनेज चीफ जेम्स एंगलटन ने। उन्होंने रूस के साथ काम करने वाले अमरीकी जासूस का पर्दाफाश तो किया लेकिन उन्हें जबर्दस्त झटका लगा जब उनके खास दोस्त किम फिल्बी रूसी भेदिए निकले जो बाद में रूस में ही जा बसे। यह धोखा खाने के बाद एंगलटन मानसिक तौर पर खिसक से गए। एक रूसी भगोड़े यूरी नोसेंको को एंगलटन ने पूरे तीन साल तक अमानवीय यंत्रणाएं दीं। ये बात अखबारों में आ गई। आखिर नोसेंको को मुक्ति मिली और एंगलटन को बदनामी। वे पुराने वफादार सहकर्मियों पर भी शक करने लगे। इस से परेशान होकर कई लोगों ने सीआईए छोड़ दी। सीआईए के तत्कालीन निदेशक विलियम कोल्बी भी उसके शक के दायरे में आ गए। दोनों में जबर्दस्त झगड़ा भी हुआ। फिर एंगलटन के पास सिवा इस्तीफा देने के कोई चारा नहीं था।

जो जाल में फंसे
-
एमिस सीआईए में काउंटर इंटेलिजेंस ऑफिसर के तौर पर काम करता था। अपने पहले जासूसी असाइनमेंट के तौर पर उसे अंकारा, टर्की भेजा गया था। लेकिन वहां अपनी नशे की आदत और खर्चीलेपन के कारण उसने 1985 से सोवियत यूनियन को सूचनाएं देनी शुरू कर दीं थीं। 1994 में उसे धर दबोचा गया।

-
द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान जापान में काम कर रहे रिचर्ड सोर्जे सोवियत यूनियन के बेस्ट जासूसों में से एक माने जाते हैं। वे बतौर जर्नलिस्ट जासूसी करते रहे। उन्हें 1933 में जापान में जासूसी जाल बिछाने के लिए भेजा गया। 1941 को उन्हें गिरफ्तार किया गया। वे अंत तक सोवियत यूनियन से अपने किसी भी तरह के संबंध को नकारते रहे। उन्हें फांसी दे दी गई।
रवींद्र दुबे

Tuesday, August 17, 2010

0 रात जेल में और दिन वेश्यालय में!

कहते हैं चोर चोरी से जाए, हेराफेरी से ना जाए। सच है, अगर दिमाग में अपराध जड़ जमाए हो, तो क्या हो सकता है? ब्रिटेन में इसका एक अनोखा मामला सामने आया है। भारतीय मूल के एक व्यक्ति ने जेल में रहकर आपराधिक गतिविधि चलाने का एक विचित्र तरीका निकाल लिया।

समाचार पत्र 'द एक्सप्रेस' के अनुसार रशपाल सिंह को सेंधमारी के लिए छह साल की सजा मिली थी। उसने दो साल पूरी तरह से जेल में बिताए। इसके बाद उसे जमानत मिल गई कि वह सुबह साढे पांच बजे से रात नौ बजे तक जेल से बाहर समय बिता सकता है। लेकिन पता चला कि यह व्यक्ति दिन में जेल से बाहर जाकर वेश्यालय चलाता था।

जेल के कर्मचारी समझते थे कि रशपाल टायर दुरस्त करने का काम करता है, लेकिन कहीं इसका प्रमाण नहीं मिला। बाद में एक दिन शिकायत मिली कि रशपाल के घर में बड़ी संख्या में लड़कियां मौजूद हैं।

खबर पाकर पुलिस ने वहां छापा मारा, तब कहीं जाकर उसे रशपाल के धंधे के बारे में पता चला। बहरहाल रशपाल को वेश्यालय चलाने का दोषी पाया गया और अदालत ने इस गुरुवार को उसे और दो वर्ष जेल में बिताने की सजा सुनाई।

Friday, August 13, 2010

0 कब-कब और क्यूं चले जूते

जूता लगे या न लगे लेकिन इसकी मार पड़ती ही है। सभ्य समाज में जूता फेंकने को कभी भी जायज नहीं ठहराया जा सकता है। लेकिन चारों ओर से निराश लोगों के लिए जूता अब एक हथियार बन गया है। जूता फेंक कर लोग न सिर्फ अपनी भड़ास निकाल रहे हैं बल्कि उन मुद्दों को भी सामने ले आते हैं जिन पर नेता ध्यान नहीं देते हैं। 

बुश पर एक के बाद एक पड़े दो जूते

कहां - बगदाद में एक संयुक्त संवाददाता सम्मेलन में।

किसने फेंका - इराक के पत्रकार मुंतजर अल जैदी ने।

क्यों फेंका - इराक में लगातार बढ़ते अमेरिकी दबदबे से नाराज थे।

---------------------------------------------------

इजरायली राजदूत पर भी जूते की मार

कहां - स्टॉकहोम यूनिवर्सिटी में।

किसने फेंका - दर्शक दीर्घा से दो लोगों ने।

क्यों फेंका- फिलीस्तीन पर इजरायली नीतियों का विरोध करना।

---------------------------------------------------
 
चीनी प्रधानमंत्री भी नहीं बच पाए जूते की मार से

कहां - ब्रिटेन के कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी में

किसने फेंका - यूनिवर्सिटी के एक स्टूडेंट ने।

क्यों फेंका - यूनिवर्सिटी कैंपस में चीनी प्रधानमंत्री को बुलाए जाने से।

---------------------------------------------------

लालकृष्ण आडवाणी भी नहीं बच पाए खड़ाऊ की मार से

कहां - मप्र के कटनी में एक चुनावी रैली के दौरान।

किसने फेंका- भाजपा के ही एक कार्यकर्ता ने।

क्यों - पार्टी में अपनी उपेक्षा से दुखी होकर यह कदम उठाया।

---------------------------------------------------

गृहमंत्री चिदम्बरम भी नहीं बच पाए जूते की मार से

कहां - दिल्ली में एक प्रेस वार्ता के दौरान।

किसने फेंका- दैनिक जागरण समाचार पत्र के वरिष्ठ संवाददाता ने।

क्यों फेंका - सीबीआई के द्धारा सिक्ख दंगों के आरोपियों को क्लीनचिट दिए जाने से नाराज था।
------------------------------------------------------

वर्ष 1969 में ऊंझा सीट पर जनसंघ के उम्मीदवार कांतिभाई डॉक्टर के खिलाफ कांग्रेसी उम्मीदवार शंकरलाल गुप्त खड़े हुए थे। जिनका प्रचार करने के लिए पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ऊंझा में एक सभा को संबोधित कर रही थीं उस दरमियान उन जूता फेंका गया जिसके बाद भारी हंगामा मचा इसके बाद इंदिरा गांधी ने लोगों से कहा था कि आप चाहे जूता फेंके या पत्थर मारें हम अपनी बात कहे बिना यहां से नहीं जाएंगे। हालांकि बाद में जूता फेंकने वाले को हिरासत में ले लिया गया था।

--------------------------

प्राप्त जानकारी के अनुसार जरदारी बर्मिघम में पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी के एक कार्यक्रम में हिस्सा ले रहे थे इस दौरान ज़रदारी पर जूता फेंका गया। बहरहाल ज़रदारी की किस्मत अच्छी थी कि इस युवक द्वारा फेंका  गया जूता उन्हें नहीं लगा। पुलिस ने जूता फेंकने वाले को गिरफ्तार कर लिया गया है। पुलिस छानबीन कर रही है




Saturday, August 7, 2010

0 गरीब देशों के "रईस" तानाशाह और उनका वैभव

दुनिया के कई देशों की बागडोर आज भी तानाशाहों के हाथों में हैं. ऐसे अधिकतर देश गरीब हैं और वहाँ की प्रजा के लिए मूलभूत सुविधाएँ भी उपलब्ध नही है. परंतु वहाँ के शासक अति वैभवी जीवन जीते हैं. ऐसे ही कुछ तानाशाहों के वैभव का ब्यौरा -
किम जोंग 2 (उत्तर कोरिया)
उत्तर कोरिया से सही आँकडे प्राप्त करना काफी कठीन है, परंतु कुछ स्रोतों के अनुसार उत्तर कोरिया के शासक किम जोंग 2 के पास अकूट धन दौलत है. किम जोंग के बैंक खातों में 5 बिलियन से अधिक राशि जमा है, उसके पास 17 से अधिक वैभवी घर हैं. पार्टियों के शौखिन किम जोंग प्रति वर्ष अपने अधिकारियों के साथ जमकर पार्टी मनाते हैं और उसमें लगने वाली शराब की कीमत ही करोड़ो में होती है. 
एक खबर के अनुसार किम जोंग ने अपने सभी घरों को गुप्त भूमिगत रेल नेटवर्क से जोड़ रखा है. एक बीच के पास स्थित अति वैभवी घर के तीन फ्लोर जमीन के नीचे है और वहाँ से समुद्र के अंदर की दुनिया देखी जा सकती है.

रोबर्ट मुगाबे (जिम्बाब्वे)

क्या हुआ कि जिम्बाब्वे के नागरिक गरीबी में जीवन बिताने को मजबूर हैं. वहाँ ना तो रोजगार है और ना ही लोगों के पास खाने पीने का सामान परंतु इससे 86 वर्षीय राष्ट्रपति को कोई फर्क नहीं पडता. मुगाबे ने 2008 में 2.6 करोड अमेरिकी डॉलर खर्च कर नया महल बनवाया है जिसमें 25 तो स्नानघर हैं. उसके सभी घरों के ऊपर चीन से दान में मिली एंटी एयरक्राफ्ट गने लगी हैं. मुगाबे के पास ऐसे 3 घर और हैं. उसकी पत्नी ने एक बार गरीब लोगों के लिए घर बनाने के लिए जमा किए गए फंड का इस्तेमाल अपने 30 कमरों के महल 'ग्रेसलेंड' को बनाने में किया था, जिसे विवाद उत्पन्न होने के बाद बेच दिया गया. वैसे मुगाबे की घोषित आय सालाना 57000 डॉलर ही है.

अली बेन बोंगो (गेबन)
 अली बेन बोंगो के पिता ने उच्च जीवनशैली की सीमाओं को पार किया था. उसके पास फ्रांस में 45 घर थे, एक बुगाती स्पोर्ट्स कार थी और 12 दूसरी कारे थी. बोंगो परिवार खरीददारी के लिए बोइंग 747 विमान में बैठकर पेरिस जाता है. 
बोंगो परिवार के फ्रांस और अमेरिका में कई वैभवशाली घर हैं और उनके पास कितनी जमीन है इसकी तो कोई गिनती ही नहीं है.

थान शु (बर्मा)

बर्मा में सैनिक शासन है. वहाँ की जुंता ने 2005 में देश की नई राजधानी का निर्माण करवाना शुरू किया. इसके पीछे तर्क यह था कि रंगून ज्यौतिषी के हिसाब से शुभ नहीं है. परंतु वास्तविकता यह है कि वहाँ के सैन्य अधिकारियों को खुली जगह में घर चाहिए थे जो कि रंगून में सम्भव नही थे. 


इस प्रकार नई राजधानी नायपिदा का निर्माण शुरू हुआ. यहाँ 50 शीर्ष सैन्य अधिकारियों के लिए 20 लाख अमेरिकी डॉलर वाले वैभवी घर बन रहे हैं. और जुंता के नेता थान शु अपने लिए 100 कमरों का महल बनवा रहा है. थान शु ने अपनी जिंदगी गुप्त ही रखी है परंतु उसके और उसके परिवार के द्वारा शोपिंग के लिए हवाईजहाज में बैठकर सिंगापुर जाना और महंगे उपहार खरीदना सारी कहानी बयान कर देते हैं.

मोबुतो सेसे सेको (जायरे)

जायरे के पूर्व राष्ट्रपति मोबुतो सेको ने अति वैभवशाली जीवन जीया है. जायरे की प्रति व्यक्ति आय महज 150 अमेरिकी डॉलर प्रति वर्ष है परंतु मोबुतो के पास अकूट सम्पत्ति है. सेको के पास असंख्य महल, याच, निजी जेट और अन्य कीमती वस्तुएँ हैं. उसका एक महल चीनी पेगोडा पर आधारित है और इसको बनाने में 1 अरब से अधिक रूपए लगे हैं. कहा जाता है कि उसकी पत्नियों के पास 1000 से अधिक कपडे हर समय मौजूद होते है और वे एक कपडा दूसरी बार नही पहनती.



फर्डिनांड मार्कोस (फिलिपींस) 
फिलिपींस के लोगों के पास जहाँ खाने को अन्न नहीं है वहीं वहाँ के शासक फर्डिनांड मार्कोस ने अपने वैभवी जीवन से कोई समझौता नहीं किया था. मार्कोस के पास 61 मिलियन अमेरिकी डॉलर से बना महल था जहाँ माइकलएंजेलो और बोतिसले की वास्तविक पेंटिंगे लगी थी.

जीन बेडल बोकासा (सेंट्रल अफ्रीका रिपब्लिक) 

अन्य तानाशाहों के विपरित सेंट्रल अफ्रीका रिपब्लिक के तानाशाह जीन बेडल बोकासा ने कभी भी अपना वैभवी जीवन नहीं छिपाया. उसका तर्क है कि इससे उसके देश की छवि अच्छी बनती है. परंतु वास्तविकता यह है कि उसने अपने वैभवी जीवन के लिए अपने ही देश को कंगाल कर दिया है. तानाशाह बनने के बाद उसने मात्र अपनी ताजपोशी के दिन के लिए 50 लाखअमेरिकी डॉलर के हीरे पहने, और समारोह के पीछे 2 करोड अमेरिकी डॉलर खर्च किए. इस दौरान 100 लिमोसीन कारें और130 उच्च नस्ल के घोडे प्रदर्शित किए गए. उस दिन 65000 शेम्पेन की बोतलें खोली गई और फ्रांस से विशेष रूप से बार अटेंडर बुलवाए गए.
THANKS AND  COURTESY BY TARAKASH

Saturday, July 31, 2010

0 7 ऐसे देश जहाँ के नागरिकों का जीवन है नर्क समान

दुनिया के एक चौथाई के आसपास देश ऐसे हैं जहाँ पर घोषित या अघोषित रूप से तानाशाही शासन स्थापित है. इनमें से भी कुछ देश ऐसे हैं जहाँ ऊपरी चमक दमक तो काफी दिखाई देती है परंतु वहाँ के मूल नागरिकों का जीवन नर्क से कम नहीं है. ऐसे ही सात देश –
 उत्तर कोरिया 
कहा जाता है कि उत्तर कोरिया के लोगों को पता ही नहीं कि स्वतंत्रता क्या होती है. फ्रीडम हाउस की रैंकिंग के हिसाब से वहाँ के नागरिक सबसे कम स्वतंत्र हैं. वहाँ 1994 से किम जोंग द्वितीय का शासन चल रहा है, जिन्हें चुनौती देने वाला कोई नहीं है. जो है भी वो गुप्त जेलों में बंद है और यातनाएँ भोग रहे हैं. किम जोंग द्वितीय के पास सारी सत्ता है और उसने अपना एकछत्र राज स्थापित किया हुआ है. उत्तर कोरिया में लोगों के जीवन से जुडी हर बात जैसे कि शिक्षा, रोजगार, निवास का स्थान, चिकित्सकीय सुविधा, रोजमर्रा के जीवन के जरूरी सामान की खरीददारी आदि सबकुछ सरकार तय करती है. इसमें उन लोगों को प्राथमिकता मिलती है जो किम जोंग द्वितीय के गुणगान गाते हैं. 
 बर्मा
बर्मा यानी म्यानमार के लोगों का जीवन भी बदतर कहा जा सकता है. वहाँ कोई नागरीक कानून नहीं है. बर्मा की सैन्य जुंता का एकछत्र शासन देश पर चल रहा है. जनरल थान शु के नैतृत्व में जुंता ने अपने हर विरोधी की आवाज को कुछलना सीख लिया है. नागरिक अधिकारों की हिमायती आंग सान सु की पिछले 19 वर्षों से या तो जेल में होती है या नजरबंद होती है. मात्र दिखावे के लिए जुंता ने 1990 में आम चुनाव कराया था परंतु उसमें मूँह की खाने के तुरंत बाद उसने चुनाव नतीजों को अयोग्य करार दिया. अब एक बार फिर "लोकतंत्र" वापस लाने के लिए चुनाव कराए जाने हैं परंतु उससे पहले जुंता यह तय कर लेना चाहती है कि कोई भी सरकार विरोधी चुनाव ना जीत सके. 
गीनिया
गीनिया में टियोरो बासोगो देश के राष्ट्रपति के रूप में शासन कर रहे हैं. गीनिया मे कभी भी सर्व स्विकृत आम चुनाव नहीं हुई. गीनिया अफ्रीका का तीसरा सबसे बड़ा तेल उत्पादक देश है और दुनिया का एक सबसे भ्रष्ट देश भी. यहाँ लोगों के पास खाने की तंगी है परंतु राष्ट्रपति सहित आला अफसर अति वैभवपूर्ण जीवन जीते हैं. राष्ट्रपति स्वयं तेल उत्पादन व्यापार में शामिल हैं और उन पर भ्रष्टाचार के आरोप लगते रहे हैं. 
सोमालिया 
सोमालिया एक ऐसा देश हैं जहाँ वास्तव में कोई सरकार है ही नहीं. कहने को वहाँ इथोपीया समर्थित ट्रांसिशनल फेडरल सरकार कार्यरत है परंतु वास्तविकता यह है कि उसकी देश पर कोई पकड़ ही नहीं है. सोमालिया में कोई मजबूत राजनितिक दल नहीं है और वहाँ का काम काज स्थानीय कबीलों और गुटों के द्वारा ही चलता है. सोमालिया वास्तव में एक देश में कई देश के समान है. वहाँ के नागरिक बदतर जीवन जीते हैं और महिलाओं की हालत तो नर्क के जीवन से भी बुरी है. वहाँ कट्टर इस्लामिक तत्वों का बोलबाला है जो अन्य लोगों पर अमानवीय अत्याचार करते हैं. अल शबाब नामक आतंकवादी समूह के लोग देश पर वास्तविक राज करते हैं.
सुडान
सुडान अफ्रीका महाद्विप का सबसे बडा देश है और यह देश गृहयुद्ध से घिरा हुआ है. सुडान को 1956 में ब्रिटेन और इजिप्त से आज़ादी मिली परंतु लोगों का जीवन बंदी के रूप में जारी रहा. तब से आज तक सुडान में गृहयुद्ध जारी है. 1989 में हुई सैन्य बगावत के बाद वर्तमान राष्ट्रपति हसन अल बशीर सत्ता में आए थे. परंतु उनका शासन काल भी दमनकारी रहा. उधर दक्षिण सुडान के लोग अपने लिए अलग देश की मांग करने लगे और गृहयुद्ध और भी अधिक भड़क गया. कहा जाता है कि 2011 की शुरूआत में दक्षिण सुडान मे जनमत संग्रह कराया जाएगा और उसके बाद शायद दक्षिण सुडान एक अलग देश के रूप में स्थापित हो जाए. इसके बाद शायद सुडान के लोगो का जीवन कुछ बेहतर हो सके.
चीन (तिब्बत)
ऊपर चमक दमक के पीछे चीन एक भयावह कहानी कहता है. चीन के कई इलाकों में रहने वाले लोग वास्तव में नर्क समान जीवन जीने को मजबूर हैं. उसमें भी तिब्बत प्रदेश के लोगों के पास वास्तव में थोडी भी आजादी नही है. चीन ने तिब्बत पर अपना कठोर सीकंजा कस रखा है. चीनी पुलिस और सेना तिब्बत के लोगो को कभी भी गिरफ्तार कर ले जाती है और उन पर अत्याचार किए जाते हैं. तिब्बत में लोगों को मुक्त रूप से घुमने फिरने की आज़ादी नही है और ना ही वहाँ के लोग समूह बना सकते हैं. 2008 में तिब्बत के लोगों ने चीनी साम्राज्य का विरोध करने के लिए आंदोलन किया था जिसे चीन ने कठोरता से दबा दिया. उसके बाद कई तिब्बती नेताओं को या तो मार दिया गया या जेलों में भर दिया गया. 
उज़्बेकिस्तान
1991 मे सोवियत समूह के टूटने के बाद उज़्बेकिस्तान भी एक स्वतंत्र देश के रूप में स्थापित हुआ. तब से आज तक वहाँ राष्ट्रपति इस्लाम कारिमोव का शासन चल रहा है. उनकी सरकार पर नागरिक कानूनों का हनन करने और भ्रष्टाचार के आरोप लगते रहते हैं परंतु सरकार इससे अविचलित रहती है. इस्लाम कारिमोव की पकड सँवैधानिक संस्थाओं से लेकर न्यायिक व्यवस्था तक है. वहाँ कोई प्रभावी विपक्षी दल नहीं है. सैंकडो की संख्या में विरोधी विचारधारा वाले राजनेताओं और सामाजिक कार्यकर्ताओं को जेलों में कैद कर रखा गया है. इसमें मशहूर कवि और राजनेता युसूफ जुमा, एड्स निरोधी अभियान चलाने वाले माक्सिम पोपोव, और बाल मजदूरी के खिलाफ आवाज उठाने वाले गोनिहोन मामाथानोव भी शामिल है.
THANKS AND  COURTESY BY TARAKASH