धरती का स्वर्ग कश्मीर एक बार फिर सुलग रहा है। खासकर सोपोर और उसके आसपास के इलाकों में बीते करीब तीन हफ्ते से स्थिति गंभीर बनी हुई है। राज्य के उत्तर से शुरू हुआ यह आदोलन अब धीरे-धीरे दक्षिण के हिस्सों में भी अपना असर करने लगा है। जिस तरह का माहौल स्टेट में बन रहा है, उससे राज्य और केंद्र केबीच टकराव बढ़ने की संभावना जताई जा रही है। कश्मीर घाटी के लोग एकाएक क्यों सड़कों पर उतर आए? क्यों घाटी एक बार फिर सुलग रही है? क्यों राज्य केअलगाववादी तत्व एक बार फिर जनभावनाएं भड़काकर अपने गर्हित उद्देश्यों को पूरा करने में जुटे हुए हैं? पेश है एक खास रिपोर्ट..
पैरामिलिट्री फोर्स है समस्या
दरअसल इस सारे मामले की जड़ कश्मीर में पैरामिलिट्री फोर्स की तैनाती है। इसे लेकर राज्य के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला और एवं अलगाववादी संगठन लगातार विरोध करते आ रहे हैं। इसकेअलावा यह लोग सशस्त्र बल विशेषाधिकार कानून [एएफएसपीए] को वापस लेने या इसमें निहित कुछ अधिकारों को कम करने की माग भी कर रहे हैं।
कानून का विरोध
अलगाववादियों का आरोप है कि इस कानून से राज्य में पैरामिलिट्री फोर्स को अपनी मनमानी करने और मानवाधिकारों का खुला उल्लंघन करने का मौका मिलता है। साथ ही वह सेना पर फर्जी मुठभेड़ का भी आरोप लगाते हैं। खुद सीएम उमर अब्दुल्ला इन मामलों को लेकर केंद्र सरकार से अपनी नाराजगी जाहिर कर चुकेहैं। हुर्रियत के गिलानी धड़े ने तो इसे लेकर राज्य में आदोलन चला रखा है। यह अलग है कि हुर्रियत अपने विभाजन के बाद अपनी उतनी प्रासंगिक नहीं रह गई है। जम्मू कश्मीर केकानून मंत्री अली मोहम्मद सागर कहते हैं कि, राज्य सरकार चरमपंथियों और अलगाववादियों के राजनीतिक नेतृत्व के खिलाफ लड़ रही है, लेकिन हम अपने ही लोगों के खिलाफ नहीं लड़ सकते जिन्होंने अपनी जान जोखिम में डालकर चुनाव में हिस्सा लिया।
मौका देखते अलगाववादी
ताजा मामले के तूल पकड़ने का कारण सीआरपीएफ के जवानों द्वारा की गई फायरिंग में कुछ युवाओं की मौत है। आजादी के बाद से लगातार संवेदनशील बने रहने वाले इस राज्य में अलगाववादी ऐसा कोई अवसर अपने हाथ से नहीं जाने देते जिससे उन्हें भारत सरकार को कठघरे में खड़ा करने और लोगों की भावनाओं को भड़काने का मौका मिले।
केंद्र कर रहा है विचार
हालाकि केंद्र सरकार इस कानून को अधिक मानवीय बनाने पर विचार कर रही है। पीएम मनमोहन सिंह खुद इस बाबत आश्वासन दे चुके हैं। पीएम ने अपनी हाल की श्रीनगर यात्रा के दौरान सुरक्षा बलों को कड़ा निर्देश भी दिया था कि वह मानवाधिकारों का उल्लंघन न करें।
आर्मी कर रही विरोध
इंडियन आर्मी इस कानून को हटाए जाने अथवा इसे हल्का करने की किसी भी मंशा का विरोध करती रही है। आर्मी चीफ वीके सिंह कहते हैं कि जो लोग सशस्त्र बल विशेषाधिकार कानून को वापस लेने अथवा उसे हल्का करने की माग कर रहे हैं, वह संकीर्ण राजनीतिक लाभ के लिए ऐसा कर रहे हैं। हाल में रक्षा मामलों संबंधित मैग्जीन लैंड फोर्सेज में दिए एक इंटरव्यू में सिंह ने कहा था कि लोगों में इस कानून को लेकर गलतफहमी है। इसके साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि ऐसा करने से सेना का संचालन गंभीर रूप से प्रभावित होगा।
क्या है विशेषाधिकार कानून?
सशस्त्र सेना विशेष अधिकार अधिनियम [एएफएसपीए] देश के विभिन्न भागों में 1958 से लागू है। न केवल जम्मू कश्मीर बल्कि नॉर्थ-इस्ट स्टेट्स में भी इसे लेकर नाराजगी है। इस एक्ट की कुछ धाराओं में आर्मी को असीमित अधिकार दिए गए हैं। विरोध इन्हीं धाराओं को लेकर हो रहा है। एक्ट की धारा 4 क के मुताबिक संबंधित अफसर शाति व्यवस्था कायम करने के लिए वार्निग देने ने के अलावा अन्य कई प्रकार के बल प्रयोग करने के लिए फ्री हैं। चाहे उसके कारण किसी की मृत्यु हो जाए। उसकी उपधारा ग के अंतर्गत वह किसी भी ऐसे व्यक्ति को बिना वारंट के अरेस्ट कर सकता है जिसके द्वारा कोई संज्ञेय अपराध किए जाने की संभावना हो, और उपधारा घ के तहत ऐसी अरेस्टिंग करने के लिए वह बिना वारंट के किसी भी स्थान की तलाशी ले सकता है। इस एक्ट की सबसे खतरनाक बात यह है कि ऐसा करने के लिए उस अफसर को अपने से ऊपर के किसी अफसर से अनुमति लेने की कोई आवश्यकता नहीं है और न ही वह उस कार्यवाही के लिए किसी के प्रति जवाबदेह है। इस एक्ट की धारा 7 के मुताबिक सशस्त्र सेना के किसी अधिकारी पर मुकदमा चलाने के लिए केन्द्रीय सरकार की पूर्व अनुमति लेना जरूरी है।
[जेएनएन
THANKS AND COURTESY BY JNN
bhai ji story to dhoond dhoond kar late ho.
ReplyDeletebahut badhiya lage ro