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Thursday, September 15, 2011

0 हाथी, चूहा और कांग्रेस

हाथी जंगल का राजा था. उसका वजन एक टन और लंबाई 15 फीट थी. जंगल के अन्य जानवरों को उसकी बात माननी पड़ती थी. वह जंगल में उपद्रव करता और जो दिखाई पड़ता, उसे नष्ट कर देता था. वह एक चूहे के सामने आया. एक दांत और सुंदर पूंछ वाला यह चूहा मुश्किल से 4 इंच का था. हाथी ने कहा कि यह चूहा जंगल के लिए ख़तरनाक है. इसकी पूंछ ख़तरनाक हो सकती है. इसे जंगल से बाहर किया जाना चाहिए. जंगल के अन्य जानवर यह नहीं समझ सके कि हाथी इस चूहे से इतना डरा हुआ क्यों है. हाथी ने कहा कि उसने दस साल पहले इस चूहे को सड़ा पनीर खाते हुए देखा था, अत: यह चूहा भी अब सड़ गया है. उधर चूहे ने जंगल छोड़ने से इंकार कर दिया. वह वहीं रुका रहा. हाथी जितना अधिक गरजता, चूहे की पूंछ उतनी ही बढ़ती जाती. अंत में हाथी चूहे की लंबी पूंछ में उलझ गया और उसे चूहे से ख़ुद को छोड़ने के लिए कहना पड़ा. चूहा समझौता करने को तैयार नहीं था. उसने कहा कि हाथी अगर छूटना चाहता है तो उसे जंगल में उपद्रव करना और अन्य जानवरों को धमकाना बंद करना पड़ेगा.

पिछले दिनों हम लोगों ने देखा कि ताक़तवर सरकार नागरिक समाज के दबाव के आगे झुक गई. लोकपाल को लेकर जो हालात बने हैं, उनमें किसी अन्य लोकतंत्र में कम से कम एक कैबिनेट मंत्री अब तक अपना इस्ती़फा दे चुका होता. अप्रैल में यूपीए के साथ अन्ना हजारे का समझौता हुआ. यह लगभग उसी तरह था, जैसे भारतीय क्रिकेट टीम ने विश्वकप जीता था. अगस्त में भारतीय क्रिकेट टीम की तरह कांग्रेस ने लीपापोती कर दी. इस बीच क्या परिवर्तन हो गया? मेरा अपना मानना है कि सोनिया गांधी को इलाज के लिए अमेरिका क्या जाना पड़ा, कांग्रेस निस्सहाय हो गई. दरअसल, कांगे्रस 10 जनपथ से सलाह लेने की आदी हो गई है. पिछले कुछ वर्षों के दौरान कांग्रेस ने किसी भी स्वतंत्र सोच या निर्णय को स़िर्फ हतोत्साहित ही किया है और अब यह स्थिति नियंत्रण के बाहर होने की वजह से कांग्रेस दिशाहीन हो गई है. चुने हुए प्रतिनिधि के रूप में मिली वैधता के कारण अन्ना के मुक़ाबले सरकार के पास एक बेहतर मौक़ा था. कई वरिष्ठ कांग्रेस प्रवक्ताओं द्वारा इसी समय अन्ना को बदनाम करने की कोशिश भयावह और दयनीय थी. यह तो ज़ाहिर था कि कांग्रेस किसी भी तरह के विरोध को बर्दाश्त नहीं करेगी, चाहे वह कितना भी छोटा क्यों न हो. अन्ना पर 2.2 लाख रुपये के दुरुपयोग का आरोप लगाने का विचार हास्यास्पद था.

इस मोड़ से ही कांग्रेस की हार की शुरुआत हो गई. कांग्रेस का यह कहना कि कोई बिल जब संसद में हो, तब उसका विरोध करना ठीक नहीं है, एक अर्थहीन बात है. किसी भी लोकतंत्र में जनता किसी बिल के संसद में होने या उसके पारित होने से पूर्व या बाद में भी उसका विरोध कर सकती है. मैं ख़ुद फोक्स हंटिंग बिल के विरोध में पार्लियामेंट स्न्वायर पर भारी प्रदर्शन का गवाह रहा हूं. कांग्रेस ने भी लोक लेखा समिति और उसकी रिपोर्ट के मुद्दे पर संसद की उपेक्षा की और संयुक्त संसदीय समिति को भी पूरी तरह काम नहीं करने दिया गया. राहुल गांधी कांग्रेस को उबारने आए. सारे क़ानूनी दांव-पेंच और तकनीकी बातें धरी की धरी रह गईं. अन्ना को एक ऐसे सामान्य सांसद के आदेश पर रिहा कर दिया गया, जिसकी स्थिति कांग्रेस के महासचिव से ऊपर नहीं है. सोनिया गांधी की अनुपस्थिति में चार लोगों के दल के आगे संसद की संप्रभुता का क्या अर्थ रह गया? क्या आप अन्ना का समर्थन कर रही भीड़ पर नेताओं पर विश्वास न करने का आरोप लगा सकते हैं?

Courtesy –meghnaddesai-chauthiduniya


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