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Wednesday, February 16, 2011

0 SCAM आजाद भारत के महान घोटाले - Part -3

आजाद भारत के महान घोटाले भाग -3
चारा घोटाला. लालू प्रसाद यादव
घोटालेबाज़ चारे जैसी चीज से भी पैसा पैदा करने लगे. जैसे बिहार का चारा घोटाला. लालू प्रसाद यादव जब मुख्यमंत्री थे तो यह घोटाला सामने आया. पहली बार लोगों को लगा कि पशुओं को खिलाए जाने वाले चारे में भी घोटाला करके सैकड़ों करोड़ कमाए जा सकते हैं. करीब एक हज़ार करोड़ रुपये के इस घोटाले में राज्य के दो मुख्यमंत्रियों की संलिप्तता की बात सामने आई. उस समय के मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव और 1980 में मुख्यमंत्री रहे जगन्नाथ मिश्र दोनों के नाम इस घोटाले से प्रमुख रूप से जुड़े. सीबीआई को इस घोटाले की जांच करने का ज़िम्मा दिया गया. 20 साल से ज़्यादा हो गए, लेकिन अभी तक इसका कोई ठोस परिणाम सामने नहीं आया है

प्रतिभूति जैसे क्षेत्र यानी शेयर मार्केट में भी घोटाला
 प्रतिभूति जैसे क्षेत्र यानी शेयर मार्केट में भी घोटाला देखने को मिला. यह घोटाला बैंक अफसरों, नेताओं और शेयर दलालों की मिलीभगत का नतीजा था. शातिराना ढंग से ये सारे लोग मिलकर सरकारी नियम-क़ायदों को तोड़कर करोड़ों रुपये की हेराफेरी करते रहे. यह घोटाला 10 हज़ार करोड़ रुपये से भी ज़्यादा का था. इस मामले में सबसे चर्चित नाम रहा शेयर दलाल हर्षद मेहता का. हर्षद ने इस मामले में नरसिम्हाराव पर भी आरोप लगाया था, लेकिन अंत तक असली अपराधियों का नाम सामने नहीं आ सका. हर्षद मेहता की मृत्यु जेल में रहने के दौरान ही हो गई.

लक्खू भाई पाठक केस.
 लक्खू भाई पाठक केस. अचार व्यापारी लक्खू भाई पाठक ने नरसिम्हाराव और चंद्रा स्वामी पर 10 लाख रुपये रिश्वत लेने का आरोप लगाया. लक्खू भाई पाठक इंग्लैंड में रहने वाले भारतीय व्यापारी थे. उन्होंने यह आरोप लगाया कि 100 हजार पाउंड उन्हें बेवक़ूफ बनाकर इन दोनों ने ठग लिए थे. लक्खू भाई पाठक की मृत्यु हो गई और राव एवं चंद्रा स्वामी 2003 में सबूतों के अभाव में बरी हो गए. एक-एक करके मंत्री और नेता घोटाले पर घोटाले करते गए.

सुखराम जो कि दूरसंचार मंत्री
सुखराम जो कि दूरसंचार मंत्री थे, पर आरोप लगा कि उन्होंने हैदराबाद की एक निजी कंपनी को टेंडर दिलाने में मदद की, जिसकी वजह से सरकार को 1.6 करोड़ रुपये का घाटा हुआ. 2002 में उन्हें इस मामले में जेल भी जाना पड़ा.

यूरिया घोटाला
यूरिया घोटाला हुआ. नेशनल फर्टिलाइजर के एमडी सी एस रामकृष्णन ने कई अन्य व्यापारियों, जो कि नरसिम्हाराव के नजदीकी थे, के साथ मिलकर दो लाख टन यूरिया आयात करने के मामले में सरकार को 133 करोड़ रुपये का चूना लगा दिया. यह यूरिया कभी भारत तक पहुंच ही नहीं पाई. इस मामले में अब तक कुछ भी नहीं हुआ

1991  हवाला घोटाले
हवाला भी सामने आया. देश से बाहर धन भेजने की इस कला से आम हिंदुस्तानियों का परिचय इसी घोटाले की वजह से हुआ. 1991 में सीबीआई ने कई हवाला ऑपरेटरों के ठिकानों पर छापे मारे. इस छापे में एस के जैन की डायरी बरामद हुई. इस तरह यह घोटाला 1996 में सामने आया. इस घोटाले में 18 मिलियन डॉलर घूस के रूप में देने का मामला सामने आया, जो कि बड़े-बड़े राजनेताओं को दी गई थी. आरोपियों में से एक लालकृष्ण आडवाणी भी थे, जो उस समय नेता विपक्ष थे. इस घोटाले से पहली बार यह बात सामने आई कि सत्ताशीन ही नहीं, बल्कि विपक्ष के नेता भी चारों ओर से पैसा लूटने में लगे हैं. दिलचस्प बात यह थी कि यह पैसा कश्मीरी आतंकवादी संगठन हिजबुल मुजाहिदीन को गया था. कई नामों के खुलासे हुए, लेकिन सीबीआई किसी के भी खिला़फ सबूत नहीं जुटा सकी

नरसिम्हाराव के समय झारखंड मुक्ति मोर्चा
नरसिम्हाराव के समय झारखंड मुक्ति मोर्चा के नेता शैलेंद्र महतो ने यह खुलासा किया कि उन्हें और उनके तीन सांसद साथियों को 30-30 लाख रुपये दिए गए, ताकि नरसिम्हाराव की सरकार को समर्थन देकर बचाया जा सके. यह घटना 1993 की है. इस मामले में शिबू सोरेन को जेल भी जाना पड़ा. 1994 में खाद्य आपूर्ति मंत्री कल्पनाथ राय ने बा़जार भाव से भी महंगी दर पर चीनी आयात का फैसला लिया. यानी चीनी घोटाला. इस कारण सरकार को 650 करोड़ रुपये का चूना लगा. अंतत: उन्हें त्यागपत्र देना पड़ा. उन्हें इस मामले में जेल भी जाना पड़ा


घोटालों की यह सूची अभी और लंबी है. जिसकी बात फिर कभी, लेकिन इन घोटालों को देखने-पढ़ने के बाद यह सवाल भी उठता है कि आ़िखर इस कैंसर को खत्म करने के लिए क्या कोई क़दम भी उठाया गया. भारत में समय-समय पर भ्रष्टाचार को रोकने के लिए नियम और संस्थाएं बनती आई हैं. इसी वजह से सीबीआई और सीवीसी का गठन हुआ, लेकिन ये दोनों ही अपने मक़सद में नाकाम हैं. अलग-अलग कारणों से. आज तक के इतिहास में सीबीआई को अलग-अलग राजनैतिक पार्टियों ने बस इधर-उधर अपने विरोधियों के पीछे ही दौड़ाया है. ऐसा आरोप शुरू से सीबीआई पर विपक्षी लगाते रहे हैं. और सीवीसी को कोई अधिकार ही नहीं है. स्थिति यह हो गई है कि देश के प्रधानमंत्री इतने मजबूर और कमज़ोर हो गए हैं कि वह अपने ही मंत्रिमंडल के लोगों पर नकेल नहीं कस पा रहे. सरकार बचाना साख बचाने से ऊपर हो गया है. प्रधानमंत्री संसद से लेकर मीडिया तक कठघरे में खड़े किए गए, लेकिन फिर भी सरकार को सुध नहीं आई. सीवीसी पी जे थॉमस ने तो हद कर दी, लेकिन सरकार फिर भी कुछ नहीं कर पाई. आ़खिर क्यों? कहां गए लाल बहादुर शास्त्री और वी पी सिंह जैसे नेता, जो जनता के हित में अपनी कुर्सी तक छोड़ देते थे? कहां गए वे दिन, जब राजनीति घोटालेबाज़ों का गढ़ न होकर सम्मानित लोगों के लिए जनता की सेवा करने का एक ज़रिया था?                                              पढ़िये भाग -4

Writer-सिद्धार्थ राय-courtesy chauthidunia




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