Fact of life!

एवरीथिंग इज प्री-रिटन’ इन लाईफ़ (जिन्दगी मे सब कुछ पह्ले से ही तय होता है)।
Everything is Pre-written in Life..
Change Text Size
+ + + + +
Showing posts with label Anna Hajare. Show all posts
Showing posts with label Anna Hajare. Show all posts

Saturday, April 9, 2011

0 बंदे में है दम

 लोकपाल बिल पर अन्ना की जीत,झुक गई केंद्र सरकार

Thursday, April 7, 2011

0 जनलोकपाल बिल: वो सबकुछ जो आप जानना चाहते हैं

भ्रष्टाचार से निपटने का सबसे कारगर रास्ता हो सकता है जनलोकपाल बिल। अन्ना हजारे के अनशन पर बैठने से पहले इसी वर्ष 30 जनवरी को 60 शहरों में लाखों लोग सड़कों पर उतरे थे। आखिर क्या है जनलोकपाल बिल? मौजूदा व्यवस्था क्या है? सरकार ने किस तरह का बिल लाना चाहती है? उस पर क्या है आपत्ति?

वर्तमान व्यवस्था क्या?
- लोकपाल है ही नहीं। लोकायुक्त सलाहकार की भूमिका में
- लोकायुक्त की नियुक्ति मुख्यमंत्री हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस और नेता प्रतिपक्ष की सहमति से करता है।
- मंत्रियों, एमपी के खिलाफ जांच और मुकदमे के लिए लोकसभा अध्यक्ष की अनुमति जरूरी
- सीबीआई और सीवीसी सरकार के अधीन
- जजों के खिलाफ जांच के लिए चीफ जस्टिस की अनुमति जरूरी

सरकार द्वारा तैयार लोकपाल बिल
- लोकपाल तीन-सदस्यीय होगा। सभी रिटायर्ड जज।
- चयन समिति में उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, दोनों सदनों के नेता पक्ष और नेता प्रतिपक्ष, कानूनमंत्री और गृहमंत्री
- मंत्रियों, एमपी के खिलाफ जांच और मुकदमे के लिए लोकसभा/ राज्यसभा अध्यक्ष की अनुमति जरूरी। प्रधानमंत्री के खिलाफ जांच की अनुमति नहीं।
- सीवीसी और सीबीआई लोकपाल/ लोकायुक्तके अधीन नहीं।
- लोकायुक्त केवल सलाहकार की भूमिका में। एफआईआर से लेकर मुकदमा चलाने की प्रक्रिया पर विधेयक मौन। जजों के खिलाफ कार्रवाई पर मौन

क्या है आपत्ति?
- जजों को रिटायर होने के बाद सरकार से उपकृत होने की आशा रहने से निष्पक्षता प्रभावित होगी
- भ्रष्टाचार के आरोपियों के ही चयन समिति में रहने से ईमानदार लोगों का चयन होने में संदेह
- बोफोर्स, जेएमएम सांसद खरीद कांड, लखूभाई पाठक केस जैसे मामलों में प्रधानमंत्री की भूमिका की जांच ही नहीं हो पाएगी।
- राजनीतिक हस्तक्षेप की संभावना रहेगी।
- लोकायुक्त भी सीवीसी की तरह बिना दांत के शेर की तरह रहेगा। केजी बालाकृष्णन जैसे जजों के खिलाफ कार्रवाई संभव नहीं होगी।

जन लोकपाल विधेयक
- ग्यारह सदस्यीय लोकपाल। चार का लीगल बैकग्राउंड जरूरी, अन्य दूसरे क्षेत्रों से
- चयन समिति में सीएजी, जानेमाने कानूनविद, मुख्य चुनाव आयुक्त और नोबेल और मैग्सेसे जैसे अंतरराष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित
- प्रधानमंत्री, मंत्रियों, एमपी के खिलाफ जांच और मुकदमे के लिए लोकपाल/ लोकायुक्त की अनुमति जरूरी। स्वत: संज्ञान का भी अधिकार।
- सीवीसी और सीबीआई केंद्र में लोकपाल और राज्यों में लोकायुक्त के अधीन
- जजों के खिलाफ जांच के लिए लोकपाल/लोकायुक्त को अधिकार।

Courtesy dainik bhaskar

0 अन्ना हजारे का समर्थन -vk kaushik

मैं जन लोकपाल बिल पर राष्ट्रीय बहस कराए जाने के लिए अन्ना हजारे के अनशन का समर्थन करता हूं। कम से कम संसद आगे आए और इस मुद्दे पर प्रतिक्रिया दे। अन्ना हजारे जैसे लोग व्यवस्था के खिलाफ जनांदोलन का दबाव बनाएंगे, मैने उस  गांधी  को तो नही देखा,  परन्तु मै सभी  नोजवानो से अनुरोध  करता हू | कि इस गांधी  को समर्थन दे ओर सफ़ल बनाए क्योकि यह हमारे हित मे है|

0 अन्ना की आवाज : खड़े हो गए करोड़ों हाथ

अनीति के नाभिकेंद्र पर जिस बुजुर्ग गांधीवादी सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे ने निशाना लगाया है, उसे यह चुनौती नहीं दी जा सकती कि पहला पत्थर वह मारे जिसने पाप न किया हो- क्योंकि 72 बरस की जिंदगी की चादर अन्ना ने कबीर की तरह इतने जतन से ओढ़ी-बिछाई है कि उसमें कहीं कोई दाग नहीं है। इसीलिए भले ही प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने अनसुनी की हो मगर दिल्ली के जंतरमंतर पर आमरण अनशन पर बैठते ही देशभर में हजारे के साथ करोड़ों हाथ उठ खड़े हुए हैं। राष्ट्रपिता गांधी ने ही सिखाया है कि आचरण ही सबसे बड़ी चीज होती है, सो हजारे ने सुबह राजघाट पहुंचकर गांधी समाधि पर फूल चढ़ाए और वहां से संकल्प के साथ जंतरमंतर पहुंचकर जनलोकपाल बिल संसद में लाए जाने और उसे लागू किए जाने की मांग पर आमरण अनशन पर बैठ गए।
अपने आचरण के चलते अन्ना के गांधी समाधि पर फूल चढ़ाने का जादू अलग है, जिसने देशवासियों पर अपनी तरह का असर डाला है। वरना सबको पता है कि लोग क्या-क्या करते रहते हैं और साल में दो बार हाथ जोड़कर गांधी समाधि की परिक्रमा कर आते हैं। गांधी के नाम पर ही राष्‍ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना है, जिसे भ्रष्टाचार की वैतरणी बनाकर देशभर में राज्य सरकारों के कर्ताधर्ता मोक्ष प्राप्त करने में लगे हुए हैं। भ्रष्‍टाचार की धुंध राष्‍ट्रव्यापी है। अब ये खबरें आम हो चुकी है कि केंद्र से लेकर राज्यों तक सरकारी भ्रष्‍टाचार की श्रृंखलाएं आबाद हैं। इस बीच कार्यपालिका, विधायिका, न्यायपालिका, यहां तक कि चौथा स्तंभ कहे जानेवाले मीडिया में ऊंचे ओहदे पर बैठे लोगों पर उंगलियां उठी हैं और बहुतों के दामन दागदार हुए हैं।
अब तो यह रिवाज चल पड़ा है कि पक्ष-प्रतिपक्ष अपनी सफाई देने में एक-दूसरे से कहते हैं कि आपकी तुलना में हमारे वक्त में कम भ्रष्टाचार है। एक के भ्रष्टाचार का जिक्र होता है तो वह दूसरे के भ्रष्टाचार की याद दिलाने लगता है। चालीस साल से लोकपाल संसद का मोहताज है, मगर राजकाज की धुन में किसी को उसका ख्याल नहीं आया। नागरिक समाज की आवाज का सूत्रधार बनकर अन्ना हजारे ने बस इतनी ही मांग की है कि लोकपाल सरकार से एकदम स्वतंत्र हो। नौकरशाह, राजनेता और जजों पर इनका अधिकार क्षेत्र हो और बगैर किसी एजेंसी की अनुमति के ही कोई जांच शुरू करने का इसे अधिकार हो। सत्ता का निरंकुश इस्तेमाल करने वालों पर अंकुश लगाने और भ्रष्टाचार की नाभि पर प्रहार करने के लिए यह आवश्यक है। इसीलिए आज देश का हर जागरूक नागरिक अन्ना हजारे की आवाज के पीछे खड़ा हो गया है। सरकार को चाहिए कि अन्ना की मांग को स्वीकार कर वह लोकतांत्रिक मांग का सम्मान करे।
Courtesy B4M- अरविंद चतुर्वेदी

0 भ्रष्टाचार पर अन्ना हजारे की मुहिम

हम सबको भी अन्ना हजारे की भ्रष्टाचार विरोधी  मुहिम  मे उनका साथ देना चाहिय |